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बाकी है निर्मल दा के झारखंड का सपना

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आज आजसू का स्थापना दिवस है. आजसू ने झारखंड अलग राज्य के आंदोलन को धार दी थी. राज्य के हजारों नौजवान आजसू के आह्वान पर आंदोलन में कूद थे.

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आज आजसू का स्थापना दिवस है. आजसू ने झारखंड अलग राज्य के आंदोलन को धार दी थी. राज्य के हजारों नौजवान आजसू के आह्वान पर आंदोलन में कूद थे. आज भी राज्य में आजसू के कई आंदोलनकारी अलग-अलग पार्टियों व सामाजिक संगठनों में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. आंदोलन के दौर में आजसू के अध्यक्ष रहे और वर्तमान में आजसू पार्टी के प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत और महिला आंदोलनकारी सरोजनी कच्छप से प्रभात खबर ने बातचीत की. आंदोलन की पुरानी यादों को ताजा किया.

मुफ्त में मिला राज्य नहीं है, संघर्ष और शहादत से हासिल किया : डॉ देवशरण

झारखंड आंदोलनकारी डॉ देवशरण भगत ने कहा है कि आजसू के गठन से अलग राज्य के आंदोलन को नयी राह मिली. आजसू का गठन 22 जून 1986 को हुआ था. शहीद निर्मल महतो ने युवा शक्ति को एकजुट कर झारखंड राज्य को बिहार से अलग करने का सपना देखा और आजसू का गठन किया. आजसू ने इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर की पहचान दिलायी. डॉ भगत ने कहा कि जिस प्रकार बिरसा मुंडा और बाकी योद्धाओं ने जल, जंगल, जमीन और जमीर को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी. उसी तरह आंदोलनकारियों ने भी अलग राज्य की लड़ाई लड़ी थी. झारखंड मुफ्त में मिला हुआ राज्य नहीं है. यह संघर्ष और शहादत से मिला है. इसके लिए बहुत लोगों ने अपना बहुत कुछ खोया है, लेकिन जिन उद्देश्यों के लिए हमने संघर्ष किया, वह आज भी साकार नहीं हुआ है. यह पूछने पर की आंदोलन की कोई खौफनाक घटना याद हो. डॉ भगत ने कहा कि मुझे पुलिसवालों ने देखते ही गोली मार देने का आदेश दिया था. मेरे एक पत्रकार साथी ने मेरी काफी मदद की थी. पुलिस से बचाया था. आंदोलन में महिलाओं की भूमिका पर बोले कि महिलाएं घर-परिवार को छोड़ कर आंदोलन का हिस्सा बन रही थीं. महिलाओं के आगे आने का आंदोलन में काफी असर पड़ा.

आंदोलन का हिस्सा बने तो परिवार-समाज का ताना भी सुनना पड़ा : सरोजनी

रांची. झारखंड अलग राज्य की लड़ाई में भूमिका निभानेवाली महिलाओं में सरोजनी कच्छप का नाम आता है. सरोजनी ने कहा : आंदोलन में महिलाओं ने बहुत ही अहम भूमिका निभाई. आंदोलन में उन्हें अपने घर परिवार समाज हर जगह से ताना सुनने को मिलता था. लेकिन आंखों में एक ही सपना था कि अपनी पहचान की लड़ाई लड़नी है. अलग झारखंड बनाना है. हमें हमारा अधिकार मिले. आजसू के बैनर तले युवा गोलबंद हुए. प्राणों की आहुति दी. सरोजनी ने कहा : झारखंड आंदोलन में जो शहीद हुए थे. उनकाे कोई सम्मान तक नहीं दिया जाता है. आज उनके परिवार वाले दाने-दाने को मोहताज हैं. उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं है. उन्होंने भी कहा कि झारखंड गठन के उद्देश्यों की पूर्ति अभी बाकी है. आंदोलन के दिनों को याद कर कहती हैं : हमारे कई साथियों को जेल में डाल दिया जाता था. कई को देखते ही गोली मार देने का आदेश था. ऐसे में हम सबको भी आक्रामक बनना पड़ा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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