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सरकारी अस्पताल में प्रबंधन मुहैया कराता है दवा, फिर भी एमआर की रिम्स में लगी रहती है भीड़

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रिम्स प्रबंधन ने एमआर के प्रवेश पर रोक लगा रखी है, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है. रिम्स के ओपीडी और वार्ड में अनधिकृत प्रवेश रोकने के लिए हर जगह होमगार्ड के जवान तैनात रहते हैं

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रांची, राजीव पांडेय :

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रिम्स प्रबंधन अपने ओपीडी में परामर्श लेनेवाले और वार्ड में भर्ती मरीजों को अधिकांश दवाएं सरकारी खर्च पर मुहैया कराता है. हर महीने करोड़ों रुपये की दवाएं खरीदी जाती हैं. फिर भी दवा कंपनियों के प्रतिनिधि यानी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव(एमआर) सुबह से लेकर शाम तक रिम्स में जमे रहते हैं. आलम यह है कि विभिन्न दवा कंपनियों के एमआर अपनी दवाओं का प्रचार-प्रसार न सिर्फ ओपीडी स्थित डॉक्टर केबिन में, बल्कि वार्ड में भर्ती मरीजों के बेड तक कर रहे हैं. हालांकि, अस्पताल के कुछ सीनियर डॉक्टर एमआर की मनमानी से परेशान हैं.

रिम्स प्रबंधन ने एमआर के प्रवेश पर रोक लगा रखी है, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है. रिम्स के ओपीडी और वार्ड में अनधिकृत प्रवेश रोकने के लिए हर जगह होमगार्ड के जवान तैनात रहते हैं. लेकिन, ये जवान भी केवल मरीजों और उनके परिजनों को ही रोकते-टोकते हैं, जबकि एमआर बेरोकटोक सीधे ओपीडी में डॉक्टर के केबिन तक पहुंच जाते हैं. इतना ही नहीं वे डॉक्टर की गाड़ी तक पहुंच कर सेटिंग में जुटे रहते हैं.

मरीजों से भी करते हैं सेटिंग :

विभिन्न दवा कंपनियों के एमआर ओपीडी में डॉक्टर से परामर्श लेकर निकले मरीज को रोक कर उनकी पर्ची लेकर पूछताछ शुरू कर देते हैं. वे देखना चाहते हैं कि डॉक्टर साहब ने उनकी कंपनी की दवा लिखना शुरू कर दिया या नहीं. अगर डॉक्टर साहब दवा नहीं लिखते हैं, तो उनसे दोबारा संपर्क किया जाता है. इसके अलावा वार्ड में भर्ती मरीज को बेड पर दवाएं भी पहुंचायी जाती हैं.

अस्पताल परिसर में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की अनावश्यक भीड़ लग रही है. ओपीडी और वार्ड में इनके प्रवेश पर पाबंदी लगायी जायेगी. ड्यूटी का समय खत्म होने (शाम 5:00 बजे) के बाद ही एमआर को प्रवेश देने पर विचार किया जा रहा है.

डॉ राजीव गुप्ता, प्रभारी निदेशक, रिम्स

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