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वाह रे यूपी पुलिस! जिसे मिला था ईमानदारी के लिए वीरता पदक, वही निकला भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का सरगना

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यूपी के मेरठ जिले में जिस इंस्पेक्टर को ईमानदारी के लिए वीरता का पद मिला,वहीं भ्रष्टाचार और रिश्वत खोरी का सरगना निकला. पुलिस ने आरोपी इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है.

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UP News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मेरठ (Meerut) जिले से चौंकाने वाला मामला सामने आया है. यहां स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त के दिन जिस इंस्पेक्टर को वीरता पदक मिला था, वही भ्रष्टाचार में फंस गए हैं. इंस्पेक्टर का नाम बिजेंद्र सिंह राणा (Inspector Bijendra Singh Rana) है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इंस्पेक्टर ने थाने पर भ्रष्टाचार मुक्त के पोस्टर खुद चस्पा कराए थे और सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी वायरल की थी जिसमें इंस्पेक्टर ने दावा किया था कि उनका थाना अब भ्रष्टाचार से मुक्त हो गया है. अब जब इंस्पेक्टर की पोल खुली है तो सभी अधिकारी और पुलिसकर्मी हैरान रह गए.

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एसएसपी को तीन बार मिली इंस्पेक्टर की शिकायत

दरअसल, सोतीगंज में लगातार वाहन चोरों और कबाड़ियों के खिलाफ अभियान चलाया गया, फिर भी वहां पर लगातार चोरी के वाहन मिल रहे थे. इस दौरान सदर थाने की तीन शिकायत एसएसपी प्रभाकर चौधरी तक पहुंची. तीन बार कबाड़ी भी एसएसपी आवास पर शिकायत लेकर पहुंचे, जिसके बाद से ही पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे थे. एसएसपी ने भ्रष्टाचार को लेकर पहली क्राइम मीटिंग में सभी थानेदारों को चेतावनी दी थी.

15 अगस्त को मिला था वीरता पदक

सदर बाजार इंस्पेक्टर बिजेंद्र राणा के कंकरखेड़ा थाने में पोस्टिंग के दौरान ही दिल्ली का शातिर अपराधी शक्ति नायडू एनकाउंटर में ढेर हुआ था, जिसको लेकर तत्कालीन एसएसपी और इंस्पेक्टर को को 15 अगस्त पर गैलेंट्री अवार्ड मिला था. भ्रष्टचार का मुकदमा दर्ज करने के बाद बिजेंद्र राणा का यह पदक भी वापस हो सकता है. उसके लिए शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी. वहीं इंस्पेक्टर बिजेंद्र राणा का कहना है कि सिपाही के द्वारा लगाया गया वसूली का आरोप बेबुनियाद है. पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.

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भ्रष्टाचार के मामले में बदनाम रहा है सदर थाना

सदर थाना हमेशा ही भ्रष्टाचार के मामले में बदनाम रहा है. इस थाने के बारे में कहा जाता है कि यहां पोस्टिंग को लेकर इंस्पेक्टर और दारोगाओं में बोली लगती है. जब सपा और बसपा की सरकार थी, यहां नेताओं के करीबी इंस्पेक्टर को चार्ज मिलता था. बीजेपी की योगी सरकार आने के बाद भी सदर थाने में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ. केवल दिखावे के लिए पुलिस कबाड़ियों पर कार्रवाई करती है. इसी वजह से यहां लगातार आपराधिक घटनाएं हो रही हैं.

भ्रष्टाचार का दूसरा मुकदमा

एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने भ्रष्टाचार का यह दूसरा मुकदमा दर्ज कराया है. अब तक भ्रष्टाचार के मामले में 15 पुलिसवाले सस्पेंड किए गए हैं जबकि 100 से ज्यादा पुलिस लाइन में भेज दिए गए. दो सप्ताह पहले भी एसएसपी ने गंगानगर थाने में दारोगा के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का मुकदमा दर्ज कराया था.

कैसे मामले का हुआ खुलासा

दरअसल, एसएसपी को जानकारी मिली कि इंस्पेक्टर बिजेंद्र सिंह राणा रिश्वत ले रहे हैं. इस पर उन्होंने गोपनीय जांच करवाई. इस बीच एसएसपी को सूचना मिली कि एक कबाड़ी, जिसका नाम है वकार है, उससे इंस्पेक्टर की एक लाख रुपये की डील हुई है, जिसके बाद एसएसपी ने एसपी सिटी के नेतृत्व में जांच टीम का गठन किया. इस जांच टीम ने सिपाही मनमोहन सिंह की घेराबंदी की. वकार मुजफ्फरनगर से मेरठ पहुंचेगा, इसकी जानकारी मिलने पर वकार के साथ सादी वर्दी में चार पुलिस वाले भी लग गए और रुपये लेते ही सिपाही को दबोच लिया. जब चार घंटे तक पुलिस लाइन में सिपाही से पूछताछ की गई तो उसने इंस्पेक्टर की सारी पोल खोलकर रख दी.

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अपने ही जाल में फंसे इंस्पेक्टर

दरअसल, एसएसपी ने चार दिन पहले इंस्पेक्टर सदर बाजार बिजेंद्र सिंह राणा को ट्रक चोरी के मामलों की जांच करने के आदेश दिए थे. इस पर इंस्पेक्टर ने मामले का राजफाश तो कर दिया, लेकिन खुद भ्रष्टाचार में फंस गया. इंस्पेक्टर ने ट्रक चोरी के आरोपियों से ही रुपये वसूलने शुरू कर दिये. जब एसएसपी ने ट्रक बरामद कराने के लिए ट्रक मालिक और ड्राइवर को छोड़ने के लिए कहा तो इंस्पेक्टर की नीयत बदल गई.

इंस्पेक्टर ने कबाड़ी को धमकाया

इंस्पेक्टर ने ट्रक मालिक और ड्राइवर से मोटी रकम वसूलने के बाद कबाड़ी को नहीं छोड़ा. ट्रक मालिक ने कबाड़ी वकार को ट्रक बेचने की बात कही थी, जो झूठ पाई गई. इंस्पेक्टर ने वकार को धमकाया और फिर सिपाही को उसके पीछे लगा दिया. सिपाही ने वकार से कहा कि रुपये दिये बिना यहां से नहीं छूटोगे, जिस पर वकार ने एक लाख रुपये देने की बात कही.

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Posted by : Achyut Kumar

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