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देश की नियत व आचरण ही प्रमुख शक्ति के रूप में पहचान दिलायेगा : डॉ टूरंगबाम

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कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज, नयी दिल्ली के मानद निदेशक डॉ मोनीश टूरंगबाम ने कहा है कि देश को प्रमुख शक्ति के रूप में पहचान दिलाने के लिए देश की नियत और आचरण की आवश्यकता है.

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रांची. कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज, नयी दिल्ली के मानद निदेशक डॉ मोनीश टूरंगबाम ने कहा है कि देश को प्रमुख शक्ति के रूप में पहचान दिलाने के लिए देश की नियत और आचरण की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, इतिहास में शीत युद्ध के दौर में अमेरिका का एक शक्ति गुट बनाने का इरादा और समकालीन युग में प्रतिस्पर्द्धा होने का चीन का इरादा कुछ ऐसे निर्धारक हैं. गठबंधन की भूमिका और साझेदारी की भूमिका एक अन्य कारक है, जो अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में प्रमुख शक्ति को परिभाषित करती है. भारत ने कभी किसी गठबंधन में प्रवेश नहीं किया और मुख्य रूप से रणनीतिक साझेदारी पर ध्यान केंद्रित किया. डॉ टूरंगबाम सोमवार के केंद्रीय विवि, झारखंड (सीयूजे) में अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग द्वारा प्रमुख शक्तियों की विदेश नीति का अध्ययन क्यों करें विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान (ऑनलाइन) में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रमुख शक्तियों के पास व्यापक विदेश नीति टूलकिट का एक सेट होता है, जो उन्हें सैन्य, अर्थव्यवस्था, प्रवासी और प्रौद्योगिकी जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में प्रमुख शक्ति बनाता है. बहुध्रुवीय विश्व में, प्रमुख शक्तियों के सामने समस्या यह है कि वे एक जैसे नहीं हैं और उनकी विदेश नीति के दृष्टिकोण में भिन्नता है. उनकी विदेश नीति टूलकिट भी भिन्न हैं. डॉ मोनीश ने स्वीकार किया कि भारत के सामने एक बड़ी चुनौती है, हालांकि आंतरिक कथा से पता चलता है कि भारत एक प्रमुख शक्ति बनने की दृढ़ता से आकांक्षा रखता है. चीन, पाकिस्तान और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों की वृद्धि और उपद्रव शक्ति को रोकने के लिए भारत कितनी चतुराई से दूर की शक्तियों का उपयोग करता है, यह समकालीन अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के भीतर भारत की स्थिति निर्धारित करेगा. इससे पूर्व डॉ अपर्णा ने अतिथियों का स्वागत किया. डॉ आलोक कुमार गुप्ता ने स्वागत भाषण दिया. कार्यक्रम में सभी शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी आदि उपस्थित थे.

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