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किस्सा नेताजी का: जब इंदिरा गांधी के फैसले के बाद बेटे संजय नहीं बन सके यूपी के सीएम, दोस्त की कोशिश हुई फेल

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उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र में भी पार्टी को विधानसभा चुनाव रिजल्ट में बंपर जीत मिली थी. दस राज्यों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल चुका था. सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश की हो रही थी. कांग्रेसी विधायक संजय गांधी को सीएम देखना चाह रहे थे.

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UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव होने हैं. इसकी सरगर्मी भी दिख रही है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई कहानियां प्रचलित हैं. आज हम बताते हैं संजय गांधी के बारे में. 1980 का एक वाकया आज भी कांग्रेस के पुराने नेताओं की जुबां पर है. 1980 में कांग्रेस विधायकों को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनना था. संजय गांधी एक ऐसा नाम था, जिन्हें विधायक दल का नेता लगभग चुन लिया गया था. लेकिन, विधायकों का फैसला एक झटके में बैकसीट पर डाल दिया गया.

1980 में जनता पार्टी टूट गई थी. लोकसभा के मिड टर्म पोल (मध्यावधि चुनाव) में कांग्रेस पार्टी को बड़ी सफलता हासिल हुई थी. इंदिरा गांधी को पीएम चुना गया. उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र में भी पार्टी को विधानसभा चुनाव रिजल्ट में बंपर जीत मिली थी. दस राज्यों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल चुका था. सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश की हो रही थी. कांग्रेसी विधायक संजय गांधी को सीएम देखना चाह रहे थे.

कांग्रेस को यूपी में दो तिहाई बहुमत मिला. कांग्रेस के दिग्गज और पुराने नेता जैसे नारायण दत्त तिवारी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा खुद को सीएम की रेस में मान रहे थे. वहीं, पुराने नेताओं की जगह आलाकमान नए चेहरे को देख रहा था. इसी बीच संजय गांधी के दोस्त अकबर अहमद डंपी सामने आए. उन्होंने विधायकों से संजय गांधी को सीएम बनाने का प्रस्ताव पारित कराया और दिल्ली पहुंच गए.

माना जा रहा था कि संजय गांधी को यूपी का सीएम चुना जाएगा. वहीं, इंदिरा गांधी से कई दिग्गज नेताओं ने दूरी बना ली थी. इस हालत में इंदिरा गांधी संजय गांधी को उत्तर प्रदेश का सीएम बनाकर खुद से दूर नहीं करना चाहती थीं. इंदिरा गांधी ने विधायक दल के फैसले को नामंजूर कर दिया. संजय गांधी के यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की संभावना खत्म हो गई. संजय गांधी की जगह वीपी सिंह को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और संजय गांधी दिल्ली में ही रह गए.

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