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Poila Baisakh 2023: रांची में 1865 से मनाया जा रहा पोइला बोइशाख, जानें इस दिन का इतिहास

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Poila Baisakh 2023 पोइला बोइशाख यानी बंग समुदाय का नववर्ष. आज से बांग्ला भाषा-भाषी नयी शुरुआत करेंगे. व्यवसायी नया बही खाता शुरू करेंगे. लोग मंदिरों में जायेंगे. नदी में स्नान कर पूजा-पाठ करेंगे. इस दिन घर में अल्पना बनायी जाती है. विशेष व्यंजन तैयार किये जाते हैं.

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रांची, लता रानी : बात साल 1865 की है. राजधानी रांची में बंगाली समुदाय की एक अच्छी आबादी बस गयी थी. इसी वर्ष यूनियन क्लब, टाउन क्लब और छोटानागपुर क्लब का विलय कर यूनियन क्लब एंड लाइब्रेरी की स्थापना हुई. सामूहिक रूप से कीर्तन, नाटक, शास्त्रीय संगीत और विजया सम्मेलन का आयोजन होने लगा. इसी दौरान निर्णय लिया गया कि बंग समाज के नववर्ष पोइला बोइशाख को सामूहिक रूप से मनाया जायेगा. इसके बाद यह सिलसिला आज तक जारी है. पहले सिर्फ व्यवसायी ही पोइला बोइशाख मनाते थे. बाद में आमलोग भी इस उल्लास में शामिल हो गये.

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1765 में कुछ शिक्षित बंगाली परिवारों को रांची लेकर आये थे अंग्रेज

सांस्कृतिक कर्मी सुबीर लाहिड़ी बताते हैं : 1765 में कचहरी और अस्पताल आदि में सेवा देने के लिए अंग्रेजी हुकूमत बाकुड़ा, वर्धमान और पुरुलिया से कुछ शिक्षित बंगाली परिवारों को रांची लेकर आयी. इसके बाद बंगाली समाज की आबादी धीरे-धीरे बढ़ती गयी. 1864 में रांची में एलइबीबी बंगाली हाइस्कूल की स्थापना की गयी. 27 नवंबर 1864 को पब्लिक लाइब्रेरी का गठन हुआ. बाद में यूनियन क्लब, टाउन क्लब और छोटानागपुर क्लब बना. फिर तीनों को विलय कर यूनियन क्लब एंड लाइब्रेरी की नींव रखी गयी.

1912 में टैगोल हिल पर मना था नववर्ष : सुबीर लाहिड़ी बताते हैं

1905 में रांची में नारी समिति का गठन हुआ. यूनियन क्लब में एक कमरे में महिलाएं पोइला बोइशाख पर गीत-संगीत की तैयारी करती थीं. वहीं ज्योतिरिन्द्रनाथ टैगोर के आने के बाद 14 अप्रैल 1912 को टैगोर हिल में पोइला बोइशाख का आयोजन किया गया. इसके गवाह नागेंद्र नाथ बोस, राय साहेब नवकृष्ण राय, राय बहादुर राधा गोविंद चौधरी, आशुतोष राय और शारदा बाबू बने.

नववर्ष का इतिहास

बांग्ला नववर्ष के इतिहास को लेकर अलग-अलग विचार हैं. मान्यता है कि बंगाली युग की शुरुआत सातवीं शताब्दी में राजा शोशंगको के समय हुई थी. दूसरा मत यह भी है कि चंद्र इस्लामिक कैलेंडर और सूर्य हिंदू कैलेंडर को मिलाकर ही बंगाली कैलेंडर की स्थापना हुई थी. इसके अलावा कुछ ग्रामीण हिस्सों में बंगाली हिंदू अपने युग की शुरुआत का श्रेय सम्राट विक्रमादित्य को भी देते हैं.

पुआल जलाने की है परंपरा

बांग्ला नववर्ष के रूप में मनाये जा रहे इस त्योहार में पुआल जलाने की भी परंपरा है. माना जाता है कि पुआल जलाकर वह पिछले साल मिले कष्ट की आहुति देते हैं.

यहां होंगे कार्यक्रम

यूनियन क्लब में मिलन मेला आज

यूनियन क्लब एवं लाइब्रेरी की ओर से आज से दो दिवसीय मिलन मेला आयोजित किया जा रहा है. सांस्कृतिक कार्यक्रम भी खास होंगे. 15 अप्रैल को शाम छह बजे मेले का उदघाटन भारत सेवाश्रम के स्वामी भुतेशानंद महाराज करेंगे. करीब 40 स्टॉल आकर्षित करेंगे. शाम सात बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू होगा. तृषा तानिया एंड ग्रुप, सुमेधा एंड ग्रुप, रूपादे एंड ग्रुप, यूनियन क्लब, जवाहर लाल नेहरू कला केंद्र, बंगीय सांस्कृतिक परिषद, देशप्रिय क्लब एंड लाइब्रेरी, बिहान, अपरूपा चौधरी एंड ग्रुप, मजलिस, वैतालिक की ओर से प्रस्तुति दी जायेगी. वहीं 16 अप्रैल को सुबह 10 बजे से संगीत, नृत्य, चित्रकला, काव्य पाठ, कविता पाठ प्रतियोगिता होगी.

बोइशाख मतलब खुशियों की शुरुआत

नव वर्ष नया उत्कर्ष और नयी सौगात लेकर आता है. बंग भाषियों में खुशी का स्पंदन और आनंद का रंग छा जाता है. सभी सपरिवार प्रातः स्नान के बाद मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. नये व्यंजन, स्वादिष्ट आहार और आमिष भोजन सभी को तृप्त करते हैं. पोइला बोइशाख एक उत्सव है. यह एकजुटता, सामूहिकता और सामाजिकता का अन्यतम प्रतीक है.

-कमल बोस, साहित्यकार

हमारे लिए पोइला बोइशाख बेहद खास है. इसी दिन मेरी बड़ी बेटी का जन्म हुआ था, जो अभी कैलिफोर्निया में जॉब कर रही हैं. एक ओर नया साल और दूसरी तरफ बेटी का जन्मदिन भी है. पाेइला बोइशाख का मतलब खुशियां ही खुशियां हैं.

-अंजलि चौधरी, थड़पखना

पाेइला बोइशाख में सिर्फ नये कपड़े और विशेष व्यंजन का ही महत्व नहीं है. यह दिन सांस्कृतिक उत्सव भी है. इस खास अवसर पर गाना, बजाना बेहद महत्व रखता है. इस दिन मैं हमेशा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होती हूं.

-श्रिला चौधरी, थड़पखना

मैं कहीं भी रही इस खास अवसर पर परिवार के साथ रांची में ही रहती हूं. मुंबई से एमबीए कर रही हूं. पाेइला बोइशाख पर अपने घर आयी हूं. यह दिन मेरे परिवार के लिए बहुत महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन मां-पिताजी की शादी की सालगिरह है.

-किरण सेनापति, बहुबाजार

पोइला बोइशाख सिर्फ व्यवसायी वर्ग तक ही सीमित था. इनके आयोजन में कुछ आम लोग भी हिस्सा लेते थे. धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया. इस साल बंगला नववर्ष का 1430 बंगाब्द है. नये वर्ष का आगमन सिर्फ बंग समुदाय में ही नहीं बल्कि पूरी धरा पर एक नयी आशा के संचार का उत्सव है. कविगुरु रवींद्रनाथ, कवि नजरुल सहित विभिन्न कवियों ने पोइला बोइशाख पर कई रचनाएं लिखी हैं.

-पंपा सेन विश्वास, शिक्षाविद

नया संकल्प लेने का दिन है पोइला बोइशाख

वर्ष 1430 बांग्ला नववर्ष के साथ एक और नये अध्याय की शुरुआत हो रही है. इस दिन हर बांग्ला भाषी, खुद के बंगाली होने पर गर्व महसूस करता है. नये वर्ष के आलिंगन में मानो हर बंगाली के दिल में उत्साह, खुशी, उम्मीद और आशा की नयी किरण जाग उठती है. पोइला बोइशाख, जिसे पोहेला बैसाख के नाम से भी जानते हैं झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम में बंगाली समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है. यह त्योहार बंगाली नव वर्ष का प्रतीक है और इसका काफी महत्व है. इस दिन को नये उद्यम शुरू करने, नयी खरीदारी करने और मिल-जुलकर नये काम शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है. मेरा जन्मदिन भी 14 कार्तिक को है, जिसको हमेशा बांग्ला कैलेंडर के मुताबिक ही मनाते हैं. दुर्गापूजा, संक्रांति या सरस्वती पूजा हो इन्हें भी हम बांग्ला कैलेंडर से ही गणना करते हैं. हमें अपनी पुरानी सभ्यता को बचाये रखने की चुनौती है. पहला बैसाख, अक्षया तृतीया और कवि गुरु रविंद्रनाथ की जयंती को बांग्ला कैलेंडर के मुताबिक ही मनाते हैं.

-शेखर डे, समाजसेवी

अपने पूर्वज को करें स्मरण

नव वर्ष के इस विशेष दिन में अपने पूर्वज और महापुरुषों के योगदान का स्मरण करें. इस समाज को गढ़ने, मान-प्रतिष्ठा बढ़ाने में महापुरुषों का योगदान रहा है. कविगुरु रवींद्रनाथ कह गये कि नव वर्षे कोरिलाम प्रण, लोवो स्वदेशेर दीक्षा. यानी नववर्ष के दिन ही शपथ या संकल्प लेना है कि हम सब स्वदेश की रक्षा करेंगे. इस दिन इस संकल्प के साथ पूरे वर्ष के लिए रूप रेखा हम बनाते हैं. नववर्ष एक ऐसा उपलक्ष्य है, जो खुशी और आनंद देता है. पारंपरिक खान-पान, लोगों से मेल-मिलाप इस दिन को विशेष बनाता है. यह खुशी, यह आनंद हर दिन बना रहे.

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