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झारखंड हाईकोर्ट ने घाघीडीह जेल में हुई हत्या में फांसी व आजीवन कारावास के 22 दोषियों को किया बरी

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झारखंड हाईकोर्ट ने जमशेदपुर के घाघीडीह जेल में कैदियों के दो गुटों में मनोज कुमार सिंह की हत्या मामले में फांसी और उम्रकैद के 22 दोषियों को बरी किया. खंडपीठ ने फैसले में अभियोजन पक्ष के मुख्य सबूत सीसीटीवी फुटेज को विधिसम्मत नहीं माना.

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Jharkhand News: झारखंड हाइकोर्ट ने जमशेदपुर के घाघीडीह जेल में मनोज कुमार सिंह की हत्या मामले में 15 फांसी व आजीवन कारावास के सात सजायाफ्ताओं को बरी करने का फैसला सुनाया. उनकी अपील याचिका को स्वीकार करते हुए 28 अगस्त, 2022 के निचली अदालत के सजा संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया. साथ ही खंडपीठ ने संदेह का लाभ देते हुए मामले से सजायाफ्ताओं को बरी कर दिया. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय व जस्टिस अंबुजनाथ की खंडपीठ ने बुधवार को उक्त फैसला सुनाया.

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हाईकोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज को विधिसम्मत नहीं माना

खंडपीठ ने फैसले में अभियोजन पक्ष के मुख्य सबूत सीसीटीवी फुटेज को विधिसम्मत नहीं माना. कहा कि सीसीटीवी फुटेज को एविडेंस एक्ट की धारा 65बी के तहत प्रमाणित नहीं कराया गया है, इसलिए उसे वैध नहीं माना जा सकता है. अपीलकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता अनिल कश्यप व अधिवक्ता अनुराग कश्यप ने पैरवी की.

घाघीडीह जेल में कैदियों के दो गुटों में हुआ था झगड़ा

उन्होंने पक्ष रखते हुए खंडपीठ को बताया कि घाघीडीह जेल में कैदियों के दो गुटों में झगड़ा हो गया. इसमें मनोज की मौत हो गयी. इस मामले में जमशेदपुर की निचली अदालत ने फांसी व आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी, जो सही नहीं है. मामले में जो गवाह थे, उन्होंने यह नहीं बताया कि किसने किस पर हमला किया. मुख्य सबूत सीसीटीवी फुटेज था. इसमें देखा गया कि मारपीट हो रही है, लेकिन किसी ने नहीं पहचान की. एविडेंस एक्ट की 65बी के तहत प्रमाणित नहीं कराया गया था. बिना प्रमाणित सीसीटीवी फुटेज कानून के अनुसार, वैध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि सीसीटीवी फुटेज के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती है. जमशेदपुर की निचली अदालत ने वर्ष 2022 में 15 को फांसी व सात को 10-10 साल की सजा सुनायी थी.

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इन्हें मिली थी फांसी की सजा

हत्याकांड में बासुदेव महतो, रामेश्वर अंगारिया, गंगा खंडैत, अरूप कुमार बोस, रमई करुवा, जानी अंसारी, अजय मल्लाह, पंचानंद पात्रो, गोपाल तिरिया, पिंकू पूर्ति, श्यामू जोजो, संजय दिग्गी, रामराय सुरीन, शिवशंकर पासवान, शरत गोप को फांसी की सजा सुनायी थी. कोर्ट ने आइपीसी की धारा 147, 323, 148, 325, 302, 307 व 120 बी में 15 लोगों को दोषी पाया था. कोर्ट ने आरोपियों को आइपीसी की धारा 302 व 120 बी में फांसी की सजा सुनायी थी, जबकि आइपीसी की धारा 307 में 10 वर्ष, 325 में पांच साल, 323 में एक साल, 147 में एक साल और 148 में दो साल की सजा सुनायी थी. फांसी की सजा पाने वाले 15 आरोपियों में से 12 पहले से ही आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं, जबकि तीन अन्य जघन्य हत्याकांड के आरोपी हैं.

इन्हें सुनायी गयी थी 10 साल सश्रम कारावास की सजा

ऋषि लोहार, सुमित सिंह, संजीत दास, तौकीर, सौरभ सिंह, सोनू लाल और शोएब अख्तर उर्फ शिबू को हत्या के प्रयास में दोषी पाकर कोर्ट ने दस साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने आइपीसी की धारा 147, 148, 323, 325 व 307 में सात लोगों को दोषी पाया था. आइपीसी की धारा 307 में 10 वर्ष, 325 में पांच साल, 323 में एक साल, 147 में एक साल और 148 में दो साल की सजा सुनायी गयी थी.

चार सिपाही समेत पांच के खिलाफ चल रहा ट्रायल, हरीश के खिलाफ वारंट जारी

मामले में आरोपी बनाये गये घाघीडीह जेल में तैनात चार सिपाही अनिल कुमार, पंकज कुमार मंडल, राम प्रताप यादव और संतोष कुमार के खिलाफ अपर जिला व सत्र न्यायाधीश चार की अदालत में ट्रायल चल रहा है. एक आरोपी अविनाश श्रीवास्तव के खिलाफ भी ट्रायल चल रहा है. हरीश सिंह के खिलाफ कोर्ट ने वारंट जारी किया है. वह फरार है. चारों सिपाहियों ने डिस्चार्ज पिटीशन दाखिल किया है.

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बेटे की हत्या करने वाले चार सिपाही को मिले सजा : अनिरुद्ध सिंह

घाघीडीह जेल में मनोज सिंह की मौत के मामले में पिता अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि उनके बेटे की मौत के लिए जेल में तैनात चार सिपाही दोषी हैं. इसमें तत्कालीन जेलर बालेश्वर सिंह भी दोषी हैं. कोर्ट उन्हें सजा दे. हाइकोर्ट के फैसले से दुख पहुंचा है.

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