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अनोखा मंदिर: यहां आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर पुजारी करते हैं पूजा, देव दर्शन करने पर जा सकती है जान, जानें रहस्य

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देवभूमि उत्तराखंड का विश्व प्रसिद्ध लाटू देवता का मंदिर अपने अंदर रहस्य को समाए हुए है. इस मंदिर में पुजारी और श्रद्धालु दोनों ही देव दर्शन नहीं कर सकते. पुजारी जहां आंख और मुंह पर पट्टी बांधकर मंदिर में दाखिल होते हैं, वहीं श्रद्धालु 75 फीट दूरी पर रहते हैं. इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है.

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देश के हर हिस्से में ऐसे मंदिर हैं, जो अपनी विशेषताओं के कारण बेहद प्रसिद्ध हैं और श्रद्धालु दूर-दूर से यहां दर्शन पूजन के लिए आते हैं. लेकिन, एक ऐसा मंदिर भी है. जहां लोग अपनी मन्नत के लिए आते तो हैं मगर उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं होती. वह मंदिर के अंदर कदम तक नहीं रख सकते. इतना ही नहीं मंदिर के पुजारी तक को भगवान के दर्शन की इजाजत नहीं है. वह आंखों और मुंह पर पट्टी बांधकर ही मंदिर में दाखिल होते हैं और पूजा करते हैं. इसके बाद मंदिर से बाहर आने पर ही वह पट्टी खोलते हैं. जानते हैं ये मंदिर कहां है और यहां अनोखी तरह की पूजा अर्चना के पीछे क्या कारण है.

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नागराज के रूप में मौजूद हैं लाटू देवता

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है और इसी देवभूमि में चमोली जनपद के देवाल विकासखंड का वांण स्थित लाटू देवता का अनोखा मंदिर समुद्रतल से आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जिसकी बेहद मान्यता है. खास बात है कि इस मंदिर के कपाट साल में एक ही बार खुलते हैं. मान्यता है कि लाटू देवता नागराज के रूप में यहां विद्यमान हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक लाटू देवता मां पार्वती की स्वरूप उत्तराखंड की नंदा देवी के धर्म भाई हैं.

मंत्रोच्चारण के साथ खुले ​कपाट

हर वर्ष की तरह इस बार भी वैशाख पूर्णिमा के दिन लाटू देवता मंदिर के कपाट विधि विधान और मंत्रोच्चारण के साथ खुले. इस मौके पर देवभूमि के अलावा उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों से आए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रही. उन्होंने मान्यता के अनुरूप मंदिर से 75 फीट की दूरी पर पूजन किया. मंदिर के कपाट खुलने के बाद विष्णु सहस्रनाम और भगवती चंडिका पाठ किया गया.

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मां नंदा देवी के भाई होने के कारण विशेष मान्यता

नंदा देवी के भाई होने के कारण लाटू देवता की विशेष मान्यता है. देवभूमि में हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाली एशिया की सबसे लंबी पैदल धार्मिक यात्रा नंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान वांण से आगे उच्च हिमालयी क्षेत्र की यात्रा के अगुवा लाटू देवता होते हैं. वांण से आगे निर्जन पड़ाव की यात्रा के दौरान नंदा देवी को विदा करने के लिए लाटू देवता धर्मभाई की अपनी भूमिका निभाते हैं.

पुजारी इसलिए बांधते हैं पट्टी

मान्यता है कि मंदिर में नागराज अपनी मणि के साथ रहते हैं, जिसे देख पाना आम लोगों के लिए संभव नहीं है. वह अंधे तक हो सकते हैं या जान भी जा सकती है. पुजारी भी नागराज के रूप को देखकर डर न जाएं, इसलिए वे आंखों पर पट्टी बांधकर दरवाजा खोलते हैं और पूजा अर्चना करते हैं. यही नहीं मुंह पर पट्टी भी इसलिए बांधते हैं कि कहीं उनके मुंह की गंध देवता तक और न ही नागराज की विषैली गंध पुजारी की नाक तक पहुंच पाए.

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लाटू देवता से जुड़ी कहानी

लाटू देवता की अनेक कथा प्रचलित हैं. इनमें एक के मुताबिक लाटू भगवान भोले और मां नंदा के सेनापति भी थे. एक बार वह कहीं से आ रहे थे. रास्ते में काफी रात होने पर उन्होंने चमोली के वांण क्षेत्र में ठहरने का निर्णय किया. वह एक वृद्ध महिला की कुटिया में गए. वहां उन्होंने पीने के लिए पानी मांगा. वृद्ध महिला ने अपनी खराब सेहत का हवाला देते हुए उनसे मटके में रखा पानी स्वयं निकालकर पीने को कहा. लाटू पानी निकालने गए, तो वहां दो मटके थे. एक में पानी रखा था और दूसरे में शराब थी, जिसे उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग बेहद ठंड में अपने जीवनयापन के लिए प्रयोग करते थे.

लाटू देवता ने गलती से मटके से शराब पी ली. इस वजह से उन्हें अत्यधिक नशा हो गया और गिरने की वजह से उनकी जीभ कट गई, जिससे वह गूंगे हो गए. जब मां नंदा देवी को इसका पता चला तो वे बहुत दुखी हुई. उन्होंने लाटू से कहा कि आज के बाद तुम यहीं और देवता के रूप में पूजे जाओगो. जब भी मैं मायके से ससुराल जाऊंगी, तब तुमसे मिलकर जाऊंगी और यहां से आगे तुम मेरी यात्रा की अगवानी करोगे. इसके बाद से ये पंरपरा आज तक चली आ रही है.

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