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हाईकोर्ट ने निरस्त की नियमावली, नौकरी के लिए झारखंड से 10वीं-12वीं की बाध्यता खत्म, सभी नियुक्तियां रद्द

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झारखंड हाइकोर्ट ने आयोग को नये सिरे से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने शुक्रवार को उक्त फैसला सुनाया. इससे पहले खंडपीठ ने सात सितंबर 2022 को मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था

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झारखंड हाइकोर्ट ने ‘झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली-2021’ को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया है. कहा कि यह नियमावली भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 व 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है. सरकार की यह नियमावली संवैधानिक प्रावधानों पर खरी नहीं उतरती है, इसलिए इसे निरस्त किया जाता है. साथ ही इस नियमावली से की गयी सभी नियुक्तियों व चल रही नियुक्ति प्रक्रिया को भी रद्द किया जाता है.

कोर्ट ने आयोग को नये सिरे से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने शुक्रवार को उक्त फैसला सुनाया. उल्लेखनीय है कि इस नियमावली के तहत यह प्रावधान किया गया था कि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए किसी भी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल होने के लिए उनका झारखंड से ही मैट्रिक और इंटर पास होना अनिवार्य होगा.

इससे पहले खंडपीठ ने सात सितंबर 2022 को मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. खंडपीठ ने यह भी कहा कि पूर्व की सुनवाई के दौरान अंतरिम आदेश दिया गया था कि रिट याचिकाओं पर होनेवाले अंतिम फैसले से पहले संशोधित नियमावली के तहत नियुक्ति प्रक्रिया की जाती है, तो वह अंतिम आदेश से प्रभावित होगी. इसलिए यह कोर्ट इस नियमावली से की गयी नियुक्ति प्रक्रिया को भी रद्द करता है. नियमावली रद्द होने से अब झारखंड राज्य के बाहर के संस्थानों से मैट्रिक-इंटर शिक्षा प्राप्त सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी भी जेएसएससी की नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे.

प्रार्थियों ने कहा था :

यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन : प्रार्थी की ओर से पूर्व महाधिवक्ता व वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज, अधिवक्ता कुमार हर्ष ने पक्ष रखते हुए खंडपीठ को बताया कि जेएसएससी नियमावली के कई प्रावधान असंवैधानिक हैं. यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.

राज्य के हजारों मूलवासी विद्यार्थी ऐसे हैं, जो राज्य के बाहर रहते हैं. उनके बच्चों ने राज्य के बाहर से मैट्रिक व इंटर की परीक्षा पास की है. वैसी स्थिति में मूलवासी होने के बाद भी उन्हें चयन प्रक्रिया से बाहर करना गलत है. जब मूल योग्यता स्नातक की है, तो 10वीं व 12वीं की पढ़ाई झारखंड से करनेवाले अभ्यर्थी ही नियुक्ति के लिए पात्र होंगे, यह प्रावधान सही नहीं है. आरक्षित वर्ग के लोगों के मामले में नियमावली का यह प्रावधान शिथिल रहेगा.

नियमावली का यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन करता है. वरीय अधिवक्ता श्री कुमार ने कहा कि राज्य में हिंदी भाषा बोलने व लिखनेवाले लोग सर्वाधिक हैं. इसके बावजूद हिंदी व अग्रेंजी को भाषा की श्रेणी से बाहर कर दिया गया. अधिसंख्य लोगों द्वारा बोली जानेवाली हिंदी और अंग्रेजी को भाषा (पेपर दो) से बाहर कर देना पूरी तरह से गलत है.

संशोधित नियमावली लागू करने से पहले राज्य सरकार की ओर से किसी प्रकार का अध्ययन नहीं किया गया और न ही इसका कोई ठोस आधार है. कई क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल नहीं किया गया है, जबकि ऊर्दू व उड़िया को क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है. संविधान के प्रावधानों के तहत इस तरह का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है.

राज्य सरकार ने कहा :

राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, वरीय अधिवक्ता पीएस पटवालिया, वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार व महाधिवक्ता राजीव रंजन ने सुनवाई के दाैरान अलग-अलग तिथियों में नियमावली का बचाव किया. उन्होंने खंडपीठ को बताया था कि नियमावली के प्रावधान पूरी तरह से संवैधानिक हैं. यह किसी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता है.

नियमावली में संशोधन के माध्यम से यहां के रीति-रिवाज व भाषा को परखने के लिए मापदंड तैयार किया गया है. हिंदी व अंग्रेजी को क्वालीफाइंग पेपर-1 में रखा गया है. स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भाषा के पेपर-2 से हिंदी व अंग्रेजी को हटाया गया है. वहीं, जेएसएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरावाल, अधिवक्ता प्रिंस कुमार, अधिवक्ता राकेश रंजन ने पक्ष रखते हुए खंडपीठ को बताया कि वह राज्य सरकार की अधियाचना व नियमावली के तहत परीक्षाओं का आयोजन कर रही है.

कई नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गयी है. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी रमेश हांसदा, विकास कुमार चाैबे, अभिषेक कुमार दुबे, रश्मि कुमारी व अन्य की ओर से अलग-अलग याचिका दायर कर जेएसएससी नियमावली को चुनौती दी गयी थी.

मुख्यमंत्री बोले : जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट जायेंगे

देवघर. खतियानी जोहार यात्रा की सभा के दौरान हाइकोर्ट से 2021 की नियोजन नीति को रद्द करने की जानकारी मिलने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा : हमने यह कानून बनाया था कि जो भी झारखंड से 10वीं और 12वीं पास करेगा, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर नौकरी पर रखेंगे, क्या यह गलत हुआ था? यही दुर्भाग्य है इस राज्य का. चिंता मत कीजिये, इसकी पूरी कानूनी जानकारी लेकर इस पर भी न्यायोचित पहल की जायेगी.

मुख्यमंत्री ने कहा कि 1932 खतियान के मामले को भी गवर्नर साहब सीधे प्यार से आगे बढ़ा दें, तो बहुत बढ़िया. लेकिन इतना आसान नहीं है. इसके लिए यहां से दिल्ली तक दौड़ लगानी पड़ेगी. झारखंड के बेरोजगारों व नौजवानों के लिए राजनीतिक के साथ-साथ कानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे. हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक जायेंगे.

नियमावली में सरकार ने किया था संशोधन

राज्य सरकार ने गजट नोटिफिकेशन संख्या-3849/दिनांक 10.8.2021 के माध्यम से झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली-2021 लागू की थी. इस संशोधित नियमावली में कहा गया था कि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को झारखंड के मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान से मैट्रिक व इंटर उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा तथा अभ्यर्थी को स्थानीय रीति-रिवाज, भाषा व परिवेश की जानकारी रखना अनिवार्य होगा,

लेकिन झारखंड राज्य के आरक्षण नीति से अच्छादित अभ्यर्थियों के मामले में इस प्रावधान को शिथिल कर दिया गया था. नियमावली में हिंदी व अंग्रेजी को भाषा की सूची से बाहर कर दिया गया था तथा उर्दू को क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा की सूची में शामिल किया गया था.

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