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UP Politics: अखिलेश यादव के दलित वोट में निगाह से बसपा में बेचैनी, नए सियासी समीकरण बनते देख मायावती हमलावर…

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UP Politics: अब तक लोहियावाद की राजनीति करती आई सपा इसमें अंबेडकर की विचारधार को भी जोड़ रही है. इसीलिए अखिलेश यादव अंबेडकरवादी और लोहियावादी के साथ मिलकर काम करने की बात कह चुके हैं. अब अखिलेश यादव को दलित पिच पर बैटिंग करते देख बसपा चौकन्ना हो गई है.

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Lucknow: उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव से पहले विपक्षी दल अपनी रणनीति को धार देने में जुट गए हैं. हालांकि इसका लक्ष्य सिर्फ निकाय चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी बिसात बिछाई जा रही है. इसमें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जिस तरह से दलित पॉलिटिक्स को लेकर अपने तेवर दिखाए हैं, उससे बसपा खेमे में साफ हलचल देखी जा रही है.

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लोहिया के साथ अंबेडकर की राजनीति पर आगे बढ़ेगी पार्टी

दरअसल अब तक लोहियावाद की राजनीति करती आई सपा इसमें अंबेडकर की विचारधार को भी जोड़ रही है. इसीलिए अखिलेश यादव अंबेडकरवादी और लोहियावादी के साथ मिलकर काम करने की बात कह चुके हैं. अपनी रणनीति को सफल बनाने के लिए सपा ने ‘बाबा साहेब वाहिनी’ का गठन किया तो पार्टी के कार्यक्रमों में अब डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर दिखाई देने लगी है. सपा जनता के बीच ये संदेश देना चाहती है कि भाजपा के विकल्प के रूप में वही सबसे मजबूत है और इसके लिए लोहियावादी और अंबेडकरवादी विचारधारा के लोगों को उसके एक साथ आना चाहिए.

मायावती से खफा होकर आए नेताओं को दी गई अहमियत

अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस दिशा में काम करना शुरू भी कर दिया है. इसके लिए मायावती से नाराज बसपा के दलित नेताओं को पार्टी में शामिल होने के बाद बेहद अहमियत दी जा रही है. इंद्रजीत सरोज, केके गौतम, त्रिभुवन दत्त, आर के चौधरी और अवधेश प्रसाद जैसे नेताओं को अखिलेश यादव बसपा की काट के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. इन नेताओं को तवज्जो देकर अखिलेश यादव ने ये जताने का प्रयास किया है कि सपा दलितों की न सिर्फ हितैषी है, बल्कि उनके मान सम्मान का भी पूरा ध्यान रखती है.

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जातियों के बड़े वर्ग में पैठ बनाने की कोशिश

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक सपा अपने परंपरागत मुस्लिम यादव समीकरण में गैर यादव ओबीसी और दलितों के बड़े वर्ग को जोड़ने की दिशा में तेजी से काम कर रही है. ताकि जातियों के एक बड़े वर्ग के बीच अपनी पैठ बनाते हुए भाजपा को चुनौती दी जा सके. इसीलिए कांशीराम जयंती और अंबेडकर जयंती पर कार्यक्रम भी उसके एजेंडे में हैं, जबकि अभी तक वह सिर्फ समाजवादी नेताओं के कार्यक्रम तक सीमित रही है.

अखिलेश को दलित पिच पर बैटिंग करता देख बसपा चौकन्ना

अब अखिलेश यादव को दलित पिच पर बैटिंग करते देख बसपा चौकन्ना हो गई है. यही वजह है कि पार्टी सुप्रीमो मायावती को एक बार फिर चर्चित गेस्ट हाउस कांड याद आ गया है और वह सपा पर पहले से ज्यादा हमलावर हो गई हैं. जबकि पूर्व में वह स्वयं लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन कर चुकी हैं. उन्होंने मुलायम सिंह यादव के साथ मंच भी साझा किया और अखिलेश यादव की मौजूदगी में इस विषय से आगे बढ़ने की बात कही.

भाजपा से लड़ने के बजाय बसपा को कर रही कमजोर

अखिलेश यादव का कांशीराम की प्रतिमा का अनवरण करना भी मायावती को रास नहीं आ रहा है. यही वजह है कि उन्होंने सपा पर कांशीराम के नाम को भुनाने की पैंतरेबाजी करने का आरोप लगाया और कहा कि सपा का कांशीराम के प्रति एहसान फरामोशी का इतिहास लोगों के सामने है. मायावती ने सपा पर दलित, अति पिछड़ा व मुस्लिम समाज के प्रति खराब सोच व गलत रवैये का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि इसी वजह से पहले भी सपा बसपा का गठबंधन टूटा था. आज भी सपा, भाजपा से लड़ने की बजाय बसपा को कमजोर करने का काम करने से बाज नहीं आ रही है. इसका लाभ भाजपा उठा रही है.

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