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झारखंड: क्या है 60-40 नियोजन नीति, छात्र क्यों है इसके विरोध में, जानें क्या है माजरा

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झारखंड में नियोजन नीति को लेकर कई छात्र आक्रोशित है. इसका विरोध राज्यभर में किया जा रहा है. सभी छात्रों का एक ही नारा है 60-40 नाय चलतो.

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झारखंड में 60-40 नियोजन नीति को लेकर छात्रों का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है. स्टूडेंट नेता बार बार इसे लेकर सरकार को चेतावनी दे रहे हैं. हाल ही में छात्र संगठनों ने इसके विरोध में दो दिनों का झारखंड बंद का अह्वान किया था. इसे पहले भी कई बार छात्र सड़कों पर उतरकर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. वहीं, इस मामले पर राज्य की सियासत भी गरमायी हुई है. बजट सत्र के दौरान भाजपा नेताओं ने इसके विरोध में सदन के अंदर और बाहर खूब प्रदर्शन किया था. ऐसे में लोगों के मन में सवाल ये उठ रहा है कि 60-40 नियोजन नीति क्या है? और छात्र क्यों इसका विरोध कर रहे हैं. साथ ही यह भी जानेंगे कि छात्र के अनुरूप अगर खतियान आधारित नियोजन नीति लागू कर दिया जाए तो इसका क्या फायदा होगा.

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झारखंड हाईकोर्ट ने वर्तमान सरकार की नियोजन नीति को कर दिया रद्द

झारखंड हाईकोर्ट ने बीते साल 2022 में हेमंत सरकार द्वारा बनायी नयी नियोजन नीति को असवैधानिक करार दे दिया था. इसके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री ने कहा कि जरूरत पड़ी तो हम हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. इसके बाद सभी छात्र विधानसभा का घेराव करने पहुंच गये. उस वक्त सीएम हेमंत सोरेन ने छात्रों को आश्वस्त किया कि वह सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं देंगे.

क्या है 60-40 नियोजन नीति

झारखंड हाईकोर्ट से रद्द होने के बाद वर्तमान सरकार ने साल 2016 वाली नियोजन नीति से नियुक्ति करने का फैसला लिया. इसके मुताबिक, नौकरियों में 60 फीसदी सीट झारखंड के लोगों के लिए आरक्षित रहेगी और 40 फीसदी ‘ओपन टू ऑल’ है. यानी कि 60 फीसदी सीटें सिर्फ झारखंड के लोगों के लिए आरक्षित की गयी है. बाकी 40 फीसदी सीटों के लिए भारत के किसी भी हिस्से का कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है. इसमें झारखंड के अभ्यर्थी भी शामिल हो सकते हैं

क्या कहना है झारखंड के छात्रों का

आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि इस नीति के तहत नौकरियों में बाहरी छात्रों का दखल अधिक हो जाएगा. उनका कहना है कि नियोजन नीति ऐसी हो जिसमें झारखंड के छात्रों को अधिक से अधिक लाभ मिले. जब बिहार समेत देश के अन्य राज्यों में स्थानीय छात्रों के लिए ही पूरी सीटें निर्धारित की जाती है तो झारखंड के छात्रों के लिए क्यों नहीं. यही एक मात्र राज्य है जहां बाहरियों को मौका दिया जा रहा है.

क्या थी 2016 वाली नियोजन नीति

साल 2016 में उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने नयी नियोजन नीति लायी थी. जिसके तहत उन्होंने झारखंड के 24 जिलों को 2 भागों में विभाजित कर दिया था. जिसमें उन्होंने 11 जिलों में गैर अनुसूचित और 13 जिलों को अनुसूचित की श्रेणी में रखा था. इसमें प्रावधान रखा गया था कि अभ्यर्थी अगर अनुसूचित जिले से हों, तो वो गैर- अनुसूचित जिले में जेएसएससी के अंतर्गत नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं. लेकिन गैर- अनुसूचित जिले के अभ्यर्थी अनुसूचित जिले में नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं. साथ ही बाहरी राज्य के अभ्यर्थी भी अनुसूचित जिले के अंतर्गत आवेदन कर सकते हैं.

22 साल बीत जाने के बाद भी नहीं बना पायी नियोजन नीति

झारखंड का गठन हुए 22 साल बीत गये लेकिन अब तक सही से नियोजन नीति नहीं बन सकी. सबसे पहले बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री रहते हुए स्थानीय और नियोजन नीति बनायी थी. लेकिन किसी खामी की वजह से हाईकोर्ट ने उसे भी रद्द कर दिया. इसके बाद साल 2016 में उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने नयी नियोजन नीति को परिभाषित किया. लेकिन उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया. इसके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री ने 2021 में नयी नियोजन नीति बनायी जिसके तहत उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए राज्य से मैट्रिक और इंटर पास करना अनिवार्य कर दिया. हालांकि, ये नियम एसटी और एससी छात्रों के लिए शिथिल था.

छात्रों की मांग के अनुसार नीति बनी तो क्या फायदा होगा

छात्रों की सलाह के आधार पर अगर नीति बनी, तो नियुक्ति फॉर्म भरते समय अभ्यर्थी को अपने स्थानीय प्रमाण पत्र की क्रमांक संख्या लिखना जरूरी हो जाएगा. इससे पता चल जाएगा कि आवेदन करने वाला छात्र कहां का है.

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