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Prabhat Khabar 40 Years : महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के इलाज के लिए प्रभात खबर ने चलाया था अभियान

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प्रभात खबर ने 17 फरवरी , 1993 को वशिष्ठ नारायण सिंह की तस्वीर के साथ मार्मिक अपील प्रकाशित की. इसमें कहा गया था कि यही वशिष्ठ किसी दूसरे मुल्क में होते, तो शायद इस नियति को प्राप्त न करते.

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रांची : साल 1989 की बात है. महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह गुमनामी में थे. दिमागी हालत ठीक नहीं थी. इलाज के लिए निकले थे. भाई और पत्नी के साथ, पर मप्र के खंडवा स्टेशन पर वह बिना किसी को बताये उतर गये. परिवार के लोगों ने मप्र के अलग-अलग रेलवे स्टेशनों की खाक छानी, पर वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं मिले. थक-हार कर घर लौट गये. आरा के बसंतपुर. लंबे समय तक उनका कुछ पता न चल सका.

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वशिष्ठ नारायण सिंह के लिए प्रभात खबर ने चलाया था अभियान

1993 में अचानक उनके मिलने की खबर आयी. बढ़े बाल. बेतरतीब दाढ़ी. आंखें धंसी हुईं. अखबारों में खबर छपी. वह न टीवी का दौर था, न सोशल मीडिया का. प्रभात खबर ने इसे मुद्दा बनाया. उनके इलाज के लिए कदम बढ़ाये. सरकार और समाज से अपील की. यह अपील क्यों? शायद हम, हमारा समाज वशिष्ठ होने के अर्थ-मर्म को नहीं समझ पाया था. ये वही वशिष्ठ नारायण सिंह थे, जिन्हें पटना विश्वविद्यालय में नियम की बाध्यताओं को खत्म कर बीएससी ऑनर्स की परीक्षा में एक साल में बैठने की अनुमति मिली थी. यह संभव हो सका था गणित के बड़े अध्येता डॉ एनएस नागेंद्रनाथ की पहल से. उन्होंने वशिष्ठ की प्रतिभा पहचानी थी. ये वही नागेंद्रनाथ थे, जो महान वैज्ञानिक डॉ सीबी रमन के साथ काम कर चुके थे. 1964 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के विख्यात गणितज्ञ डॉ जेएल केली भारत आये थे. उन्होंने जब वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में सुना, तो वह दंग रह गये.

प्रभात खबर ने की थी मार्मिक अपील

प्रभात खबर ने 17 फरवरी , 1993 को वशिष्ठ नारायण सिंह की तस्वीर के साथ मार्मिक अपील प्रकाशित की. इसमें कहा गया था कि यही वशिष्ठ किसी दूसरे मुल्क में होते, तो शायद इस नियति को प्राप्त न करते. उन्होंने नासा की नौकरी छोड़ कर अपनी जमीन, अपनी मिट्टी के लिए अमेरिका से लौटना स्वीकार किया था, लेकिन यहां भगवान भरोसे छोड़ दिया गया. परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि उनका बेहतर इलाज कराया जा सके. अखबार के अभियान का असर हुआ. नेतरहाट के पूर्ववर्ती छात्रों के अलावा समाज के दूसरे लोगों ने बढ़-चढ़ कर मदद में हाथ बंटाया. कई सामाजिक संगठनों के लोग उनके गांव गये. प्रभात खबर की अपील का ही असर था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद बसंतपुर गये. सरकार की पहल पर उन्हें निम्हांस भेजा गया. ऐसा माना जाता है कि पारिवारिक कारणों से उनकी मानसिक अवस्था बिगड़ती गयी थी. छपरा के डोरीगंज बाजार में वशिष्ठ बाबू को फुटपाथ के किनारे देखने वाले कमलेश राम और सुदामा राम काफी दिनों तक सुर्खियों में रहे. इन दोनों ने ही उनकी पहचान की थी. सरकार ने वशिष्ठ बाबू के भाई और उनकी पहचान करनेवाले को सरकारी नौकरी दी.

प्रभात खबर ने लगातार प्रकाशित की थी विशेष रिपोर्ट

कोलंबिया के इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिक्स में पढ़ाने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह को लेकर प्रभात खबर लगातार विशेष रिपोर्ट प्रकाशित करता रहा. एक अखबार के तौर पर वह व्यापक जन मानस को याद दिलाता रहा ऐसी विलक्षण प्रतिभाओं को कहां हथेली पर रखने की जरूरत थी, मगर आज हम उन्हें भूल गये. दो अप्रैल 2013 को प्रभात खबर की टीम बसंतपुर गयी और उनके बारे में विस्तृत रिपोर्ट छापी. तब भी उनका इलाज जैसे-तैसे चल रहा था, पर पेंसिल और कागज पर गणित के सूत्रों के साथ उनका उलझना जारी था. प्रभात खबर में रिपोर्ट छपने के बाद उसी साल 17 अप्रैल को उन्होंने मधेपुरा के भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर योगदान दिया था. ऐसी अवस्था में भी विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए वशिष्ठ बाबू ने कहा था, हमें परमाणु बम के असर को कम करने पर काम करना चाहिए. दुनिया के इस बड़े गणितज्ञ का 14 नवंबर, 2019 को हम सबसे साथ छूट गया. प्रभात खबर ने उन पर जैकेट और विशेष पेज प्रकाशित कर पाठकों को उनके न होने का मतलब बताया.

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