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नीलम नीरद सहित झारखंड की 4 महिलाओं को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय का फेलोशिप

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नीलम नीरद जनजातीय जादोपटिया चित्रकला की प्रख्यात कलाकार हैं. इनकी कलाकृतियां राष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनियों में सराही गयी हैं. ये सम्मानित भी होती रही हैं. जादोपटिया चित्रकला का संबंध संताल जनजाति से है. इस शैली के चित्र कागज और कपड़े के लंबवत पट (स्क्रॉल) पर बनाये जाते हैं.

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जादोपटिया चित्रकार नीलम नीरद सहित झारखंड के तीन संस्कृति कर्मियों को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय का वर्ष 2020-21 का सीनियर फेलोशिप अवॉर्ड मिला है, जबकि इसी वर्ष के जूनियर फेलोशिप अवॉर्ड के लिए राज्य से एक कलाकार का चयन किया गया है. यह बड़ा इत्तेफाक है कि इस वर्ष के लिए झारखंड से जिन चार नामों को सीनियर और जूनियर फेलोशिप अवॉर्ड के लिए चुना गया, वे सभी महिलाएं हैं.

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रांची की सीमा देवी व मोनिता सिन्हा को भी मिला फेलोशिप

इनमें दुमका की नीलम नीरद को जनजातीय चित्रकला, रांची की सीमा देवी को लोकगीत और रांची की ही मोनिता सिन्हा को थियेटर के लिए सीनियर फेलोशिप तथा बोकारो की आकांक्षा प्रियदशिर्नी को छऊ नृत्य के लिए जूनियर फेलोशिप अवॉर्ड के लिए चुना गया है. यह फेलोशिप अवॉर्ड संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले विशिष्ट कला-साधकों को दिया जाता है, जिसका चयन राष्ट्रीय स्तर पर होता है. यह फेलोशिप दो वर्ष के लिए मिलता है, जिसे योजना के अनुसार छह माह का अतिरिक्त विस्तार दिये जाने का भी प्रावधान है. 

जादोपटिया चित्रकला की प्रख्यात कलाकार नीलम नीरद

नीलम नीरद जनजातीय जादोपटिया चित्रकला की प्रख्यात कलाकार हैं. इनकी कलाकृतियां राष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनियों में सराही गयी हैं. ये सम्मानित भी होती रही हैं. जादोपटिया चित्रकला का संबंध संताल जनजाति से है. इस शैली के चित्र कागज और कपड़े के लंबवत पट (स्क्रॉल) पर बनाये जाते हैं. प्रत्येक पट के अलग-अलग विषय होते हैं और एक पट पर 16 से 32 चित्र तक होते हैं. इन्हें प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है और पारंपरिक कलाकार इसे दिखाते समय गीत भी गाता है, जिसमें चित्रों की कथा का वर्णन होता है. नीलम नीरद ने इसके वंशानुगत कलाकारों से सीख कर इस चित्रकला शैली को आगे बढ़ा रही हैं और इसमें कई प्रयोग भी उन्होंने किया है.

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भित्ति चित्रों पर शोध भी कर रहीं हैं नीलम नीरद

नीलम संताल जनजातीय समाज के पारंपरिक भित्तिचित्रों पर भी शोधपूर्ण कार्य कर रही हैं. उन्हें यह फेलोशिप अवॉर्ड संताल जनजातीय भित्तिचित्र चित्रकला के शोध पूर्ण चित्रांकन, रूपांकन, संवर्धन और विस्तार तथा इसके नवोन्मेष के लिए दिया गया है. वे जनजातीय चित्रकला के व्यावसायिक मूल्यों को बढ़ाने तथा इसकी पारंपरिक पहचान को अक्षुण्ण रखने के लिए भी काम करेंगी. झारखंड के संताल समाज में भित्ति चित्र की प्राचीन परंपरा है, जिसका जिक्र संताली लोकगीतों, लोकथाओं एवं मिथकों में बहुत गहराई से मिलता है, लेकिन छोटानागपुर और संताल परगना के भित्ति चित्रों में भिन्नताएं हैं. बदलते समय के साथ भित्ति चित्र विलुप्त हो रहे हैं. नीलम इन्हें दीवार से कैनवास, कागज और अन्य माध्यमों पर उतार रही हैं. उनका मानना है कि संताल भित्ति चित्रों को बचाने का यही एकमात्र उपाय है. इस बड़े उद्देश्य की बदौलत नीलम नीरद के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गयी है.

संताल समाज में भित्ति-चित्रण की है समृद्ध व प्राचीन परंपरा

नीलम नीरद बताती हैं कि संताल जनजातीय समाज में भित्ति-चित्रण की परंपरा बहुत पुरानी और समृद्ध रूप में रही है. यह समाज मानता है कि उनकी जाति और सभ्यता के विकास के पांच महत्वपूर्ण चरण हैं- पहला, ‘हिहिड़ी-पपीपीड़ी’ नामक देश में प्रथम मानव दंपत्ति का जन्म, जहां से इसका विकास क्रम आरंभ हुआ, दूसरा ‘खोज-कमान’ नामक देश में इनकी खोज, तीसरा ‘हारात’ नामक देश में इनकी वंशवृद्धि, चौथा ‘सासांङ बेड़ा’ में इनका गोत्र (किस्कू, सोरेन, मरांडी, मुर्मू आदि) निर्धारण और पांचवा ‘चाय चंपागढ़’ में इनके साम्राज्य के विकास का उत्कर्ष. ‘चाय चंपागढ़’ इस जाति का स्वर्ण युग था. ‘चाय चंपागढ़’ में इनका विशाल किला था, जिसकी दीवारों पर सुंदर चित्रकारी की गयी थी.

संतालों की मान्यता : भित्ति चित्र कला का यहीं हुआ जन्म

संताल समाज मानता है कि पृथ्वी पर भित्ति-चित्रण की कला का जन्म यहीं हुआ. हालांकि इन पांचों स्थानों की कोई भौगोलिक पहचान निश्चित नहीं है. फिर भी इनके लोकगीतों, मिथकों और गाथाओं में इसका वर्णन आज भी मिलता है. नीलम बताती हैं कि संताल समाज में इस कला को लेकर पहले जैसी ही मान्यता तो है. तभी यह समाज भित्तिचित्र की इस परंपरा को जीवित रखे हुए है और इनकी गाथाओं, लोकथाओं और मिथकों में इसका वर्णन अब भी मिलता है. इनकी मान्यता है कि जब इनके देवता मारांङ बुरु और जाहेर ऐरा आदि सृष्टि के निर्माण और मानव जाति के विकास का क्रम सुनिश्चत कर लौटने लगे, तब मनुष्य ने उनसे न जाने का आग्रह किया.

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मेहनत से महिलाएं करतीं थीं चित्रकारी

तब देवता ने कहा कि वे पृथ्वी पर फिर आयेंगे और यह आदेश दिया कि जिसके घर की दीवारें सुंदर चित्रों से अलंकृत होंगी, इनके देवता समृद्धि के साथ उसी के घर में प्रवेश करेंगे. संतालों के घर पहले मिट्टी के थे, तो महिलाएं बड़ी मेहनत और लगन से उनकी दीवारों पर चित्रांकन करती थीं, किंतु अब एक तो मिट्टी के घरों की संख्या घट रही है, दूसरी कि नयी पीढ़ी की युवतियों में अपने घरों को पारंपरिक रूप से दीवार चित्रण के माध्यम से सजाने का उत्साह नहीं है. ऐसे में इसके लुप्त हो जाने का संकट है. नीलम बताती हैं कि वे शोध पूर्ण चित्रांकन, रूपांकन, संवर्धन और विस्तार तथा नवोन्मेष के माध्यम से इस भित्तिचित्र को आगे ले जायेंगी.

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