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सरहुल में केकड़ा का महत्व : साल के फूल की तरह केकड़ा भी है जरूरी

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सरहुल पूजा के दूसरे दिन पाहन उपवास रखते हैं. उपवास के दौरान ही वह केकड़ा पकड़ते हैं. इस केकड़े को अरवा धगा से बांधकर पूजा घर में टांग दिया जाता है. धान की बुवाई की जब शुरुआत होनी होती है, तब इस केकड़े का चूर्ण बनाकर गोबर में मिला दिया जाता है.

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Sarhul and Crab: गेहूं की फसल की कटाई से पहले शुरू होने वाले सरहुल पूजा में केकड़े का भी अपना अलग महत्व है. जिस तरह सरहुल में साल के फूल का महत्व है, उसी तरह केकड़े की भी अहमियत है. आखिर क्यों पाहन यानी पुजारी केकड़ा पकड़ते हैं? क्या होता है उस केकड़े का? इसकी मान्यता क्या है? प्रकृति के पर्व में इस जीव का क्या काम? आइए, हम आपको बताते हैं कि केकड़े का सरहुल पूजा में क्या महत्व है.

केंकड़े के चूर्ण मिश्रित गोबर के साथ होती है धान की बुवाई

दरअसल, सरहुल पूजा के दूसरे दिन पाहन उपवास रखते हैं. उपवास के दौरान ही वह केकड़ा पकड़ते हैं. इस केकड़े को अरवा धागा से बांधकर पूजा घर में टांग दिया जाता है. धान की बुवाई की जब शुरुआत होनी होती है, तब इस केकड़े का चूर्ण बनाकर गोबर में मिला दिया जाता है. केकड़े के चूर्ण मिश्रित गोबर के साथ धान की बुवाई की जाती है.

Also Read: सरहुल का महाभारत कनेक्शन : आदिवासियों ने दिया था कौरवों का साथ, पांडवों के हाथों हुई ‘मुंडा सरदार’ की मौत

केंकड़े का चूर्ण डालने से अच्छी होती है फसल

आदिवासियों में ऐसी मान्यता है कि केकड़े का चूर्ण डालने से धान की फसल बहुत अच्छी होगी. सबको पता है कि केकड़े के असंख्य बच्चे होते हैं. अनुसूचित जनजाति के लोगों का मानना है कि जिस तरह केकड़े के असंख्य बच्चे होते हैं, उसका चूर्ण मिलाकर धान की बुवाई करने से धान की असंख्य बालियां निकलेंगी. इसलिए सरहुल में केकड़े का भी विशेष महत्व है.

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चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनता है सरहुल

कोरोना संक्रमण के बाद यह पहला मौका होगा, जब सरहुल का पर्व पूरे धूम-धाम से मनाया जायेगा. झारखंड की राजधानी रांची समेत पूरे प्रदेश में सरहुल की तैयारी चल रही है. शहरों में जुलूस निकाले जायेंगे, तो गांवों में अखड़ा में लोग नाच-गाकर सरहुल का त्योहार मनायेंगे. इस बार 24 मार्च को सरहुल का पर्व मनाया जायेगा. आज चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है. इसलिए आज ही सरहुल की शोभायात्रा निकाली जायेगी.

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