यूपी विधानसभा चुनाव में इसबार अलग-अलग रंग प्रत्याशियों के देखने को मिल रहे हैं. कोई आकर्षक भेष भूषा में नजर आ रहा है, तो कोई अपने मिजाज में नए रंग भरकर चुनावी मैदान में उतर रहा है. हालांकि सबसे जुदा अंदाज सभी प्रत्याशियों में यदि किसी का है, तो वो है एक मुर्दा व्यक्ति का है, जो कि शिवपुर विधानसभा चुनाव से अपने जीवित होने की दावेदारी के साथ रणनीति के इस मैदान में सत्ता से दो-दो हाथ करने आ रहा है. हम बात कर रहे हैं, कागजो में मृत एक ऐसे व्यक्ति की, जो पिछले 20 साल से “अपने गले में मैं जिंदा हुं की” तख्ती लटकाकर जीवित होने का प्रमाण सरकार को दे रहा है.
इतना समय बीत जाने के बाद भी आजतक किसी ने उसकी पुकार नहीं सुनी, ना ही उसके किसी भी समस्या का समाधान मिला. हर तरफ से निराश होकर चौबेपुर के संतोष मूरत सिंह ने अब लोकतंत्र का सहारा लेने की ठानी है और खुद के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने को वाराणसी के शिवपुर विधानसभा से जनसंघ पार्टी से पर्चा भरकर अपना हक इस सिस्टम से लेने की ठानी है.
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संतोष लंबे वक्त से सिर्फ इसलिए चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं, क्योंकि राजस्व विभाग उन्हें अपनी फाइल में जिंदा कर दे, ताकि वे अपने हिस्से की जमीन पट्टीदारों के कब्जे से वापस ले सके. संतोष ने नामांकन के दौरान बताया कि वे पिछले 20 वर्षों से निर्दलीय ही चुनाव लड़ते आए है, लेकिन जनसंघ पार्टी ने इस बार उन्हे टिकट भी दिया है. उनके पास वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड भी है, लेकिन राजस्व विभाग की फाइल में उन्हें मृत घोषित कर दिया है.
वाराणसी के संतोष मूरत सिंह चौबेपुर के छितौनी गांव के रहने वाले है. उन्होंने मीडिया के सामने बताया कि साल 2000 में फिल्म शूटिंग के दौरान वाराणसी आए अभिनेता नाना पाटेकर ने उन्हें अपने साथ मुंबई ले गए. इस वजह से मैं 3 साल तक नहीं आया. इसके बाद मेरी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर मेरे रिश्तेदारों और अन्य जाति के लोगों ने मिलकर राजस्व विभाग में मुंबई बम ब्लास्ट में मेरी मृत्यु दिखाकर के मेरे हिस्से की सारी 12 एकड़ जमीन अपने नाम कर ली है, तब से लेकर के मैं अबतक ये साबित कर रहा हूं कि मैं मरा नहीं जिंदा हुं. आजतक सरकार के कानों पर जु तक नहीं रेंगा.
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दिल्ली के जंतर मंतर से लेकर तिहाड़ जेल, लखनऊ तक धरना दिए, लेकिन मेरी किसी ने नहीं सुनी. आज भी मैं यहां सब्जी बेचकर जैसे-तैसे जीवन यापन कर रहा हुं. 60 बार अबतक मैं गिरफ्तार हो चुका हूं. जैसे ही कोई वीवीआईपी मूमेंट होता है. प्रशासन हमे पहले ही उठा लेती हैं. सब्जी हमारी सड़ जाती है, सब्जी तक नहीं बेचने देते हैं. यहां के एसओ साहब कहते हैं कि मैं कामचोर हुं, मुझे तो यहां सब्जी तक बेचने नहीं दिया जाता क्या बताऊं.
संतोष यह सब बात कहते-कहते फफक-फफक के रोने लगते हैं. वह कहते हैं कि थक गया हूं, साबित करते-करते और न्याय मांगते-मांगते. मुख्यमंत्री से अब क्या इंसाफ की उम्मीद करे, अब तो फिर से सरकार बनने का समय आ रहा है, जबतक सत्ता में रहे तबतक तो इन्होंने कुछ नहीं किया. जब वोट लेना होता है, तो नेता लोग कहते हैं कि हमारी सरकार बनते ही जिंदा कर देंगे तुम्हे और जैसे ही सरकार बनती है, तो भूल जाते हैं.
28 जून 2012 में लखनऊ हजरतगंज में एफआईआर भी दर्ज है. इसीलिए इन सारी बातों से त्रस्त होकर मैंने चुनाव लड़ने का फैसला किया है, वे बताते है साल 2012 में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए तिहाड़ जेल से नामांकन भरा था. उनकी मुलाकात यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव और वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ से भी हो चुकी है, लेकिन किसी से मदद नहीं मिल सकी. वह राष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा और बीडीसी, सारे चुनावों में पर्चा भर चुके हैं. इस बार भी कानपुर से उनका पर्चा भी खारिज हो चुका है. 2017 के विधानसभा चुनाव में वे चुनाव में वाराणसी से खड़े हुए थें और उनका दावा है कि उन्हें काफी वोट भी मिले. उन्होंने दावा किया कि अगर वे जीतते हैं, तो मजलूमों की आवाज बनेंगे और अपने को जिंदा घोषित करवाने के बाद सरकारी अभिलेखों में ऐसे मृतकों की भी लड़ाई लड़ेंगे.
रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी