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स्मृति शेष : धार्मिक गुरु ही नहीं, समाजसेवी व पर्यावरणविद् भी थे स्वामी हरिंद्रानंद

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करोड़ों परिवार तक शिवगुरु की महिमा पहुंचानेवाले और शिव शिष्य परिवार के जनक स्वामी हरिंद्रानंद जी अब नहीं रहे. रविवार के अहले सुबह तीन बजे उनका निधन हुआ

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रांची. करोड़ों परिवार तक शिवगुरु की महिमा पहुंचानेवाले और शिव शिष्य परिवार के जनक स्वामी हरिंद्रानंद जी अब नहीं रहे. रविवार के अहले सुबह तीन बजे उनका निधन हुआ. दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें रांची के एचइसी स्थित पारस अस्पताल में इलाज के लिए भरती कराया गया था.

बाद में पल्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके बड़े बेटे अर्चित आनंद ने बताया कि हरिंद्रानंद जी का पार्थिव शरीर उनके निवास स्थल ए-17,सेक्टर-2,एचइसी, धुर्वा में लोगों के दर्शनार्थ रखा गया है. सोमवार की सुबह छह से 11 बजे तक लोग अंतिम दर्शन कर सकेंगे. दिन के 12 बजे सीठियो में अंतिम संस्कार होगा.

साहब हरिंद्रानंद ने शिव शिष्यता की शुरुआत की. वर्ष 1974 में इन्होंने आरा के गांगी श्मशान में भगवान शिव को अपना गुरु माना था. इसके बाद इनके जीवन में अप्रत्याशित परिणाम आये. वह वर्ष 1980 से लोगों को शिव को अपना गुरु बनाने की बात कहने लगे. समाज के हर तबके को इन्होंने गले लगाया. इनका यह व्यवहार भक्तों को खूब रास आया अौर वे इनसे जुड़ते चले गये.

आज ना सिर्फ देश, बल्कि विदेश में इनके लाखों भक्त हैं. नेपाल, बांग्लादेश, मॉरीशस, सूरीनाम, सिंगापुर और दुबई सहित अन्य जगह इनके भक्त हैं. यहां नियमित रूप से शिव चर्चा होती है. लगभग पांच करोड़ लोग इनके कहने पर शिव को गुरु मान चुके हैं. स्वामी हरिंद्रानंद जी बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे. बचपन से आध्यात्म की ओर रुचि होने की वजह से अवकाश ग्रहण के बाद से पूरी तरह से धर्म-अध्यात्म को समर्पित हो गये थे. मूल रूप से सीवान जिले के रहनेवाले थे.

उनका जन्म 1948 में हुआ था. वे तत्कालीन छपरा जिले (अब सीवान) से पांच किलोमीटर दूर स्थित अमलोरी गांव के रहनेवाले थे. स्वामी हरिंद्रानंद ना सिर्फ धार्मिक गुरु थे, बल्कि एक अच्छे पर्यावरणविद् भी थे. इन्होंने लाखों पौधे लगवाये हैं. इन्होंने एक लेखक की भूमिका अदा करते हुए कई किताबें विशेषकर धार्मिक पुस्तकें भी लिखी हैं. दूसरे की मदद खुलकर करते थे. दीन-दुखियों व जरूरतमंदों की मदद से कभी पीछे नहीं हटे. नि:शुल्क पाठय पुस्तक उपलब्ध कराने से लेकर भोजन उपलब्ध कराना इनकी दिनचर्या में शामिल था. ऐसे महागुरु के गोलोक गमन से भक्त स्तब्ध हैं.

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