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मशरूम की खेती कर वीणा ने बनायी स्वावलंबन की राह

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मंडरो प्रखंड के पिंडरा गांव में मशरूम की खेती से लोग आत्मनिर्भर

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मंडरो. प्रखंड के पिंडरा पंचायत के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में रहने वाली वीणा देवी ने साबित कर दिया है कि अगर आत्मविश्वास और मेहनत हो, तो महिलाएं किसी से कम नहीं हैं. पिछले तीन वर्षों से वह अपने घर पर मशरूम की खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गई हैं. उनकी मेहनत और आत्मनिर्भरता ने आसपास के ग्रामीणों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना दिया है. वीणा पहले एक गृहिणी थीं, लेकिन वर्ष 2016 में उन्होंने मंडरो जेएसएलपीएस के रोशनी आजीविका सखी मंडल से जुड़कर कई योजनाओं की जानकारी प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने 10,000 रुपये का लोन लेकर मशरूम की खेती शुरू करने का निर्णय लिया. वह बताती हैं कि सबसे पहले वह मशरूम के बीज को राजगीर से मंगवाती हैं. इसके बाद थायमेट और भूसे से उपजाऊ मिट्टी तैयार कर उसमें मशरूम का बीज डालकर अंकुरित किया जाता है. लगभग 15 से 25 दिन में मशरूम खाने लायक तैयार हो जाता है, जिसे मंडरो, बोरियो और बरहेट में बिक्री के लिए भेजा जाता है. वीणा ने बताया कि, शुरू में उन्हें इस कार्य में रुचि नहीं थी और कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने मशरूम की खेती में पूरी लगन लगा दी. उनके पति, श्याम कुमार पंडित, भी इस कार्य में उनका सहयोग करते हैं, जिससे यह कार्य सरलता से संपन्न होता है. मशरूम की किस्में और बाजार मूल्य जेएसएलपीएस की रोशनी आजीविका सखी मंडल से जुड़ी बीना देवी ने बताया कि वह दो प्रकार की मशरूम उगाती हैं: छाता वाली मशरूम और बटन आकार की मशरूम. छाता वाली मशरूम को 200 रुपये प्रति किलो और बटन मशरूम को 300 से 350 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है. इस रोजगार के माध्यम से वह न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं, बल्कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी प्रदान कर रही हैं. वीणा देवी की कहानी यह दर्शाती है कि कैसे महिलाएं अपनी मेहनत और लगन से जीवन को बेहतर बना सकती हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर सकती हैं.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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