27.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 03:24 pm
27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

मेरे लिए धर्म का अर्थ वही, जो कबीर, बुद्ध और बसवन्ना ने दिया है: प्रसन्ना

Advertisement

डाल्टनगंज (झारखंड) में बीते दिनों संपन्न हुए इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के 15वें राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रख्यात रंगकर्मी प्रसन्ना नये राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये. प्रस्तुत हैं प्रसन्ना से वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी अनिल शुक्ल की बातचीत के अंश:

Audio Book

ऑडियो सुनें

डाल्टनगंज (झारखंड) में बीते दिनों संपन्न हुए इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के 15वें राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रख्यात रंगकर्मी प्रसन्ना नये राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये. मैसूर में हाल में स्थापित उनके संस्थान ‘इंडियन थियेटर फाउंडेशन’ में देशभर से आये युवा प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. प्रस्तुत हैं प्रसन्ना से वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी अनिल शुक्ल की बातचीत के अंश:

- Advertisement -

‘इप्टा’ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर आपकी प्रतिक्रिया.

‘इप्टा’ का इतिहास महानता का इतिहास है. आजादी की लड़ाई में ‘इप्टा’ का शानदार योगदान इस बात की गवाही है कि कैसे एक संगठन देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा और सर्वश्रेष्ठ संस्कृति को एक साथ खड़ा कर सकता है. संस्कृति के ऊपरी आवरण और इसके अंदरूनी धरातल, आम जन की संस्कृति, इसने सबको एक सूत्र में बांध कर स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया था. इस महान संगठन के साथ जुड़कर मैं बहुत खुश हूं.

मौजूदा सांस्कृतिक परिदृश्य को आप 
कैसे देखते हैं?

एक तरह से देखें, तो यह सब भाषा का खेल है. आपको उदाहरण देकर कहूं कि ‘समाजवाद मेरा धर्म है’ कहने वाला न तो मैं पहला व्यक्ति हूं, न आखिरी. ऐसी हमारे देश की बहुत बड़ी परंपरा रही है. बहुत से संत ऐसा मानते आये हैं. मेरे ही राज्य कर्नाटक से बसवन्ना, जो बारहवीं सदी के एक क्रांतिकारी कवि थे, ने साफ-साफ कहा कि ‘कार्य ही उपासना हैं.’ मैं उन तमाम लोगों को मानता हूं और विश्वास करता हूं कि समाजवाद ही धर्म है. धर्म का अर्थ है एक विशेष जीवन पद्धति. अब ‘धर्म’ के चक्र पर दक्षिणपंथियों ने कब्जा कर लिया है और इसे पुरोहितशाही में तब्दील कर दिया है. मैं इसे कैसे मान लूं! मेरे लिए धर्म का अर्थ वही है, जो कबीर ने दिया है, बुद्ध ने दिया है, जो बसवन्ना ने दिया है. उस मान्यता की वापस स्थापना करनी है और लोगों को इससे जोड़ना है.

इसके लिए आपके पास क्या रणनीति है?

हम सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं का काम राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक है. हमारा काम है समाजवाद के मूल अर्थ को आम लोगों तक ले जाना. पार्टियों के लोग उसे भले ही दूसरे अर्थों में ले जाते हैं, लेकिन मैं उसे जब उसके भीतरी अर्थ तक ले जाता हूं, तो सब ठीक हो जायेगा और कोई मुझ पर सवाल नहीं खड़ा कर सकता कि तुम धार्मिक नहीं हो. उनकी जो कोशिश है, उसे किसी ने नहीं माना. विवेकानंद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

आज इप्टा की ज्यादातर इकाइयों की हालत बड़ी कमजोर है. ऐसे में आप कैसे लड़ाई लड़ेंगे?

असल में इप्टा का हाल यह है कि अधिकतर जगहों पर कार्यकर्ता तो बचे हैं . जो कलाकार थे, वे बाहर चले गये. हमारा काम बाहर बैठे बड़े-बड़े कलाकारों, बड़ी-बड़ी सांस्कृतिक विभूतियों को भीतर लाना होगा. उनके भीतर रुचि जागृत करनी होगी. वे जो भीतर बैठे हैं, उन्हें इसके लिए तैयार करना होगा कि वे ऐसे लोगों को जोड़ें. चालीस के दशक में पीसी जोशी ने यही किया था. अब वह काम फिर से करना होगा. हमें एक बहुत बड़ा सांस्कृतिक मोर्चा बनाना होगा.

रंगकर्म की वर्तमान स्थिति पर आपकी राय.

जितना दूसरे कौशल युक्त कामों की हालत खराब है, उतना ही थियेटर की हालत भी खराब है. आप युवाओं से बात करेंगे थियेटर की, तो वे कहेंगे थियेटर, लेकिन उनके मन में मुंबई, सिनेमा, टीवी सीरियल ही रहता है. हम कुछ कह रहे होते हैं, वे कुछ और ग्रहण कर रहे होते हैं. इस मानसिकता को बदलना होगा, अन्यथा संस्कृति, मानवता और देश को नहीं बचाया जा सकेगा.

इस बारे में इप्टा के लोगों को लेकर क्या 
करना चाहेंगे?

इप्टा में और थियेटर की दुनिया में, बीते बीस-तीस साल में भी हम लोगों ने यह काम नहीं किया था. हम भी सिनेमा, टीवी सीरियल, मशीन और टेक्नोलॉजी की गिरफ्त में आ गये थे. अब हम इस सवाल को उठायेंगे और कहेंगे कि जब तक हाथ से काम करने वालों को गरिमा नहीं मिलेगी, तब तक थियेटर कैसे हो सकता है. जन संस्कृति का मतलब ही है कि जिस जीवन पद्धति में हम जी रहे हैं, उनका विकास करना, यानी हाथ से काम करने वालों और किसानों, मातृभाषा और मातृ-संस्कृति, जन, जंगल और जमीन को बढ़ावा देना. इस सबको इप्टा का हिस्सा बनाना होगा.

इसकी शुरुआत कैसे करेंगे?

डाल्टनगंज में पांच बातों को लेकर एक वर्कशॉप हुआ और वहां आये प्रतिनिधियों ने बड़ी रुचि के साथ इसमें भाग लिया. एक जगह जेंडर की बात हो रही थी, एक जगह किसान की बात हो रही थी, एक हिस्से में जलवायु परिवर्तन की बात हो रही थी. मुझे खुशी है कि इप्टा में मेरे पदभार संभालने से पहले ही इसकी शुरुआत हो चुकी है.

राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते थियेटर की प्रगति की दिशा में आपका पहला कदम क्या होगा?

थियेटर संचार का माध्यम है. संचार के कई अन्य माध्यम हैं, लेकिन थियेटर इनमें सबसे मजबूत है. चूंकि यह कम्युनिकेशन का मीडियम है, इसलिए सबसे पहले हमें यह तय करना होगा कि हम क्या कम्युनिकेट करेंगे और कैसे करेंगे? जब यहां ‘कैसे’ की बात आती है, तब हम यह तय करेंगे कि हम कैसे थियेटर करेंगे.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें