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Lok Sabha Election : बोलपुर में 2014 के चुनाव में ढह गया माकपा का किला, तृणमूल कांग्रेस ने लगायी थी सेंध

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Lok Sabha Election :सोमनाथ चटर्जी 1971 में लोकसभा के सदस्य बने जब वह पहली बार सीपीएम (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट) के उम्मीदवार के रूप में चुने गए. वह नौ बार फिर से चुने गए, सिवाय एक बार जब वह 1984 में जादवपुर लोकसभा क्षेत्र में ममता बनर्जी से हार गये थे.

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बोलपुर, मुकेश तिवारी : बीरभूम जिले का बोलपुर संसदीय सीट देश की महत्वपूर्ण सीटों में एक है. इसकी प्रसिद्धि का एक कारण यह है कि यहीं पर विश्वभारती विश्वविद्यालय है. जिसकी स्थापना गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शिक्षा भी यही हुई थी. यह संसदीय क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया. 1967-71 में यह सीट कांग्रेस के पास थी. 1971 में हुए उपचुनाव में इस सीट पर माकपा ने कब्जा जमाया. 1985 में जब यहां फिर से उपचुनाव हुआ तो माकपा के दिग्गज नेता व लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने यहां से चुनाव जीत कर सांसद बने.

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वर्ष 2009 तक सोमनाथ चटर्जी यहां से सांसद चुने गये थे

इसके बाद माकपा की जीत का सिलसिला जारी रहा. वर्ष 2009 तक सोमनाथ चटर्जी यहां से सांसद चुने जाते रहे. वह लगातार सात बार चुनाव जीत कर एक इतिहास लिखा.वर्ष 2009 में माकपा ने डॉ. रामचंद्र डोम को यहां से उतारा. 2014 तक रामचंद्र डोम यहां से सांसद चुने जाते रहे. 2014 में तृणमूल कांग्रेस यहां सेंध लगाने में सफल रही. तृणमूल कांग्रेस के अनुपम हाजरा ने माकपा के रामचंद्र डोम को हरा कर तृणमूल का परचम लहराया. अनुपम हाजरा को 48.33 फीसदी वोट मिला, वहीं माकपा को 30.24 फीसदी वोट हासिल हुआ. इससे पहले 2009 में माकपा के रामचंद्र डोम को 49.90 फीसदी वोट हासिल हुआ था. कांग्रेस के असित कुमार माल दूसरे स्थान पर रहे थे. वर्ष 2019 में हुए चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के असित कुमार माल ने जीत हासिल की. वह कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल में शामिल हो गये थे. उन्हें 47.85 फीसदी वोट मिला था.

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सोमनाथ चटर्जी सात बार सांसद चुने गए

भाजपा उम्मीदवार राम प्रसाद दास दूसरे स्थान पर आये. उन्हें 40.57 फीसदी वोट मिला. जबकि माकपा के रामचंद्र डोम तीसरे स्थान पर आ गए, उन्हें 6.29 फीसदी ही वोट मिल पाया था. तृणमूल व भाजपा के उत्थान के बाद माकपा की ताकत यहां काफी कम हो गयी. अब यहां की राजनीतिक लड़ाई तृणमूल व भाजपा के बीच हो गयी. माकपा हाशिए पर चली गयी. बता दें कि जब यह सीट अस्तित्व में आयी तो कांग्रेस के एके चंदा ने यहां से पहली बार चुनाव जीता था. 1971 से 1985 तक कांग्रेस के सरदीश राय यहां से सांसद चुने जाते रहे. उनकी मृत्यु के बाद जब 1985 में ही यहां उपचुनाव हुआ तो माकपा के सोमनाथ चटर्जी ने यहां से जीत हासिल की. उसके बाद वह लगातार सात बार यहां से सांसद चुने गए. वह हमेशा बड़ी मार्जिन से चुनाव जीतते थे. भारतीय राजनीति में चटर्जी का अपना एक अलग स्थान था.

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पार्टी से निकाले जाने से बहुत दुखी थे सोमनाथ चटर्जी

सोमनाथ चटर्जी 1971 में लोकसभा के सदस्य बने जब वह पहली बार सीपीएम (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट) के उम्मीदवार के रूप में चुने गए. वह नौ बार फिर से चुने गए, सिवाय एक बार जब वह 1984 में जादवपुर लोकसभा क्षेत्र में ममता बनर्जी से हार गये थे. 1989 से 2004 तक वह लोकसभा में अपनी पार्टी के नेता थे. वह 2004 में 10वीं बार बोलपुर लोकसभा क्षेत्र से 14वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने गये थे. 2004 के चुनाव के बाद, उन्हें प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया और बाद में चार जून 2004 को उन्हें सर्वसम्मति से 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया. 2008 में माकपा द्वारा यूपीए के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस लेने के बाद पार्टी ने चटर्जी का नाम उन सांसदों की सूची में शामिल किया, जो स्पीकर के रूप में उनकी गैर-पक्षपातपूर्ण स्थिति के बावजूद, सरकार से अपना समर्थन वापस ले रहे थे.

विश्वास मत परीक्षण में सरकार के खिलाफ मतदान करने के लिए तैयार नहीं हुए

हालांकि, चटर्जी जुलाई 2008 के एक महत्वपूर्ण विश्वास मत परीक्षण में सरकार के खिलाफ मतदान करने के लिए पार्टी लाइन का पालन करने के लिए तैयार नहीं हुए. पार्टी निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए उन्होंने विश्वास मत के दौरान इस क्षमता में कार्य करते हुए सदन के अध्यक्ष के रूप में अपने पद पर बने रहने का फैसला किया. शक्ति परीक्षण में सरकार बच गयी. 23 जुलाई 2008 को माकपा ने उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया. चटर्जी के अनुसार, निष्कासन उनके जीवन का सबसे दुखद क्षण था. पार्टी से निकाल जाने के बाद उन्होंने अगस्त 2008 में घोषणा की कि वह 2009 में अगले चुनाव के समय राजनीति से संन्यास ले लेंगे. उनके निर्वाचन क्षेत्र में उनका व्यापक रूप से सम्मान किया जाता था. माकपा के 2009 के उम्मीदवार, रामचंद्र डोम ने चटर्जी की प्रशंसा करते हुए और अपना काम जारी रखने की कसम खायी, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार असित माल ने सोमनाथ चटर्जी के निष्कासन के मुद्दे पर आमलोगों के बीच बहस की स्थिति पैदा करने की कोशिश की.

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