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नोबेल नहीं मिलता, तो भी नहीं सोचता कि जीवन व्यर्थ हो गया : अमर्त्य सेन

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उन्होंने पुरस्कार को अपने पास अच्छी चीज करार दिया

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उन्होंने पुरस्कार को अपने पास अच्छी चीज करार दिया एजेंसियां, बोलपुर/कोलकाता नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन का मानना है कि नोबेल पुरस्कार पाने के अलावा जीवन में कई और बड़े लक्ष्य होते हैं. उन्होंने पुरस्कार को अपने पास एक अच्छी चीज करार दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अगर उन्हें यह न मिला होता, तो भी वह नहीं मानते कि उनका जीवन व्यर्थ हो गया. सेन ने कहा कि पुरस्कार के साथ उन्हें जो धनराशि मिली थी, उसकी मदद से उन्होंने प्रतीची ट्रस्ट की स्थापना की, जो बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर केंद्रित एक परोपकारी संस्था है. सेन ने राज्य के बीरभूम जिले के बोलपुर में अपने पैतृक आवास पर एक साक्षात्कार में कहा : मुझे नोबेल पुरस्कार मिला, लेकिन मैं नहीं मानता कि अगर मुझे यह नहीं मिला होता, तो मेरा जीवन व्यर्थ हो जाता. मुझे कुछ पैसे मिले और मैं बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य से जुड़ी प्रतीची ट्रस्ट नामक संस्था की स्थापना कर पाया. आपको पुरस्कार मिलने या न मिलने में भाग्य की भी भूमिका होती है. मुझे नहीं लगता कि मेरा लक्ष्य नोबेल या कोई अन्य पुरस्कार प्राप्त करना था. अमर्त्य सेन को 1998 में आर्थिक विज्ञान में स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. यह पुरस्कार उन्हें गरीबों की समस्याओं को दूर करने के लिए कल्याणकारी अर्थशास्त्र व सामाजिक विकल्प के सिद्धांत में योगदान के लिए दिया गया था. उन्होंने ट्रस्ट की वेबसाइट पर लिखा है : जब मुझे नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया, तो इसने मुझे विशेष रूप से भारत और बांग्लादेश में साक्षरता, बुनियादी स्वास्थ्य सेवा और लैंगिक समानता समेत पुराने मुद्दों के बारे में तत्काल और व्यावहारिक रूप से कुछ करने का मौका दिया. मैंने पुरस्कार राशि के कुछ हिस्से की मदद से प्रतीची ट्रस्ट स्थापित की, जो निश्चित रूप से इन समस्याओं के समाधान के लिए एक छोटा-सा प्रयास है.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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