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My Mati: झारखंड की दो महिलाएं राजस्थान में ले रही प्रशिक्षण, अपने गांव को सौर ऊर्जा से करेंगी रोशन

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झारखंड के गिरिडीह जिले के गांडेय ब्लॉक के एक गांव जोधपुर की दो महिलाएं सौर उपकरण में प्रशिक्षण लेने के लिए राजस्थान आयी हैं. पिछले पांच महीनों से, दोनों महिलाएं राजस्थान में किशनगढ़ तहसील के हरमाडा गांव में सोलर टॉर्च, सोलर बल्ब, ई-होम लाइटिंग सिस्टम और उनकी मरम्मत और रख-रखाव सीख रही हैं.

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स्वप्ना सरिता मोहंती, कम्युनिकेशंस मैनेजर बेयरफुट कॉलेज इंटरनेशनल : अपने जीवन को बदलने और अपने गांवों को विद्युतीकृत करने के उत्साह के साथ, झारखंड के गिरिडीह जिले के गांडेय ब्लॉक के एक गांव जोधपुर की दो महिलाएं सौर उपकरण में प्रशिक्षण लेने के लिए राजस्थान आयी हैं. पिछले पांच महीनों से, दोनों महिलाएं राजस्थान में किशनगढ़ तहसील के हरमाडा गांव में मुख्यालय, बेयरफुट कॉलेज इंटरनेशनल (बीसीआई) में सोलर टॉर्च, सोलर बल्ब, ई-होम लाइटिंग सिस्टम और उनकी मरम्मत और रख-रखाव सीख रही हैं.

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इनमें से एक 35 वर्षीय मंजली जो अकेली मां है, अपने परिवार का पालन-पोषण के लिए वर्षों से देशी शराब बेच रही थी. हालांकि, वह अपने इस काम से खुश नहीं थी और समाज में कुछ सम्मान जनक करना चाहती थी, इसलिए जब सौर उपकरण सीखने का यह अवसर आया, तो उसने इसे खुली बाहों से पकड़ लिया और इस तरह उसकी यात्रा शुरू हुई.

“मैं शिक्षित नहीं हूं, लेकिन मैं हमेशा कुछ नया सीखना चाहती थी, जो मेरे जीवन को बदल सके और मुझे नयी दिशा दे ताकि लोग मुझे सम्मान भरी नजरों से देखें. जब सौर उपकरण बनाने का तरीका सीखने का यह अवसर आया, तो मैंने इस कौशल को सीखने का फैसला किया और इस प्रशिक्षण के लिए अपने दिल और आत्मभाव से समर्पित हूं.”

अपने परिवार के बारे में बात करते हुए, उसने कहा कि उनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और उसका एकमात्र साधन देशी शराब बेचना है. लेकिन अंदर से वह कभी भी इस पेशे को नहीं अपनाना चाहती थी. “मेरी एक बेटी है जो स्कूल जाती है, मुझे उसकी जरूरतें पूरी करनी है. और मेरे पास शराब बचने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, इसी से कमाना था.

मंजली चार महीने से अधिक समय से बेयरफुट कॉलेज इंटरनेशनल कैंपस में है और अब वह स्नातक हो जाएगी. उसने जो सीखा है उसके बारे में बात करते हुए वह कहती है, “ मैं दीवा लालटेन, बिंदी टॉर्चलाइट, देवी टॉर्चलाइट बना सकती हूं. इस प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद, मैंने अपने गांव में कम से कम 50 घरों में बिजली पहुंचाने की योजना बनायी है और उसके बाद अपना काम जारी रखूंगी.” इन्हीं विचारों को साझा करते हुए, 20 वर्षीय अंजलि मुर्मू ने बताया कि वह अपने घर की कैद से बाहर आयी है और इस कौशल को सीख कर, जीवन भर का नया अनुभव ले रही है.

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“मैं इसे अपने पेशे के रूप में लूंगी और आगे बढ़ूंगी. अपने संयुक्त परिवार में योगदान दूंगी. मेरे पति अभी पढ़ाई कर रहे हैं साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहे हैं. मैं उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए भी मदद करूंगी.”

उन्होंने कहा कि वह एक ऐसे परिवार से आती हैं जहां महिलाओं को समान सम्मान दिया जाता है और उनकी आवाज सुनी जाती है. “ जब मैं सौर उपकरण सीखने के इस अवसर को ले रही थी, तो मेरे परिवार ने मेरा समर्थन किया और मुझे यहां तक आने का साहस जुटाने में मदद की. इसके अलावा, मेरे पड़ोसियों और ग्रामीणों को मुझ पर बहुत गर्व है और वे बेसब्री से मेरे लौटने और निर्बाध बिजली के गांव के अपने सपने को पूरा करने का इंतजार कर रहे हैं.

प्रशिक्षण के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रशिक्षण ने उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया है और अब वह नए सीखे गये कौशल के साथ दुनिया का सामना करने के लिए सशक्त और तैयार महसूस करती है. वह कहती है- “वर्तमान में मेरे पति कमा नहीं रहे हैं और अब जब मैंने इस नये कौशल को सीख लिया है, तो मैं इसका उपयोग करूंगी और अपने परिवार की कमाने वाली बनूंगी. मैं अपने पति का भी समर्थन करूंगी जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने जा रहे हैं.

उन्होंने अपने जैसी महिलाओं के लिए एक संदेश के साथ अपनी चर्चा समाप्त की, “महिलाओं को जीवन में एक बार अपने घरों की कैद से बाहर निकलने और बाहर की दुनिया का पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए, मैं मानती हूं कि पहला कदम उठाना डरावना है, लेकिन विश्वास करो, जब आप ऐसा करते हैं तो जीवन बदल जाता है और आप कुछ ऐसा अनुभव करते हैं, जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होता.”

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