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Darjeeling Lok Sabha Seat : खूनी आंदोलनों का गवाह रहा है दार्जिलिंग, अब है शांति

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Darjeeling Lok Sabha Seat : 30 जुलाई 2013 को गुरुंग ने पश्चिम बंगाल सरकार के हस्तक्षेप और गोरखालैंड के लिए नये सिरे से आंदोलन का हवाला देते हुए जीटीए से इस्तीफा दे दिया. सरकार के दबाव के बाद बिमल गुरुंग लंबे समय तक भूमिगत रहे. अब फिर से उन्हें दार्जिलिंग में देखा जा रहा है.

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1980 के दशक में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के नेता सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड नामक एक अलग राज्य की मांग उठायी थी. इसमें दार्जिलिंग की पहाड़ियों और डुआर्स व सिलीगुड़ी के तराई के क्षेत्रों को शामिल कर बनाने की मांग थी. गोरखा आबादी 1907 से ही बंगाल से अलग होने की मांग इस आधार पर कर रही है कि वह सांस्कृतिक और जातीय रूप से बंगाल से अलग है. इस मांग के साथ हो रहे आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया. इसमें 1,200 से अधिक लोगों की जानें गयी हैं.

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23 वर्षों तक दार्जिलिंग पहाड़ियों का चलाया प्रशासन

ऊपरोक्त आंदोलन 1988 में दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (डीजीएचसी) के गठन के साथ समाप्त हुआ. डीजीएचसी ने कुछ हद तक स्वायत्तता के साथ 23 वर्षों तक दार्जिलिंग पहाड़ियों का प्रशासन चलाया. इसी बीच 2007 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) नामक एक नये राजनीतिक संगठन ने एक बार फिर से अलग गोरखालैंड राज्य की मांग उठा दी. चौथा डीजीएचसी चुनाव 2004 में होने वाला था. हालांकि, सरकार ने चुनाव नहीं कराने का फैसला किया और इसके बजाय नयी छठी अनुसूची जनजातीय परिषद की स्थापना होने तक सुभाष घीसिंग को डीजीएचसी का एकमात्र कार्यवाहक बना दिया. पर, डीजीएचसी के पूर्व पार्षदों में नाराजगी भी बढ़ती रही.

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गोरखालैंड की मांग ने फिर एक नया मोड़ ले लिया

उनमें से बिमल गुरुंग, जो कभी घीसिंग के भरोसेमंद सहयोगी थे, ने जीएनएलएफ से अलग होने का फैसला किया. दार्जिलिंग के इंडियन आइडल प्रतियोगी प्रशांत तमांग को मिले जन समर्थन का बिमल गुरुंग ने तुरंत फायदा उठाया और घीसिंग को सत्ता से उखाड़ फेंकने में कामयाब हो गये. बिमल गुरुंग ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की जो स्थापना की, वह भी गोरखालैंड राज्य की मांग से जुड़ चुका था. उधर, अखिल भारतीय गोरखा लीग नामक एक अन्य गोरखाली संगठन के नेता मदन तमांग की हत्या हो गयी. 21 मई, 2010 को दार्जिलिंग में दिनदहाड़े उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गयी. उनके मारे जाने के बाद गोरखालैंड की मांग ने फिर एक नया मोड़ ले लिया.

बंगाल सरकार ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के खिलाफ कार्रवाई की धमकी

तमांग की हत्या के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के खिलाफ कार्रवाई की धमकी दी. आगे चल कर आठ फरवरी, 2011 को जीजेएम के तीन कार्यकर्ताओं की पुलिस द्वारा की गयी गोलीबारी में जान चली गयी. यह घटना तब हुई, जब जीजेएम के कार्यकर्ता गोरुबथान से जयगांव तक बिमल गुरुंग के नेतृत्व में हो रही पदयात्रा के तहत जलपाईगुड़ी जिले में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे. इस कारण दार्जिलिंग पहाड़ियों में काफी हिंसा हुई और जीजेएम द्वारा अनिश्चितकालीन हड़ताल का आह्वान किया गया, जो नौ दिनों तक प्रभावी रहा. इस बीच और भी कई तरह के आंदोलन होते रहे. अंतत: दार्जिलिंग पहाड़ियों के लिए गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) नामक एक अर्ध-स्वायत्त प्रशासनिक निकाय के गठन के लिए समझौते पर 18 जुलाई, 2011 को हस्ताक्षर किये गये. गुरुंग को जीटीए का मुख्य कार्यकारी बनाया गया.

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सरकार के दबाव के बाद बिमल गुरुंग लंबे समय तक भूमिगत रहे


30 जुलाई 2013 को गुरुंग ने पश्चिम बंगाल सरकार के हस्तक्षेप और गोरखालैंड के लिए नये सिरे से आंदोलन का हवाला देते हुए जीटीए से इस्तीफा दे दिया. सरकार के दबाव के बाद बिमल गुरुंग लंबे समय तक भूमिगत रहे. अब फिर से उन्हें दार्जिलिंग में देखा जा रहा है. हालांकि, इन दिनों दार्जिलिंग में कमोबेश शांति का ही माहौल है. कहीं से किसी तरह की बड़ी गड़बड़ी की जानकारी नहीं आ रही.


दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र की गोरखा आबादी की नजर उसकी दशकों पुरानी मांगों के पूरा होने पर ही टिकी हुई


दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र के चुनाव में स्थानीय गोरखाओं की मांग राजनीतिक समीकरण को बदल सकती है. हाल के हालात पर नजर डालें, तो समीकरण बदलने की पूरी संभावना दिखती है. दार्जिलिंग के भाजपा विधायक नीरज जिंबा ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने खून से लिखी एक चिट्ठी भेजी. इसमें उन्होंने श्री मोदी से कहा कि ‘गोरखाओं का सपना मेरा सपना है’. श्री जिंबा ने गोरखा मुद्दे पर उच्च स्तरीय हस्तक्षेप की मांग की है. अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि गोरखा मुद्दे के समाधान की प्रतिबद्धता अब तक पूरी नहीं हुई. स्थायी राजनीतिक समाधान और गोरखा के उन 11 समुदायों को एसटी का दर्जा देने के मामले का निपटारा अब तक नहीं हुआ.

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2019 में तो बिष्ट ने दूसरे स्थान पर रहने वाले तृणमूल उम्मीदवार को चार लाख से अधिक वोटों से हराया

श्री जिंबा ने प्रधानमंत्री को लिखा कि लद्दाख के लोगों, कश्मीरियों, मिजो, नागा और बोडो के मामले में न्याय हो चुका है, लेकिन गोरखाओं की अनदेखी अब तक होती रही है. केंद्र सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव इसमें झलकता है. भारतीय गोरखाओं को न्याय दिलाने का वक्त आ चुका है. उल्लेखनीय है कि 2009 से दार्जिलिंग ने भाजपा के तीन नेताओं- जसवंत सिंह, एसएस आहलूवालिया और राजू बिष्ट को जिता कर संसद में भेजा है. इन भाजपा उम्मीदवारों ने भारी मतों से जीत दर्ज की है. 2019 में तो बिष्ट ने दूसरे स्थान पर रहने वाले तृणमूल उम्मीदवार को चार लाख से अधिक वोटों से हराया था.

लंबे समय से गोरखाओं की मांगों पर मिल रहा है आश्वासन


1980 से पृथक गोरखालैंड की मांग पहाड़ की राजनीति तो प्रभावित करती रही है. 2017 में 100 दिनों का ‘इकोनॉमिक ब्लॉकेड’ भी हुआ था. 2019 में भाजपा ने पहाड़ के 11 समुदायों को ट्राइबल स्टेटस और स्थायी राजनीतिक समाधान का वादा किया था. नीरज जिंबा के पत्र के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिलीगुड़ी की एक जनसभा से गोरखा समस्याओं के समाधान का एक बार फिर वादा किया. उन्होंने कहा कि गोरखाओं की समस्या को लेकर भाजपा संवेदनशील है. वह इसे अच्छी तरह समझ सकती है. मामले के समाधान के रास्ते पर काफी आगे बढ़ा जा चुका है. गोरखा भाई-बहनों की जो जो समस्याएं हैं, उनकी चिंता को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि हम समाधान के करीब पहुंच गये है.

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दार्जिलिंग के 07 विस क्षेत्र

  • कालिंग्पोंग बीजीपीएम रुदेन सादा लेप्चा
  • दार्जिलिंग भाजपा नीरज जिंबा
  • कार्सियांग भाजपा विष्णु प्रसाद शर्मा
  • माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी भाजपा आनंदमय बर्मन
  • सिलीगुड़ी भाजपा शंकर घोष
  • फांसीदेवा भाजपा दुर्गा मुर्मू
  • चोपड़ा तृणमूल हमीदुल रहमान

आंकड़ों में दार्जिलिंग के मतदाता

  • कुल मतदाता 1600564
  • पुरुष मतदाता 807118
  • महिला मतदाता 793425
  • थर्ड जेंडर 000021

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