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आदिवासी उद्यमियों के लिए ‘ट्राइबकार्ट’ बना मंच, महज चार साल में ही जुड़े 70 हजार से अधिक लोग

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रांची में पिछले कुछ दशक से आदिवासी उद्यमियों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है, इसका बड़ा कारण ‘ट्राइबकार्ट’ है. ‘ट्राइबकार्ड’ का आइडिया और इसे धरातल पर उतारने वाले शख्स मनीष आईंद हैं.

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प्रवीण मुंडा, रांची: आदिवासी संस्कृति व सभ्यता झारखंड की विरासत हैं. इनसे जुड़ी चीजों को लोग पसंद तो करते हैं, लेकिन लोगों तक इनकी पहुंच नहीं होती. क्योंकि अब तक इनका व्यापार असंगठित तौर पर होता आया है. हालांकि, समय के साथ आदिवासियों का नजरिया बदला है और उद्यमिता के क्षेत्र में इनका दखल भी बढ़ा है. धीरे-धीरे ही सही, पर आदिवासी उद्यमिता की परिकल्पना साकार होती दिख रही है. ‘आदिवासी एंटरप्रेन्योर’ की शृंखला में ‘प्रभात खबर’ राज्य के उन आदिवासी उद्यमियों के संघर्ष और सफलता की कहानियां प्रकाशित कर रहा है, जो समाज व राज्य के लिए मिसाल बन चुके हैं. झारखंड के आदिवासी उद्यमियों के लिए ‘ट्राइबकार्ट’ एक क्रांतिकारी मंच साबित हुआ है. महज चार साल पहले शुरू हुए इस सोशल मीडिया नेटवर्क से आज राज्य के 70 हजार से अधिक लोग जुड़े हैं.

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यह आदिवासी उद्यमियों और उनके उत्पादों के ग्राहकों को एक सार्थक प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराता है. रांची में पिछले कुछ दशक से आदिवासी उद्यमियों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है, लेकिन उनके लिए व्यवसाय करना इतना आकर्षक पहले कभी नहीं था. ‘ट्राइबकार्ट’ इसका बड़ा कारण है. ‘ट्राइबकार्ड’ का आइडिया और इसे धरातल पर उतारनेवाले शख्स हैं मनीष आईंद हैं. मनीष बताते हैं कोरोना काल में जब लॉकडाउन लग गया था, तब हर किसी का व्यवसाय ठप पड़ गया था. उस समय ‘ट्राइबकार्ट’ का आइडिया आया था. सात मई 2020 को इसकी शुरुआत हुई. आइडिया चल निकला और बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ने लगे. आज हमारे साथ 70,000 से अधिक उद्यमी और खरीदार जुड़े हुए हैं. मनीष कहते हैं कि आदिवासी समाज को विकास करना है, तो उसे नौकरी का मोह छोड़कर उद्यमिता की ओर बढ़ना होगा. झारखंड में आदिवासी जनसंख्या 26% है और मुझे लगता है कि हमें व्यवसाय में भी 26% हिस्सेदारी हासिल करनी होगी.

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क्या है ट्राइबकार्ट :

‘ट्राइबकार्ट’ एक सोशल मीडिया पर आधारित बिजनेस प्लेटफॉर्म है. यह फेसबुक पर उपलब्ध है और नाम के अनुरूप यह आदिवासी उद्यमियों को अपने ग्राहकों से जोड़ने की सुविधा प्रदान करता है. ‘ट्राइबकार्ट’ के जरिये उद्यमियों को ग्राहक मिलते हैं और ग्राहकों को भी यह आदिवासी उद्यमियों द्वारा बनाये उत्पादों तक पहुंचने की सुविधा प्रदान करता है. इसके अलावा इसके जरिये समुदाय आधारित सेवा भी उपलब्ध करायी जा रही है. इसकी वजह से उद्यमी बगैर बिचौलियों के ग्राहकों से सीधा संपर्क कर उन तक अपने उत्पाद पहुंचा सकते हैं.

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