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Jharkhand Election 2024: सबसे खराब पर्यावरण वाले राज्यों में झारखंड, पर किसी दल का एजेंडा में नहीं है इसका संरक्षण

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Jharkhand Election 2024: झारखंड विधानसभा के चुनाव में किसी भी दल ने अपने घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण का एजेंडा अपने में शामिल नहीं किया है. जबकि पर्यावरण के दृष्टिकोण से यह सबसे खराब राज्य में शामिल है.

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Jharkhand Election 2024, रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 20 नवंबर को होगा. पहले चरण के मतदान से एक दिन पहले तक सभी दलों ने चुनावी घोषणा पत्र जारी किया. इसमें सरकार बनने के बाद जनता से कई वादे किये गये हैं. लेकिन, अपने घोषणा पत्रों में किसी भी राजनीतिक दल ने पर्यावरण संरक्षण का जिक्र का नहीं किया है. पर्यावरण बचाने के लिए राजनीतिक दल क्या प्रयास करेंगे, इसका कहीं जिक्र नहीं है. जबकि, पर्यावरण के दृष्टिकोण से झारखंड सबसे खराब राज्यों में से एक है. यहां की जलवायु व मिट्टी बिगड़ रही है. इस पर कई राष्ट्रीय संस्थाओं ने रिपोर्ट भी की है.

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18 जिलों में होता है खनन का कार्य

झारखंड के 18 जिलों में किसी न किसी प्रकार का खनन कार्य होता है. तीन कोयला कंपनियां यहां खनन का काम कर रही हैं. इसके अतिरिक्त कई निजी कंपनियों के कैप्टिव माइंस चल रहे हैं. जो अपनी उपयोग के कोयला निकाल रहे हैं. कोयला प्रभावित क्षेत्र के लोग प्रदूषण से परेशान हैं. बात कोयला खनन को कम करने की हो रही है. इसको लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस भी हो रही है. झारखंड इस बहस के केंद्र में है. इसके अतिरिक्त कई जिलों में आयरन ओर, बॉक्साइड का खनन भी होता है. यह भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है.

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झारखंड की 69 फीसदी भूमि की गुणवत्ता हो गयी है खराब

स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, अहमदाबाद ने झारखंड की जमीन को सबसे अधिक खराब वाले राज्यों की श्रेणी में रखा है. कई कारणों से यहां की करीब 69 फीसदी भूमि बंजर होने की ओर है. यह स्थिति धीरे-धीरे बढ़ रही है. इससे खेती में परेशानी हो सकती है. इसका कारण जंगलों का कटाव और बरसात के दिनों में जल का तेज बहाव भी है, जो हमारी उपजाऊ मिट्टी को बहाकर ले जा रही है. राज्य में जंगल तो बढ़ रहे हैं. लेकिन, घने जंगलों की स्थिति ठीक नहीं है. इस कारण यहां वन्य प्राणी भी संकट में हैं. पलामू टाइगर रिजर्व आज टाइगर के लिए तरस रहा है.

हाथी-मानव द्वंद से हो रही सैकड़ों लोगों की मौत

हाथी और मानव द्वंद से प्रत्येक साल सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है. हाथी गांव छोड़ कर शहरों में आ जा रहे हैं. कई विधानसभा क्षेत्र और ग्रामीण इलाकों का यह ज्वलंत मुद्दा है. लेकिन, अपने घोषणा पत्रों में इससे लोगों को बचाने का जिक्र किसी राजनीतिक दल ने नहीं किया है.

क्या कहते हैं पर्यावरणविद

पर्यावरणविद डीएस श्रीवास्तव ने कहा कि हर साल हाथी सैकड़ों लोगों की जान ले रहे हैं. वहीं, हाथी भी मारे जा रहे हैं. जंगल घट रहा है. इसे बचाने का कोई उपाय किसी राजनीतिक दल ने नहीं किया है. वन्य प्राणी संकट में हैं. जल, जंगल और जमीन केवल राजनीतिक दलों का नारा हो गया है. झारखंड अब झार विहीन खंड होने जा रहा है. यहां की खदानों को लूटा जा रहा है. पर्यावरण को प्रदूषित किया जा रहा है. लेकिन, किसी राजनीतिक दल के विजन में यह नहीं है.

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