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Mathura News: होली के बाद दाऊजी के हुरंगा में झूमे भक्त, रंग और गुलाल से सतरंगी हुआ आसमान

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Mathura News: ब्रजमंडल की होली का खुमार लोगों के ऊपर से अभी तक उतरा नहीं है. ब्रज मंडल में अब भी होली के अलग-अलग आयोजन किए जा रहे हैं. मथुरा जनपद के बलदेव में होली के बाद शनिवार को हुरंगा खेला गया. भांग की मस्ती में सभी भक्तजन डूबे नजर आए. जैसे ही भगवान श्री कृष्ण और बलदेव के स्वरूपों ने होली खेलने की इजाजत दी, तो मानों कुछ ही देर में आसमान से फूलों की और अबीर गुलाल की बरसात होने लगी.

मंदिर में जहां हुरियारे झूम रहे तो वहीं दूसरी तरफ हुरियारिन टेसू के रंग बरसा रहीं थी. वहीं दूसरी तरफ हुरियारों पर हुरियारिन कपड़े के बनाए गए कोड़े से वार कर रहीं थी. भक्तों की भीड़ और टेसू के रंग में रंगे हुए लोगों से मंदिर का आंगन पूरी तरह से भर चुका था. कोड़ा मार होली से बलदेव का वातावरण भी हुरंगामय हो गया था. मंदिर में सभी मौजूद श्रद्धालु बस यही गा रहे थे कि ‘ब्रज में होली खेल रहौ, दाऊदयाल बड़े भागन ते हुरंगा आयौ, बरसाओ री रंग बरसाओ’ रसियाओं पर भक्तजन नृत्य कर रहे थे.

होली के बाद शुरू हुआ हुरंगा का दौर

ब्रज में होली के बाद हुरंगा का दौर शुरू हो जाता है. बलदेव के हुरंगा में सराबोर होने के लिए देश-विदेश से तमाम श्रद्धालु पहुंचते हैं. मंदिर प्रांगण में हुरंगा के दिन इतनी भीड़ होती है कि पैर रखने की भी जगह नहीं होती. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु बलदाऊ महाराज और रेवती मैया के दर्शन कर अपने आप को सौभाग्यमय बनाते हैं.

मंदिर की सजावट बनी आकर्षण का केंद्र

बलदाऊ मंदिर में सुबह से ही परंपरागत समाज गायन भी शुरू हो गया. श्रद्धालुओं के लिए मंदिर की आकर्षक सजावट भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. सबसे पहले हुरियारिनों ने भांग घोट कर दाऊजी महाराज का भोग लगाया. जिसके बाद श्री कृष्ण बलराम के स्वरूप सखियों के साथ विराजमान हो गए.

फूलों की खुशबू से महक उठा पूरा वातावरण

दोपहर 12 बजे के बाद हुरियारे और हुरियारिन रसिया गाते हुए मंदिर में प्रवेश कर गए. रसिया गायन में श्रद्धालु पूरी तरह से झूम रहे थे, तो वहीं हुरियारिन भी थिरकने लगी थीं. जिसके बाद झंडा लेकर दाऊजी महाराज को आमंत्रित किया गया. बलराम कुमार होली खेले के स्वर के साथ हुरंगा शुरू हो गया. मंदिर में फूलों और अबीर गुलाल की बरसात हो रही थी जिससे बलदेव का आसमान सतरंगी हो गया था, और दूसरी तरफ फूलों की खुशबू से पूरा वातावरण महक रहा था.

रिपोर्ट- राघवेंद्र गहलोत

Mathura News: ब्रजमंडल की होली का खुमार लोगों के ऊपर से अभी तक उतरा नहीं है. ब्रज मंडल में अब भी होली के अलग-अलग आयोजन किए जा रहे हैं. मथुरा जनपद के बलदेव में होली के बाद शनिवार को हुरंगा खेला गया. भांग की मस्ती में सभी भक्तजन डूबे नजर आए. जैसे ही भगवान श्री कृष्ण और बलदेव के स्वरूपों ने होली खेलने की इजाजत दी, तो मानों कुछ ही देर में आसमान से फूलों की और अबीर गुलाल की बरसात होने लगी.

मंदिर में जहां हुरियारे झूम रहे तो वहीं दूसरी तरफ हुरियारिन टेसू के रंग बरसा रहीं थी. वहीं दूसरी तरफ हुरियारों पर हुरियारिन कपड़े के बनाए गए कोड़े से वार कर रहीं थी. भक्तों की भीड़ और टेसू के रंग में रंगे हुए लोगों से मंदिर का आंगन पूरी तरह से भर चुका था. कोड़ा मार होली से बलदेव का वातावरण भी हुरंगामय हो गया था. मंदिर में सभी मौजूद श्रद्धालु बस यही गा रहे थे कि ‘ब्रज में होली खेल रहौ, दाऊदयाल बड़े भागन ते हुरंगा आयौ, बरसाओ री रंग बरसाओ’ रसियाओं पर भक्तजन नृत्य कर रहे थे.

होली के बाद शुरू हुआ हुरंगा का दौर

ब्रज में होली के बाद हुरंगा का दौर शुरू हो जाता है. बलदेव के हुरंगा में सराबोर होने के लिए देश-विदेश से तमाम श्रद्धालु पहुंचते हैं. मंदिर प्रांगण में हुरंगा के दिन इतनी भीड़ होती है कि पैर रखने की भी जगह नहीं होती. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु बलदाऊ महाराज और रेवती मैया के दर्शन कर अपने आप को सौभाग्यमय बनाते हैं.

मंदिर की सजावट बनी आकर्षण का केंद्र

बलदाऊ मंदिर में सुबह से ही परंपरागत समाज गायन भी शुरू हो गया. श्रद्धालुओं के लिए मंदिर की आकर्षक सजावट भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. सबसे पहले हुरियारिनों ने भांग घोट कर दाऊजी महाराज का भोग लगाया. जिसके बाद श्री कृष्ण बलराम के स्वरूप सखियों के साथ विराजमान हो गए.

फूलों की खुशबू से महक उठा पूरा वातावरण

दोपहर 12 बजे के बाद हुरियारे और हुरियारिन रसिया गाते हुए मंदिर में प्रवेश कर गए. रसिया गायन में श्रद्धालु पूरी तरह से झूम रहे थे, तो वहीं हुरियारिन भी थिरकने लगी थीं. जिसके बाद झंडा लेकर दाऊजी महाराज को आमंत्रित किया गया. बलराम कुमार होली खेले के स्वर के साथ हुरंगा शुरू हो गया. मंदिर में फूलों और अबीर गुलाल की बरसात हो रही थी जिससे बलदेव का आसमान सतरंगी हो गया था, और दूसरी तरफ फूलों की खुशबू से पूरा वातावरण महक रहा था.

रिपोर्ट- राघवेंद्र गहलोत

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