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Prabhat Khabar 40 Years: प्रभात खबर ने हर कदम पर साबित किया, यह अखबार नहीं आंदोलन है

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खैर राम-राम करके सरकार बनी और चलने लगी. ठीक एक महीने के बाद ईद के दिन एक मामूली घटना से दंगे भड़क गये और कर्फ्यू लगाना पड़ा

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ईशान करण :

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वर्ष 2000. झारखंड राज्य का गठन हुआ ही था. हमलोगों की सेवा बिहार प्रशासनिक सेवा से झारखंड प्रशासनिक सेवा होने ही वाली थी, पटना सचिवालय के कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग के कमरों से हमारी निजी संचिकाएं प्रोजेक्ट भवन, धुर्वा में आने ही वाली थी कि झारखंड की राजधानी रांची में तनाव का माहौल बन गया. अभी-अभी हमलोगों ने नयी सरकार का शपथ ग्रहण कराया था. दस लोगों ने शपथ ली थी, लेकिन राजभवन के बाहर छावनी का माहौल था. रांची आनेवाले सारे रास्ते सील कर दिये गये थे. चप्पे-चप्पे पर पुलिस थी. अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती थी. कारण था कि आदिवासी नेता मानते थे कि झारखंड राज्य उनके त्याग और बलिदान से बना था, इसलिए मुख्यमंत्री बनने का उनका ही हक है.

खैर राम-राम करके सरकार बनी और चलने लगी. ठीक एक महीने के बाद ईद के दिन एक मामूली घटना से दंगे भड़क गये और कर्फ्यू लगाना पड़ा. मैं उस समय जिला मुख्यालय में पदस्थापित था. हम सभी पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति दंडाधिकारी के रूप में विभिन्न थानों में कर दी गयी. न गाड़ी, न फोर्स, न कोई सुविधा, ऐसे में उग्र भीड़ को नियंत्रित करना बड़ा कठिन था.

किसी तरह कर्फ्यू की पहली रात गुजरी. दूसरी सुबह थाने में ही अखबार का पन्ना खोला. मुखपृष्ठ पर ही दंगे की तस्वीरें थी. रोड़ेबाजी करते उपद्रवी, जलती बसें, पुलिस आउट पोस्ट में आगजनी. हम बिहार में रहे थे. हमारे लिये यह अखबार नया था. नाम था ‘प्रभात खबर’. हेडलाइन में ‘दंगा नहीं, पुलिस के प्रति आक्रोश’ छपा था. सारा नैरेटिव ही बदल गया. उपद्रवियों की तस्वीर के आधार पर धरपकड़ शुरू की गयी. फिर तीन दिन में मामला शांत हो गया. उस दिन से प्रभात खबर जीवन का अंग बन गया, जो सेवानिवृति के बाद भी जारी है. चाहे घोटालों को उजागर करना हो, नेताओं की पोल खोलनी हो या तथ्यपरक रिपोर्ट देनी हो, प्रभात खबर ने हर कदम पर साबित किया है कि यह अखबार नहीं आंदोलन है. भविष्य में इसकी धार और तेज हो, यही कामना है.

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