16.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

बलंडा में 114 साल पुरानी है रथयात्रा की परंपरा, आज भी भक्त कर रहे हैं परंपरा का निर्वहन

Advertisement

बलंडा गांव में वर्ष 1910 से रथ यात्रा आयोजित की जा रही है. यह सुंदरगढ़ जिले की सबसे पुरानी रथ यात्राओं में से एक है. पुरी में आयोजित गुंडिचा रथयात्रा के दूसरे दिन यह रथयात्रा निकाली जाती है

Audio Book

ऑडियो सुनें

सुंदरगढ़ जिले के लाठीकटा ब्लॉक में बलंडा गांव स्थित है. यह गांव कलुंगा रेलवे स्टेशन से महज डेढ़ किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है. इसकी विशेषता है कि इस गांव में पिछले 114 वर्षों यानी 1910 से यहां हर साल रथ यात्रा आयोजित की जाती है जो सुंदरगढ़ जिले की सबसे पुरानी रथ यात्राओं में से एक है. पुरी में आयोजित गुंडिचा रथयात्रा के दूसरे दिन यह रथयात्रा निकाली जाती है. इसके पीछे एक दिलचस्प तथ्य और इतिहास है.

ब्रिटिश शासन के दौरान सुंदरगढ़ राजा के अधीन विभिन्न गड़जात और जमींदारी का कर संग्रह के लिए कुछ-कुछ गांवों में गौंटिया को नियुक्त किया गया था. यह गौंटिया (गंजू) राजा और जमींदारों के प्रतिनिधि होते थे, इनका मुख्य कार्य गांवों में छोटे-मोटे भूमि विवादों को सुलझाना, सरकारी भूमि की रक्षा करना और लोगों से कर वसूलना था. बलंडा नागरा एस्टेट के मालिक कुमारमुंडा जमींदार के अधीन था. सन 1848 में बलंडा के गौंटिया अर्जुन राज थे, जो कुमारमुंडा जमींदार स्वर्गत हरिहर सिंह महापात्र के करीबी रिश्तेदार थे. लेकिन अर्जुन राज बहुत जिद्दी व्यक्ति थे, इसलिए लोग उन्हें उदंड राजा बुलाया करते थे. जमींदार के खजाने में असूल जमा न करने तथा समय-समय पर अनुचित तर्क देने के कारण जमींदार ने क्रोधित होकर उसे गौंटिया पद से हटा दिया. वहीं बलंडा, जुनेन तथा पीतामहल गांवों को नीलाम कर दिया. झारसुगुड़ा के पास मालीमुंडा निवासी जगतराम नायक ने इन गांवों को नीलामी में खरीदा और नए गौंटिया बन गए. उनके बाद उनके तीन पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र रघुनाथ नायक जुनेन में और सबसे छोटा पुत्र दयानिधि नायक बलंडा में बस गये.

बलंडा में जमींदार ने की विग्रह की स्थापना

किंवदती है कि मेलानिधि नायक को एक रात सपना आया कि तीन विग्रह एक बड़ी नदी में तैर रहे हैं और उन्हें किसी भी कीमत पर बचाया जाना है. स्वप्नादेश की खबर अगले दिन अंचल में फैल गई, यह खबर कुआरमुंडा जमींदार तक भी पहुंची और पता चला कि पवित्र वेदव्यास के त्रिवेणी संगम में तैर रहे तीन विग्रह को झारा जाति के लोगों ने बचाया था, जो मछली पकड़ रहे थे, इसकी खबर कुआरमुंडा के जमींदार को हुई तो जमींदार ने स्वयं आकर विग्रह की स्थापना की और पुजारी जगन्नाथ दाश को अस्थायी रूप से वेदव्यास धाम में पूजा करने का दायित्व सौंपा. कुछ दिनों के बाद जमींदार बलंडा के गौंटिया को बुलाया और कहा कि उनका सपना सच हो गया है. जिससे वे विग्रह को बलंडा ले जाएं और वहां उनकी पूजा करें. हालांकि उसी दिन कुआरमुंडा में श्री गुंडिचा रथ यात्रा मनाई जाती है. इसलिए उन्होंने अगले दिन बलंडा में और अगले दिन वेदव्यास में रथयात्रा निकालने का आदेश दिया. ताकि यहां के लोग हर जगह रथ यात्रा देखने जा सकेंगे और व्यापारियों को भी लाभ होगा. इतना कहने के बाद इलाके के हजारों लोगों ने करताल, दुलदुली बाजा, हुलहुली हरिबोल के साथ विग्रह को एक बैल गाड़ी में ले जाकर एक खपरैल घर में पूजा की. यह घटना साल 1910 के आसपास की है. उस समय शोध में पता चला कि इस मूर्ति की पूजा बिहार (वर्तमान झारखंड राज्य) के एक ब्राह्मण शासित गांव में की जाती थी और किसी कारणवश मूर्तियां पानी में बह गईं.

1997 में ग्रामीणों के सहयोग से बनाया गया जगन्नाथ मंदिर

वर्ष 1997-98 में तत्कालीन गौंटिया स्वर्गीय नरेंद्र पटेल और ग्रामीणों के सहयोग से पुराने मंदिर के स्थान पर एक नया मंदिर बनाया गया था, जो अब देखा जा सकता है.1926 से शुकदेव दाश को पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया. उपरोक्त किवंदती स्व. शुकदेव दाश के पुत्र स्वर्गता शुकदेव दास के पुत्र स्व. भागीरथी दास और जूनेन गांव के वर्तमान गौंटिया के लिंगराज नायक और ग्राम प्रधान से सुना गया है. पुजारी स्व. भागीरथी दाश के सबसे छोटे पुत्र धीरेन कुमार दाश अब पूजा कार्य के प्रभारी हैं.बलंडा के तत्कालीन गौंटिया स्व. नरेंद्र पटेल के तिरोधान के बाद उनकी बड़ी बेटी डॉ. मीनू पटेल और दामाद डॉ. निमाई पटेल रथयात्रा का सारा खर्च उठा रहे हैं. वे हर साल रथयात्रा में छेरा पहंरा भी करते हैं. इसमें सबसे खास बात यह है कि इस दिन बलंडा और आसपास के गांवों में सभी के घरों में खीर-पुड़ी व अन्य व्यंजन बनाई जाती है और सभी नए कपड़े पहनते हैं. पहले गड़पोस, सगरा, राजगांगपुर, कांसबहाल, बिरडा, बिरकेरा इलाके से लोग रथयात्रा से एक दिन पहले यहां मेहमान बनकर आते थे. रथों को नवजात शिशुओं द्वारा छूना व दर्शन की अनोेखी परंपरा है जिसे आज भी देखा जा सकता है. समय के साथ-साथ रथयात्रा का मार्ग सिकुड़ती जा रही है और नए मकान बन रहे हैं, जगह की कमी हो रही है, लेकिन सुविधाओं के अभाव के बपीच सैकड़ों साल पुरानी रथयात्रा आज भी चल रही है. -मुकेश सिन्हा/जगन्नाथ महतो

- Advertisement -

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें