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1857 के अमर नायक राजा जयलाल सिंह किताब का विमोचन, आईपीएस प्रताप गोपेंद्र ने लिखी है पुस्तक

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आईपीएस प्रताप गोपेंद्र ने 1857 की क्रांति के अमर नायक राजा जयलाल सिंह पर किताब लिखी है. इस किताब का विमोचन लखनऊ में आयोजित 19वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला में शनिवार को किया गया. अतरौलिया नरेश राजा जयलाल सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युद्ध की पद्धति का इख्तियार कर दुश्मनों के छक्के छुड़ाये थे.

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Lucknow: 1857 की क्रांति के अमर नायक राजा जयलाल सिंह की वीर गाथाओं पर आधारित पुस्तक का विमोचन शनिवार को बलरामपुर गार्डन लखनऊ में आयोजित 19वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला में किया गया. इस किताब के लेखक आईपीएस प्रताप गोपेंद्र हैं. यह उनकी चौथी किताब है.

राजा जयलाल के बिना 1857 की क्रांति की गाथा अधूरी

1857 के अमर नायक राजा जयलाल सिंह पुस्तक के लेखक आईपीएस प्रताप गोपेंद्र ने बताया कि 1857 की क्रांति के कई ऐसे अमर नायक हुए हैं, जिनको इतिहास ने भुला दिया. लेकिन उनके योगदान को कम करके आंका नहीं जा सकता है. राजा जयलाल सिंह भी उसी पंक्ति के अग्रणी नायक हैं, जिनके बिना अवध में हुई 1857 की क्रांति की गाथा अधूरी रहेगी.

बेगम हजरत महल के सेनापति थे राजा जयलाल सिंह

आईपीएस प्रताप गोपेंद्र ने बताया कि अंग्रेजों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को उनकी गद्दी से बेदखल कर डाला. लेकिन उनकी बेगम हज़रत महल ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नाक में दम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों के साथ सबसे लंबे वक्त तक जंग लड़ी. जो उनके सेनापति रहे राजा जयलाल सिंह की बदौलत ही संभव हो सका था.

1857 की क्रांति के नायकों के साथ नहीं हुआ इंसाफ

विशिष्ट अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के पश्चात इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार ने बताया कि इतिहास और इतिहासकारों ने 1857 की क्रांति के कई नायकों के साथ इंसाफ नहीं किया है. विभिन्न आर्काइव्ज में उनके बलिदानों के किस्से मौजूद हैं. उन्हें संकलित करने की जद्दोजहद कोई नहीं करना चाहता है. ऐसे में तमाम इतिहासकारों को आईपीएस प्रताप गोपेंद्र जैसे ब्यूरोक्रेट्स से सीख लेनी चाहिए.

दलित, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के नायकों के साथ भेदभाव

वरिष्ठ साहित्यकार शिवमूर्ति ने कहा कि दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के नायकों के साथ सबसे ज्यादा भेदभावपूर्ण रवैया इख्तियार किया गया. ऐसे में इन वर्ग के लोगों को जागृत होकर अपने असली महापुरुषों की पहचान स्वयं करनी चाहिए और अपने समाज में जागरूकता फैलानी चाहिए. उन्होंने कहा कि राजा जयलाल सिंह कुर्मी क्षत्रिय थे. वह बेहतरीन तलवारबाज थे और कुशल रणनीतिकार भी. यही वजह है कि गिनती के सैनिक होने के बावजूद उन्होंने लंबे समय तक अंग्रेजों को शहर में प्रवेश नहीं करने दिया. 

राजा जयलाल सिंह ने करायी थी बेगम हजरत महल के बेटे की ताजपोशी

चौरी चौरा, भील विद्रोह और अवध का किसान विद्रोह के लेखक एवं प्रसिद्ध इतिहासकार सुभाष कुशवाहा ने कहा कि हज़रत महल ने चिनहट जंग के बाद 5 जून 1857 को अपने 11 साल के बेटे बिरजिस क़द्र को अवध का ताज पहनाया. इस लड़ाई का नतीजा ये रहा कि अंग्रेज़ों को लखनऊ रेजिडेंसी में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा. ताजपोशी की पूरी रस्म राजा जयलाल सिंह के नेतृत्व में अदा की गई.

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