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बरेली की नौमहला मस्जिद में नमाज के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बनती थी रणनीति, यहां से जली 1857 क्रांति की अलख

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रुहेला फौज ने अंग्रेजी हुकूमत को अपने शौर्य से धूल चटाई थी. बरेली की नौमहला मस्जिद में इबादत के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी. मुल्क में 1857 की क्रांति को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला स्वतन्त्रता संग्राम आंदोलन माना जाता है. मगर इस क्रांति में भी रुहेलखण्ड का भी विशेष योगदान है.

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Azadi Ka Amrit Mahotasava In Bareillly: मुल्क की जंग-ए-आजादी की लड़ाई में रुहेलखंड की मुख्य भूमिका है. यहां की रुहेला फौज ने अंग्रेजी हुकूमत को अपने शौर्य से धूल चटाई थी. बरेली की नौमहला मस्जिद में इबादत के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी. मुल्क में 1857 की क्रान्ति को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला स्वतन्त्रता संग्राम आंदोलन माना जाता है. मगर इस क्रांति में भी रुहेलखण्ड का भी विशेष योगदान है.

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निगाह रखने की हिदायत दी

रुहेला सरदार नवाब खान बहादुर खान ने क्रांतिकारियों के साथ रुहेलखंड में अंग्रेजों की सेना से कड़ा मोर्चा लिया था. इस दौरान नौमहला मोहल्ले में नौमहला मस्जिद क्रांतिकारियों का गढ़ थी. अंग्रेजों को ईद के बाद बगावत की आशंका थी. बरेली के प्रमुख क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की योजना बनाई जाती थी. नौमहला मुहल्ले की नौमहला मस्जिद में क्रांतिकारी एकत्र होते थे. कोतवाल बदरुद्दीन को अंग्रेज अफसरों ने क्रांतिकारियों पर निगाह रखने की हिदायत दी थी. नौमहला मस्जिद में नमाज के दौरान खास निगाह रखी जाती थी. इसके साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ कोई तकरीर न हो. इसके लिए सख्त हिदायत दी थी.

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22 मई 1857 को ईद उल अलविदा (रमजान माह का अंतिम जुमा) था. नौमहला मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए छावनी के सैनिकों, बरेली शहर के नागरिकों व बरेली कॉलेज के शिक्षकों व छात्रों की भीड़ एकत्रित थी. इसी दौरान नमाज के बाद मौलवी महमूद हसन ने नमाज में आई भीड़ के सामने ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तकरीर की. उन्होंने लोगों से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत को जायज बताया था. इसके बाद ही अत्याचारों से निजात की बात कही थी. इस तकरीर का लोगों पर काफी असर पड़ा था. इसके बाद बरेली में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत बढ़ गई थी.

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बरेली की नौमहला मस्जिद में नमाज के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बनती थी रणनीति, यहां से जली 1857 क्रांति की अलख 2
हाफिज रहमत खान ने रखी थी संग-ए-बुनियाद

वर्ष -1749 में रूहेला सरदार नवाब हाफिज रहमत खां ने बरेली में अधिकार किया था. उन्होंने नौमहला मुहल्ले की संग -ए -बुनियाद (बसाया) था. इसके बाद अपने पीर सैयद मासूम शाह को सौंप दिया. नौमहला में ही सय्यद अहमद शाह बाबा और उनके बेटे सय्यद मासूम शाह की मजार है. 1857 तक नौमहला घनी आबादी का इलाका था.

Also Read: बरेली सेंट्रल जेल में पहले PM जवाहर लाल नेहरू 6 महीने रहे थे कैद, जानें कैदी नंबर 582 के कुछ अनछुए किस्से अंग्रेजों ने की थी शहर की लूटमार

अंग्रेज जानते थे कि नौमहला क्रांतिकारियों की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था. नकटिया में युद्ध जीतने के बाद जब अंग्रेजी अफसर शहर में दाखिल हुए. इसके बाद नौमहला को निशाना बनाया गया. इलाके के कई भवनों और मकानों को नेस्तनाबूत किया गया. नौमहला मस्जिद में भी लूटमार की गई. इस दौरान इस्माईल शाह अजान देते वक्त शहीद हो गए थे.

स्पेशल रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

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