25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

छोड़ चुके थे जिंदा बचने की उम्मीद, सुरंग में चाटा पत्थरों से रिस रहा पानी, झारखंड के मजदूर ने बयां किया दर्द

Advertisement

अनिल बेदिया ने कहा- वह खौफनाक दिन था. हम काम कर रहे थे. हम सभी 15 दिनों की शिफ्ट में ही गये थे. सभी अपने धुन में सुरंग के अंदर काम कर रहे थे. अचानक एक जोर की आवाज आयी. देखा ऊपर से मिट्टी और पत्थर गिर रहे थे.

Audio Book

ऑडियो सुनें

सुनील चौधरी\ एजेंसियां, रांची :

- Advertisement -

उत्तराखंड के सिलक्यारा सुरंग से सुरक्षित बचाये गये श्रमिकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की. उन्होंने बताया कि शुरुआत में सभी ने जिंदा बचने की उम्मीदें छोड़ दी थीं. झारखंड निवासी 22 वर्षीय अनिल बेदिया ने बुधवार प्रभात खबर को बताया कि किस तरह उन्होंने सुरंग में शुरुआती दिन में पत्थरों से रिस रहे पानी को चाट कर जीवित रहने की कोशिश की. शुरुआत के कुछ दिन में हम जिंदा बचने की उम्मीद छोड़ चुके थे. हमने प्यास बुझाने के लिए पत्थरों से रिस रहा पानी चाटा और मुढ़ी पर जिंदा रहे.

घटना के याद करते हुए अनिल बेदिया ने बताया :

वह खौफनाक दिन था. हम काम कर रहे थे. हम सभी 15 दिनों की शिफ्ट में ही गये थे. सभी अपने धुन में सुरंग के अंदर काम कर रहे थे. अचानक एक जोर की आवाज आयी. देखा ऊपर से मिट्टी और पत्थर गिर रहे थे. आवाज भी हो रही थी. हम पीछे की ओर भागे. जब आवाज थमी, तो करीब आये. देखा कि रास्ता बंद हो चुका है. हमें कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या हो गया? फिर साथियों ने कहा : लगता है हम सब फंस गये हैं. मन में भय समा गया. किसी तरह समय काट रहे थे. लगभग 20 घंटे हो गये थे. बाहरी दुनिया से संपर्क नहीं हो पाया था.

Also Read: उत्तराखंड सुरंग से सुरक्षित निकले सभी 15 मजदूर शुक्रवार तक आ सकते हैं झारखंड, तीन-तीन लाख का सौंपा गया चेक

बेदिया ने बताया :

सुरंग के अंदर हम सब परेशान और चिंतित थे. फिर एक मजदूर ने पाइप को देखा, जो बाहर की ओर जुड़ा था. उससे हम सब शोर मचाने लगे. बचाओ, हम सब अंदर हैं. कोई निकालो. तब बाहर किसी को यह आवाज सुनायी दी. उसने भी पाइप से ही जवाब दिया. उसी व्यक्ति कंपनी को खबर दी कि मजदूर अंदर फंसे हुए हैं. इसके बाद पाइप से सबसे पहले ऑक्सीजन हमें भेजा जाने लगा.

इसके बाद ही वहां बचाव का काम शुरू हुआ. इस दौरान उसी पाइप के माध्यम से हमें मुढ़ी, काजू, बादाम, किशमिश भेजा जाता था. उसे ही खाकर 10 दिनों तक हम सब रहे. अंदर में अस्थायी बाथरूम था. लगभग दो किलोमीटर अंदर तक सुरंग में जगह थी. इसलिए टहल भी लेते थे. पहाड़ के रिसाव में वहां पड़ी पाइप को जोड़ दिया था, जिससे पानी मिलने लगा था. अंदर में हमारे किट में जियो शीट थी. उसे ही बिछाते और उसी पर सोते थे. सभी 41 मजदूर एक साथ एक ही लाइन में सोते थे. अंदर में न ज्यादा ठंड थी और न ही गर्मी, इसलिए मौसम को लेकर परेशानी नहीं थी. बेदिया बताते हैं : हालांकि हमें नहीं पता चल रहा था कि बाहर क्या काम हो रहा है. केवल कहा जाता था कि काम हो रहा है. बहुत जल्द हम सब बाहर होंगे. 10 दिनों बाद एक बड़ा पाइप सुरंग में जोड़ा गया.

फिर इससे हमारे लिए खाना-पीना भेजा जाने लगा. सब्जी, चावल, पराठा, पानी सब मिलने लगा. हममें से यदि कोई कुछ खाने की इच्छा जाहिर करता, तो उसे उसकी मनपसंद खाने का सामान भी दिया जाता था. इसी तरह समय कट रहा था. ऊपर वाले से मनाते थे कि जल्द ही हम बाहर निकल जायें. परिवार वालों से संपर्क नहीं था. पाइप के माध्यम से एक-दो बार बात हुई थी. झारखंड के एक अफसर ने भी बात की थी. तब हमें लगने लगा कि शायद बच भी जायें. फिर वह दिन आया, जब अचानक मिट्टी के ढेर को चीरते हुए एक मजदूर (रैट माइनर्स) हमारे बीच आया. वह बाहर से आया था. उसे देखते ही हम सब उससे लिपट गये. कहा, आप हमारे भगवान जैसे हो. हमें बचाने आ गये. इसके बाद की कहानी तो सबको मालूम ही है. फिलहाल हमें ऋषिकेश के एम्स में रखा गया है. अब देखते हैं कब घर जाने देते हैं. सबसे पहले घर जाने की ही इच्छा है.

अंदर में दो किलोमीटर रास्ता था : विश्वजीत

वहीं गिरिडीह के बिरनी प्रखंड के कोशोडीह गांव के निवासी विश्वजीत कुमार वर्मा ने भी लगभग वही बातें बतायीं, जो बेदिया ने कहीं. वर्मा ने कहा कि सुरंग 4.5 किलोमीटर अंदर तक थी. धसान के बाद भी अंदर में दो किमी का रास्ता बचा हुआ था. उसमें हमलोग चलते-फिरते थे. आपस में बात कर मन बहलाते थे. पर हमेशा एक अनजाना भय तो रहता ही था कि पता नहीं निकलेंगे या नहीं. वाटरप्रूफ शीट पर हम बैठते और सोते थे. आपस में बातें कर एक-दूसरे का हिम्मत भी बंधाते थे. कुछ मजदूर तो योगा भी करते थे. अंदर में अस्थायी बाथरूम था, जिससे शौच को लेकर परेशानी नहीं हुई. हम सरकार का धन्यवाद देते हैं कि अंतत: हमें बचा लिया गया. हमें तो लगता था कि पता नहीं अब बाहर जा पायेंगे या नहीं. पर जब खाना-पीना हमें मिलने लगा, तो लगा कि बाहर कुछ तो हो रहा है. पाइप से अधिकारियों ने बताया कि बचाव काम चल रहा है. ऊपर वाले की कृपा से हम सब बच गये. अब घर जल्दी जाने की तमन्ना है. यह पूछे जाने पर कि सुरंग में उन्होंने इस कठिन घड़ी का सामना कैसे किया, उन्होंने कहा, शुरुआती कुछ घंटे मुश्किल थे, क्योंकि हमें घुटन महसूस हो रही थी.

एम्स लाये गये मजदूर, निगरानी में रखा गया

ऋषिकेश. सिलक्यारा सुरंग से निकाले गये श्रमिकों को बुधवार को ऋषिकेश स्थित एम्स लाया गया. भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिये सभी 41 श्रमिकों को चिन्यालीसौड़ से एम्स लाया गया है. यहां उन्हें चिकित्सकीय निगरानी में रखा गया है. ट्रॉमा वार्ड में सभी की जांच की गयी और वहां से उन्हें 100 बिस्तरों वाले आपदा वार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया. यहां उनके स्वास्थ्य के सभी मानकों का परीक्षण होगा. अस्पताल में श्रमिकों के स्वस्थ परीक्षण के लिए सभी सुविधाएं और चिकित्सक मौजूद हैं. डॉक्टरों ने बताया कि 17 दिन तक हर सुविधा से दूर ये मजदूर कमजोर हो गये हैं.

प्रधानमंत्री हुए भावुक, बोले- यह ईश्वर की कृपा

केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग के बचाव अभियान पर भी चर्चा हुई. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत भावुक थे. इससे पहले प्रधानमंत्री ने श्रमिकों से टेलीफोन पर बातचीत की. उन्होंने कहा, इतने दिन खतरे में रहने के बाद सुरक्षित बाहर आने के लिए मैं आपको बधाई देता हूं. यह मेरे लिए प्रसन्नता की बात है और मैं इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता. अगर कुछ बुरा हो जाता तो पता नहीं, हम इसे कैसे बर्दाश्त करते. ईश्वर की कृपा है कि आप सब सुरक्षित हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस बातचीत का एक वीडियो जारी किया है, जिसमें प्रधानमंत्री श्रमिकों से कहते दिख रहे हैं, 17 दिन कोई कम वक्त नहीं होता. आप लोगों ने बहुत साहस दिखाया और एक-दूसरे को हिम्मत बंधाते रहे.

‘टहल कर बिताया समय, योग से बढ़ा मनोबल’

बिहार के सबा अहमद ने प्रधानमंत्री को बताया कि हम भाइयों की तरह थे, हम एक साथ थे. हम सुरंग में टहलते थे. मनोबल बनाये रखने के लिए योग करते थे. सबा अहमद ने उत्तराखंड सरकार, विशेष रूप से मुख्यमंत्री धामी और वीके सिंह को धन्यवाद दिया. बिहार के छपरा के सोनू साह ने भी प्रधानमंत्री और बचाव दलों को धन्यवाद दिया. उत्तराखंड के एक अन्य श्रमिक गब्बर सिंह नेगी ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री धामी, केंद्र सरकार और बचाव दल के साथ ही उस कंपनी को भी धन्यवाद दिया, जिसके लिए वह काम करते हैं. उन्होंने कहा, आप जब प्रधानमंत्री के रूप में हमारे साथ हैं और अन्य देशों से लोगों को आप बचाकर ले आये, तो फिर हम तो अपने देश में ही थे और इसलिए हमें चिंता करने की कोई बात नहीं थी.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें