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रांची में है दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नर्मदेश्वर शिवलिंग, जानें महामृत्युंजय नाथ के झारखंड आने की पूरी कहानी

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विश्व का दूसरा सबसे बड़ा नर्मदेश्वर शिवलिंग झारखंड की राजधानी रांची में है. पंडित रामदेव पांडेय मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के बकावां गांव से यह शिवलिंग लाये थे. बाबा महामृत्युंजय नाथ के झारखंड आने की भी कहानी बड़ी रोचक है. पूरी कहानी यहां पढ़ें.

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झारखंड की राजधानी रांची में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नर्मदेश्वर शिवलिंग स्थापित है. ‘महामृत्युंजय नाथ’ के रूप में भगवान भोलेनाथ रांची के ओयना ग्राम में विराजमान हैं. इस दुर्लभ शिवलिंग की लंबाई 6 फुट 11 इंच और वजन 1,500 किलोग्राम है. इस प्रकार का सबसे बड़ा शिवलिंग मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में है.

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इस तरह शुरू हुई नर्मदेश्वर शिवलिंग की तलाश

रांची के जाने-माने पंडित रामदेव पांडेय की कठोर परिश्रम के बाद बाबा महामृत्युंजय नाथ रांची पहुंचे. कुछ साल पहले पंडित रामदेव पांडेय के मन में मां बगलामुखी के साथ नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना का विचार आया. इसके बाद से वह नर्मदेश्वर शिवलिंग की तलाश में जुट गए.

खंडवा के बकावां गांव में खत्म हुई रामदेव पांडेय की खोज

जनवरी 2019 में उन्होंने इसकी तलाश शुरू की. उन्हें मालूम हुआ कि उज्जैन में नर्मदेश्वर शिवलिंग पाये जाते हैं. वह इसकी तलाश में जुट गये. काफी मशक्कत के बाद पंडित रामदेव इस शिवलिंग को खोजने में सफल हुए. 6 जनवरी को खंडवा जिले के पास बकावां गांव में उनकी खोज खत्म हुई. वहां से शिवलिंग को रांची लाया गया और स्थापित किया गया.

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अयोध्या के राम मंदिर में स्थापित होंगे नर्मदेश्वर शिवलिंग

बताया जाता है कि करपात्री जी महाराज ने उत्तर प्रदेश के काशी के मीरघाट में विश्वनाथ मंदिर की स्थापना की थी. बकावां गांव से ही शिवलिंग लाकर इस मंदिर में स्थापित किया गया था. अयोध्या में बन रहे भव्य श्रीराम मंदिर में भी बकावां के ही शिवलिंग की स्थापना होने जा रही है.

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रांची में है दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नर्मदेश्वर शिवलिंग, जानें महामृत्युंजय नाथ के झारखंड आने की पूरी कहानी 2

नर्मदेश्वर शिवलिंग के बारे में जानें

धार्मिक मान्यता है कि नर्मदा नदी भगवान शिव की पुत्री हैं. शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि ओंकारेश्वर-मल्लेश्वर और ओंकारेश्वर क्षेत्र के विशेष भाग में शिवलिंग की आकृति के पत्थर मिलेंगे. इस शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होगी.

बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजे जाते हैं नर्मदेश्वर शिवलिंग

शिवलिंग बिना प्राण-प्रतिष्ठा के ही पूजे जायेंगे और इसकी पूजा करने वालों को इच्छित फल देंगे. जिस तरह गोमती नदी में मिले पत्थर भगवान विष्णु के प्रतीक शालीग्राम माने जाते हैं, उसी प्रकार नर्मदा नदी से मिलने वाले शिवलिंग को नर्मदेश्वर कहा जाता है. यह भी कहा जाता है कि नर्मदेश्वर शिवलिंग तिल-तिल बढ़ता है.

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नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा से होते हैं ये फायदे

बाणलिंग अर्थात् नर्मदेश्वर की पूजा करने से घर की गरीबी दूर होती है. धन, ऐश्वर्य, मोक्ष एवं पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है. यदि आप लंबे समय से बीमार हैं, तो रोजाना महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए शिवलिंग का जलाभिषेक करें, सभी रोगों से मुक्ति मिल जायेगी. श्रावण के महीने में इस शिवलिंग की पूजा विशेष फलदायी मानी गयी है. कहते हैं कि इस दौरान भगवान शिव की कृपा से भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है.

नर्मदेश्वर शिवलिंग में होता है ब्रह्मा, विष्णु व शिव के साथ पार्वती का वास

लिंगाष्टक में कहा गया है, ‘बुद्धिविवर्धन कारण लिंगम्’ अर्थात् शिवलिंग की पूजा बुद्धि का वर्धन करती है. साधक को अक्षय विद्या प्राप्त हो जाती है. पंडित रामदेव पांडेय बताते हैं कि नर्मदेश्वर शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के साथ-साथ पार्वती का भी वास होता है. इनकी पूजा से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, सृष्टि के पालनहार विष्णु, शक्ति शिवा और संहारक शिव की पूजा एक साथ हो जाती है.

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शहद के रंग के हैं रांची के नर्मदेश्वर शिवलिंग

श्री पांडेय कहते हैं कि काशी में करपात्रीजी महाराज द्वारा मीर घाट में स्थापित नया विश्वनाथ मंदिर भी नर्मदेश्वर शिवलिंग ही हैं. यह शहद के रंग का है. रांची के महामृत्युंजय नाथ भी मधु (शहद) के रंग के ही नर्मदेश्वर शिवलिंग हैं. रांची से बड़ा शिवलिंग इंदौर में है, जो वर्ष 2017 में स्थापित हुआ. यह शिवलिंग 8 फुट का है. यह उसी बकावां गांव से मिला शिवलिंग है, जहां से पंडित रामदेव शिवलिंग को रांची लाये हैं.

रांची में कहां है नर्मदेश्वर शिवलिंग

ओयना गांव चंदवे चौक से दो किलोमीटर पूरब में स्थित है. यदि इरबा स्थित मेदांता हॉस्पिटल से जायेंगे, तो अस्पताल से तीन किलोमीटर पश्चिम और रिंग रोड केदल से दो किलोमीटर उत्तर की ओर जाना होगा. बीआईटी मेसरा से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ईस्टर्न एस्टेट डायमंड सिटी में बाबा महामृत्युंजय नाथ विराजे हैं.

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