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मझिया मुंडा ने रामचरितमानस का मुंडारी भाषा में किया अनुवाद

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रांची. गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस सनातन धर्म की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है. रामचरितमानस का अब तक कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. मुंडारी भाषा में इसका अनुवाद मझिया मुंडा (अब स्वर्गीय) ने किया है. इसमें छत्रपाल सिंह मुंडा ने उनका सहयोग किया. मझिया मुंडा ने पुस्तक में लिखा है कि जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से प्रेरणा पाकर उन्होंने रामचरितमानस का मुंडारी भाषा में अनुवाद का बीड़ा उठाया था. उन्होंने अनुवाद की शुरुआत मार्च 1974 में की थी. एक साल बाद इसे पूरा किया. इस पुस्तक का प्रथम संस्करण 1988 में आया था. पुस्तक का संपादन साहित्यकार श्रवण कुमार गोस्वामी और दुलायचंद्र मुंडा (दोनों स्वर्गीय) ने किया है. इस पुस्तक का प्रकाशक स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती देश धर्म सेवा संस्थान कोलकाता है. पुस्तक में मूल्य की जगह लिखा हुआ है- वनवासी भाईयों की सेवा. अर्थात यह पुस्तक नि:शुल्क वितरण के लिए प्रकाशित की गयी थी.

मझिया मुंडा का परिचय

मझिया मुंडा का जन्म खूंटी के मुरहू प्रखंड के चारीद गांव में हुआ था. खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद इन्होंने शिक्षा पाने के लिए कड़ी मेहनत की. इन्होंने संत पॉल शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र में शिक्षक का प्रशिक्षण लिया. कड़पर्ती अपर प्राइमरी स्कूल में इन्होंने प्रधानाध्यापक के पद पर काम किया. कुछ सालों तक शिक्षण कार्य से जुड़े रहने के बाद ये वापस अपने गांव चारीद आ गये. वहां स्कूल की स्थापना की. इनके प्रयास से चारीद में कल्याण विभाग की ओर से एक आवासीय बालिका विद्यालय भी खुला. इन्होंने स्कूल बनाने के लिए दान में अपनी जमीन दी थी. मझिया मुंडा को आदिम जाति सेवा मंडल माध्यमिक विद्यालय अनगड़ा का मंत्री बनाया गया था. वे अपने जीवन के अंत तक इस पद पर बने रहे.

रांची. गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस सनातन धर्म की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है. रामचरितमानस का अब तक कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. मुंडारी भाषा में इसका अनुवाद मझिया मुंडा (अब स्वर्गीय) ने किया है. इसमें छत्रपाल सिंह मुंडा ने उनका सहयोग किया. मझिया मुंडा ने पुस्तक में लिखा है कि जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से प्रेरणा पाकर उन्होंने रामचरितमानस का मुंडारी भाषा में अनुवाद का बीड़ा उठाया था. उन्होंने अनुवाद की शुरुआत मार्च 1974 में की थी. एक साल बाद इसे पूरा किया. इस पुस्तक का प्रथम संस्करण 1988 में आया था. पुस्तक का संपादन साहित्यकार श्रवण कुमार गोस्वामी और दुलायचंद्र मुंडा (दोनों स्वर्गीय) ने किया है. इस पुस्तक का प्रकाशक स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती देश धर्म सेवा संस्थान कोलकाता है. पुस्तक में मूल्य की जगह लिखा हुआ है- वनवासी भाईयों की सेवा. अर्थात यह पुस्तक नि:शुल्क वितरण के लिए प्रकाशित की गयी थी.

मझिया मुंडा का परिचय

मझिया मुंडा का जन्म खूंटी के मुरहू प्रखंड के चारीद गांव में हुआ था. खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद इन्होंने शिक्षा पाने के लिए कड़ी मेहनत की. इन्होंने संत पॉल शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र में शिक्षक का प्रशिक्षण लिया. कड़पर्ती अपर प्राइमरी स्कूल में इन्होंने प्रधानाध्यापक के पद पर काम किया. कुछ सालों तक शिक्षण कार्य से जुड़े रहने के बाद ये वापस अपने गांव चारीद आ गये. वहां स्कूल की स्थापना की. इनके प्रयास से चारीद में कल्याण विभाग की ओर से एक आवासीय बालिका विद्यालय भी खुला. इन्होंने स्कूल बनाने के लिए दान में अपनी जमीन दी थी. मझिया मुंडा को आदिम जाति सेवा मंडल माध्यमिक विद्यालय अनगड़ा का मंत्री बनाया गया था. वे अपने जीवन के अंत तक इस पद पर बने रहे.

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