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Mathura News: बांके बिहारी की क्यों नहीं की जाती मंगला आरती, क्या है कारण, पढ़ें खास रिपोर्ट

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Mathura News: मथुरा बांके बिहारी के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु वृंदावन पहुंचते हैं. बांके बिहारी के अलावा धर्मनगरी मथुरा के प्रत्येक मंदिर में सुबह चार से पांच के बीच ठाकुर जी की मंगला आरती होती है. लेकिन बांके बिहारी मंदिर में ऐसा नहीं है.

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Mathura News: मथुरा वृंदावन के बांके बिहारी के दर्शन तो आपने कई बार किए होंगे. बांके बिहारी के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु वृंदावन पहुंचते हैं. ऐसे में क्या आपको पता है कि वृंदावन के बांके बिहारी के अलावा धर्मनगरी मथुरा के प्रत्येक मंदिर में सुबह 4:00 से 5:00 के बीच ठाकुर जी की मंगला आरती होती है. लेकिन बांके बिहारी मंदिर में ऐसा नहीं है. बांके बिहारी मंदिर में आखिर क्यों मंगला आरती नहीं होती इसके पीछे का कारण जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

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क्यों होती है मंगला आरती

बताया जाता है कि ठाकुर बांके बिहारी जी के दर्शन रोजाना सैकड़ों हजारों की संख्या में भक्तजन करते हैं. ऐसे में तमाम भक्त ठाकुर जी को काफी देर तक एकटक निहारते हैं. कई बार ठाकुर जी को श्रद्धालुओं की नजर भी लग जाती है, और इसी नजर को उतारने के लिए श्रृंगार, राजभोग और शयन भोग के समय उनकी आरती की जाती है.

बांके बिहारी मंदिर में यह आरती तीन बार की जाती है, लेकिन अन्य मंदिरों में चार बार आरती की जाती है. बांके बिहारी मंदिर में ठाकुर जी का श्रृंगार होने के बाद श्रृंगार आरती होती है. फिर जब उन्हें राजभोग परोसा जाता है तो भोग ग्रहण करने के बाद फिर से आरती होती है. जिसे राजभोग आरती कहा जाता है. और शाम को मंदिर के पट बंद होने के बाद ठाकुर जी सोने के लिए जाते हैं और उससे पहले उनकी शयन आरती की जाती है जिसे शयन भोग आरती कहा जाता है.

बांके बिहारी मंदिर में क्यों नहीं होती मंगला आरती

ठाकुर बांके बिहारी जी का प्राकट्य निधिवन राज मंदिर में संगीत सम्राट स्वामी हरिदास की साधना से प्रसन्न होकर विक्रम संवत 1567 में हुआ था. इसके बाद स्वामी हरिदास निधिवन राज मंदिर में ही अपने आराध्य की सेवा किया करते थे. मान्यता है कि ठाकुर बांके बिहारी जी आज भी निधिवन राज मंदिर में हर रात को आते हैं और श्री राधा जी व सखियों के साथ रास लीला रचाते हैं. और इस लीला के बाद थक हार कर ठाकुर जी अपने वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में पहुंचकर तीसरे पहर पर विश्राम करते हैं.

ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों का कहना है कि रात भर रासलीला करने के बाद जब वे तीसरे पहर पर मंदिर में विश्राम करने पहुंच जाते हैं, तो उस समय वह काफी थके हुए होते हैं. ऐसे में उन्हें अपनी नींद भी पूरी करनी होती है. इसीलिए उन्हें मंगला आरती के समय उठाया नहीं जाता है. जब सुबह बांके बिहारी विश्राम करने के बाद उठते हैं. तब उनका श्रृंगार किया जाता है. और उसके बाद वह भक्तों को दर्शन देते हैं और उस समय जो आरती होती है उसे श्रृंगार आरती कहा जाता है.

मंदिर के सेवायतों ने बताया कि बाकी बिहारी को हम बालक की तरह से रखते हैं. उनकी आवभगत, पूजन, सेवा, श्रृंगार और भोग सब कुछ एक लल्ला की तरह किया जाता है. उन्हें मूर्ति नहीं अपितु साक्षात श्री कृष्ण के बाल स्वरूप के रूप में देखा जाता है. इसीलिए उनकी हर परेशानी और खुशी का ध्यान रखा जाता है.

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