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आदिवासी सेंगल अभियान हाईकोर्ट के इस फैसले के सुधार के लिए दायर करेगा रिव्यू पिटीशन

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आदिवासी सेंगेल अभियान का कहना है कि यह फैसला भारतीय संविधान के प्रियमबल और स्पिरिट के अनुकूल प्रतीत नहीं होता है. यह प्रियमबल और अनुच्छेद 13 का उल्लंघन जैसा है.

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झारखंड हाइकोर्ट ने संताल परगना क्षेत्र के प्रधानी गांवों में प्रधान की मृत्यु के बाद उसके वारिस की नियुक्ति (वंशानुगत प्रधान की नियुक्ति) को विधिसम्मत व एसपीटी एक्ट (सप्लीमेंटरी प्रोविजन)-1949 के प्रावधानों के अनुकूल बताया है. जहां जो परंपरा (कस्टम) है, वह मान्य होगा. अदालत ने उक्त फैसला कल यानी बुधावार को सुनाया. अब इस फैसले के सुधार के लिए आदिवासी सेंगल समाज रिव्यू पिटीशन के लिए अर्जी देगी या फिर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करेगी.

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आदिवासी सेंगेल अभियान का कहना है कि यह फैसला भारतीय संविधान के प्रियमबल और स्पिरिट के अनुकूल प्रतीत नहीं होता है. यह प्रियमबल और अनुच्छेद 13 का उल्लंघन जैसा है. क्योंकि आदिवासियों के स्वशासन व्यवस्था ( माझी- परगना व्यवस्था) या ट्राइबल सेल्फ रुल सिस्टम में चालू पारंपरिक वंशानुगत नियुक्ति से अधिकांश अनपढ़, पियक्कड़, संविधान कानून से अनभिज्ञ ग्राम प्रधान ( माझी बाबा/ हड़म ) प्रत्येक संताल गांव- समाज में नियुक्त होते हैं.

संगठन का कहना है कि उत्तराधिकारी के रूप में संताल परगना में छोटे बच्चों को भी ग्राम प्रधान की नियुक्ति उपायुक्त और अनुमंडल पदाधिकारी करते हैं. जो कानूनन अवैध है. अंग्रेजों के जमाने में बनी यह एसपीटी कानून जमीन की रक्षार्थ ठीक हो सकता है. मगर रक्षक के रूप में वंशानुगत ग्राम प्रधानों की नियुक्ति अंग्रेजों की दलाली से ज्यादा कुछ नहीं है. राजतांत्रिक व्यवस्था को आज भी आदिवासी गांव- समाज में चालू रखने से स्वशासन अब स्वशोषण का रूप ले लिया है.

प्रत्येक आदिवासी गांव- समाज में ग्राम प्रधान और उसका चांडाल चौकड़ी किसी को भी जुर्माना लगाना और उस जुर्माने की रकम को हंड़िया-दारु पी कर मौज करना, किसी का भी सामाजिक बहिष्कार करना, डायन प्रथा को जारी रखते हुए किसी को भी डायन घोषित कर प्रताड़ित करना, जान से मारना जैसे गलत, गैर कानूनी, आपराधिक कार्यों को बढ़ावा दिया जा रहा है. ग्राम प्रधान चोर, बलात्कारी और हत्यारों को भी जुर्माना लेकर छोड़ने का काम करते हैं. ऐसी अनेक घटनाएं संथाल परगना में रिकॉर्डेड है. चुनाव के दौरान गांव समाज के वोट का मोलतोल भी ग्राम प्रधान करते हैं.

भारत के 10 प्रदेशों में पेसा पंचायत कानून- 1996 लागू है

आदिवासी सेंगल के संगठन का ये भी कहना था कि संविधान की धारा 243 M के तहत पहले यह वर्जित था. लेकिन जब दिलीप सिंह भूरिया कमेटी की रिपोर्ट ने रेखांकित और अनुशंसा किया कि आदिवासी स्वशासन के ग्राम प्रधान आदि (माझी- परगना, मानकी- मुंडा आदि ) वंशानुगत है, जनतांत्रिक नहीं. शेड्यूल एरिया में भी भारतीय संविधान के अनुकूल जनतांत्रिक तरीके से ग्राम पंचायत चुनाव होने चाहिए. लेकिन आदिवासी हितों की रक्षा के लिए सभी पंचायतों के मुखिया, प्रमुख, जिला परिषद अध्यक्ष आदि के पद आदिवासियों के लिए आरक्षित किए जाएं. भारत के संसद ने इसे उचित और अनुकूल स्वीकार किया और पेसा पंचायत कानून 1996 पारित किया है.

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