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Suicide in Jharkhand : झारखंड में हर दिन औसतन पांच लोग दे रहे अपनी जान

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कोरोना और उसके चलते हुए लॉकडाउन से रोजी-रोजगार की समस्या पैदा तो हुई है, पर यह स्थायी नहीं है. यह जरूर एक कठिन दौर है जो सिर्फ झारखंड या भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है. लेकिन इसे गुजर जाना है.

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कोरोना और उसके चलते हुए लॉकडाउन से रोजी-रोजगार की समस्या पैदा तो हुई है, पर यह स्थायी नहीं है. यह जरूर एक कठिन दौर है जो सिर्फ झारखंड या भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है. लेकिन इसे गुजर जाना है. कई लोग छोटी-छोटी परेशानियों, बाधाओं, दुखों से अवसाद में चले जाते हैं, जो उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है.

लेकिन मानव जीवन अनमोल है. यह व्यर्थ गंवाने के लिए नहीं, बल्कि संघर्ष कर मिसाल बनाने के लिए है. प्रभात खबर इस गंभीर समस्या के अहम बिंदुओं को उजागर करने का प्रयास कर रहा है, ताकि इसका समाधान हो. इस गंभीर विषय पर हम शुरू कर रहे हैं यह श्रृंखला.

कोरोना काल में विकराल हुई अवसाद की समस्या

कोरोना से जान जाने का डर और रोजी-रोजगार का संकट लोगों को धकेल रहा अवसाद की ओर

आत्महत्या करनेवालों में ज्यादातर युवा शामिल, औरतों से दोगुनी संख्या में आत्महत्या कर रहे पुरुष

कैसे-कैसे दे रहे हैं जान

फांसी लगाकर

पानी में डूबकर

नींद की दवा खाकर

जहरीला पदार्थ से

दूसरा उपाय खोजते हैं

मौजूदा सामाजिक परिवेश में डिप्रेशन (अवसाद) बड़ी समस्या बन गयी है. अवसाद गहराने पर लोग आत्महत्या तक कर रहे हैं. कोरोना काल और लॉकडाउन के दौरान विभिन्न कारणों से बड़ी संख्या में लोग अवसाद ग्रस्त हुए. इस दौरान आत्महत्या के आंकड़े भी सामान्य दिनों के मुकाबले बढ़े हैं. मिसाल के तौर पर झारखंड में हर साल औसतन 1500 लोग आत्महत्या करते हैं. जबकि इस बार मात्र छह माह में ही यहां आत्महत्या करनेवालों की संख्या एक हजार के पार पहुंच गयी है.

यानी हर दिन औसतन पांच लोग आत्महत्या कर रहे हैं: दरअसल, कोरोना संकट व लॉकडाउन के कारण एक ओर लोगों को जान गंवाने तो दूसरी ओर नौकरी जाने व रोजी-रोजगार छीन जाने का भय सताने लगा है. इस कारण कमजोर इच्छा शक्ति वाले लोग अवसादग्रस्त हो हताशा में आत्महत्या कर ले रहे हैं. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आत्महत्या करनेवालों में युवा ज्यादा हैं.

पुलिस फाइल के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या करनेवाले पुरुषों की संख्या महिलाओं से दोगुनी है. वर्ष 2018 में झारखंड में 1317 लोगों ने आत्महत्या की थी. इस वर्ष जनवरी से जुलाई तक में ही 1010 लोग आत्महत्या कर चुके हैं. दो दिन पहले ही राजधानी में चार लोगों ने, तो धनबाद में भी चार लोगों ने अपनी जान अपने हाथों ले ली. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि पांचवीं और छठी कक्षा के बच्चे तक यह कदम उठा रहे हैं.

18 से 29 वर्ष वाले ज्यादा करते हैं आत्महत्या :आत्महत्या करनेवालों में सबसे ज्यादा 18 से 29 वर्ष के लोग शामिल हैं. इसके बाद 30 से 44 वर्ष के लोग आत्महत्या करते हैं. इसके बाद 14 से 17 वर्ष व 45 से 59 वर्ष के लोग यह अंतिम गलती करनेवालों में शामिल हैं. 60 वर्ष या इससे ज्यादा उम्र वाले लोग सबसे कम संख्या में आत्महत्या करते हैं.

अधिकारी बन गये, पर कठिनाइयों से हार गये : जुलाई के दूसरे सप्ताह में संताल परगना में पदस्थापित एक राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने आत्महत्या कर ली. ट्रेन की पटरी पर उनकी बॉडी मिली थी. हालांकि, मामले की जांच चल रही है. लेकिन, प्रथमदृष्टया पुलिस मामले के आत्महत्या ही मान रही है. कहा जा रहा है कि अधिकारी काफी तनाव में थे. छुट्टी लेकर जमशेदपुर स्थित अपने घर पर आ गये थे. अधिकारी ने शादी भी नहीं की थी.

मोबाइल नहीं मिली, तो जान दे दी : छह और सात अगस्त को राजधानी में चार लोगों ने आत्महत्या कर ही. इसमें दो की उम्र 20 साल से नीचे थे. शेष दो 45 साल से कम उम्र के थे. एक छात्रा ने ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल नहीं मिलने के कारण आत्महत्या कर ली. उसके पिता ग्राम प्रधान हैं. यह घटनाएं बताती हैं कि कैसे बच्चे भी अवसाद का शिकार हो जा रहे हैं.

झारखंड में आत्महत्या के वर्षवार आंकड़े

जिला 2018 में आत्महत्या 2019 में आत्महत्या 2020में अब तक

धनबाद 457 444 219

जमशेदपुर 154 159 93

रांची 80 178 115

हजारीबाग 84 53 47

गुमला 85 71 46

सरायकेला 66 65 37

चाईबासा 52 74 39

देवघर 49 39 29

दुमका 51 60 36

जामताड़ा 32 21 17

चतरा 23 33 30

साहिबगंज 19 00 05

बोकारो 19 119 52

कोडरमा 06 28 14

रामगढ़ 31 37 21

लोहरदगा 16 11 08

खूंटी 19 26 15

पलामू 36 00 54

लातेहार 15 11 35

गोड्डा 04 13 08

पाकुड़ 16 05 07

गिरिडीह 00 38 16

सिमडेगा 00 23 19

गढ़वा 00 83 47

रेल धनबाद 03 02 01

रेल जमशेदपुर 00 01 00

कुल 1317 1646 1010

विशेषज्ञ बोले- वर्तमान परिस्थिति में तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं लोग : लोग वर्तमान परिस्थिति से तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं. यह केवल सामाजिक समस्या नहीं रही. वर्तमान स्थिति में केवल आत्महत्या रोकने के लिए कोई ड्राइव चला कर कुछ नहीं कर सकते हैं. आपके पास बताने के लिए भी कुछ नहीं है. जिनकी नौकरी जा रही, रोजगार जा रहा है, उनको क्या बतायेंगे? जिन चीजों से लोगों को तकलीफ है, उसका उपाय ढूंढना होगा.

आनेवाले दिनों में परेशानी और बढ़ सकती है. केवल सुसाइड ही नहीं है. इसके साथ डिप्रेशन, नशा, हिंसा, रिश्तों का खराब होना भी है. इसी के बीच से रास्ता निकालने की कोशिश करनी होगी. निराशा से कैसे, निकले इसके लिए ठोस प्रयास करना होगा.

-डॉ एस हक निजामी, पूर्व निदेशक, सीआइपी

Post by : Pritish Sahay

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