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झारखंड का आर्थिक सर्वेक्षण: राज्य के विकास की गाथा

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वर्ष 2019-20 में राज्य की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय स्थिर मूल्य पर करीब 55 हजार रुपये (55658) एवं वर्तमान मूल्य पर यह करीब 75 हजार रुपये (75016) थी.

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हरीश्वर दयाल, अर्थशास्त्री व राज्य वित्त आयोग के सदस्य :

विधानसभा में पेश किया गया राज्य की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पिछले वर्षों में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में हुए विकास को प्रतिबिंबित करती है. पिछले कुछ वर्षों में झारखंड की विकास दर अधिकांशतः देश के विकास दर से अधिक रही है. गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन की दिशा में भी इसने सफलता प्राप्त की है. झारखंड की अर्थव्यवस्था वर्ष 2019-20 की आर्थिक मंदी एवं 2020-21 के कोविड-19 और देशव्यापी लॉकडाउन के प्रभाव से पूरी तरह से उबर चुकी है. राज्य की वास्तविक आय (जीएसडीपी- स्थिर (2011-12) मूल्य पर) पिछले तीन वर्षों के दौरान यानी 2020-21 और 2022-23 के बीच 8.8 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ी है. चालू वित्त वर्ष (2023-24) में इसके 7.1 प्रतिशत और अगले वित्त वर्ष (2024-25) में 7.7 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है.

2019-20 में देशव्यापी आर्थिक मंदी और 2020-21 में कोविड-19 एवं लॉकडाउन का कुप्राभव देश के साथ-साथ झारखंड राज्य पर भी पड़ा. इन दो वर्षों में देश एवं राज्य दोनों की विकास दर में गिरावट आयी, लेकिन इस दौरान देश की तुलना में राज्य की विकास दर में कम गिरावट आयी. कोविड-19 और उसके कारण लगाये गये देशव्यापी लॉकडाउन से हुई त्रासदी का प्रबंधन झारखंड ने अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा कुशलता एवं संवेदनशीलता से किया. इस कारण इसकी आय में देश की आय की तुलना में कम गिरावट आयी. जहां इसकी आय में 5.3% की गिरावट आयी, वहीं देश की आय में भी 5.8% की गिरावट आयी. झारखंड में इस साल आयी आय की गिरावट ज्यादातर अन्य राज्यों की तुलना में भी कम थी. इसने इस समय में अपने गरीबों, मजदूरों एवं प्रवासी मजदूरों के लिए भी कई प्रभावी कदम उठाये. कोविड के बाद झारखंड की आर्थिक स्थिति में काफी तेजी से सुधार हुआ.

वर्ष 2021-22 में इसमें 10.9% की वृद्धि हुई. जब की देश की विकास दर इस वर्ष 9.1% रही. इसके बाद से राज्य प्रगति की राह पर अग्रसर है. वर्ष 2022-23 में इसकी विकास दर 6.8% रही और इस वर्ष इसके 7.1% रहने का अनुमान है. वर्ष 2024-25 में इसकी विकास दर 7.7% रहने का अनुमान है. वर्ष 2011-12 में राज्य की आय करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2022-23 में बढ़ कर स्थिर मूल्य पर करीब 2.6 लाख करोड़ रुपये एवं वर्तमान मूल्य पर करीब 3.9 लाख करोड़ रुपये हो गयी. वर्ष 2024-25 में राज्य की आय का स्थिर मूल्य पर करीब तीन लाख करोड़ रुपये एवं वर्तमान मूल्य पर करीब 4.7 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है.

वर्ष 2019-20 में राज्य की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय स्थिर मूल्य पर करीब 55 हजार रुपये (55658) एवं वर्तमान मूल्य पर यह करीब 75 हजार रुपये (75016) थी. वर्ष 2023-24 तक इसके बढ़ कर स्थिर मूल्य पर इसके करीब 63 हजार रुपये एवं वर्तमान मूल्य पर 98 हजार रुपये होने का आकलन है. वर्ष 2024-25 में इसका स्थिर मूल्य पर 67 हजार रुपये एवं वर्तमान मूल्य पर एक लाख सात हजार रुपये होने का अनुमान है. वर्ष 2019-20 में झारखंड का जीएसडीपी (जीडीपी) देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.59 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2022-23 में 1.62 प्रतिशत हो गयी. कुछ वर्षों को छोड़ दें तो झारखंड की विकास दर अधिकांशतः देश की तुलना में अधिक रही है.

बजट का आकार : राज्य के बजट के आकार में भी लगातार वृद्धि होती रही है. वर्ष 2001-02 में बजट का कुल आकार करीब छह हजार करोड़ रुपये था. वर्ष 2019-20 में यह बढ़ कर करीब 70 हजार करोड़ हो गया. पिछले वर्ष से ही यह एक लाख करोड़ को पार कर गया है. वर्ष 2022-23 (बीइ) में इसके एक लाख 16 हजार करोड़ रुपये होने का अनुमान है. बढ़े हुए बजट के आकार के कारण वर्तमान राज्य सरकार जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कई सार्थक कदम उठा रही है. वर्ष 2011-12 में राज्य के बजट का आकार राज्य के जीएसडीपी का लगभग 17 प्रतिशत था. यह वर्ष 2022-23 में जीएसडीपी का 23.8 प्रतिशत हो गया और वर्ष 2023-24 में इसके जीएसडीपी का 27.2 प्रतिशत होने का अनुमान है. राज्य को कोविड के बाद के वर्षों में हमेशा रेवेन्यू सरप्लस रहा है. राज्य के इस सरप्लस रेवेन्यू का व्यवहार राज्य में पूंजी निर्माण को बढ़ाने के लिए होता है.

राज्य का राजस्व घाटा भी कोविड के बाद के वर्षों में एआरबीएम द्वारा निर्धारित सीमा जीडीपी के तीन प्रतिशत से कम रहा है. इस वित्त वर्ष (2023-24 बीइ) में इसके जीएसडीपी के 2.73 प्रतिशत रहने का अनुमान है. 2020-21 के कोविड वर्ष को छोड़कर, झारखंड का कर्ज उसके जीएसडीपी के करीब 30 प्रतिशत के बराबर रहा है और इसका ब्याज भुगतान भी राज्य की राजस्व प्राप्तियों के 10 प्रतिशत से भी कम रहा है. वर्ष 2022-23 में राज्य का ब्याज भुगतान राज्य की राजस्व प्राप्ति का 8.4 प्रतिशत था और इस वर्ष (2023-24 बीइ) इसके 6.9 प्रतिशत होने का अनुमान है. राज्य का ऋण एवं ब्याज की स्थिति इस तरह सस्टेनेबल है.

गरीबी : नीति आयोग के रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015-16 में राज्य के 42.1% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे. इनकी संख्या वर्ष 2019 से 21 की अवधि में घट कर 28.8% रह गया. इस तरह से इन पांच वर्ष की अवधि में इसमें करीब 32% की कमी आयी. इस पांच वर्ष की अवधि में ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी करीब 51% से घट कर 35% रह गयी और शहरी क्षेत्र में यह करीब 15% से घट कर करीब 8.7% रह गयी.

बेरोजगारी : वर्ष 2017-18 से 2022-23 के बीच 15 से 59 साल के उम्र वालों में बेरोजगारी दर में काफी कमी आयी है. वर्ष 2017-18 में इस उम्र वालों में बेरोजगारी दर 8.1% थी, जो 2022-23 में घट कर मात्र 1.8% रह गयी. इस अवधि में बेरोजगारी दर सभी आयु वर्ग एवं महिलाओं एवं पुरुषों दोनों में कम हुई. कोविड के समय में लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के थम जाने के कारण बेरोजगारी में अल्पकालिक वृद्धि हुई थी, लेकिन लॉकडाउन में मिली रियायत के साथ ही इसमें कमी आने लगी. 2020 के अगस्त महीने से ही रोजगार के अवसरों में वृद्धि होने लगी थी और बेरोजगारी में कमी आने लगी थी. सामान्यत: शहरी क्षेत्रों में, युवाओं में एवं शिक्षितों में बेरोजगारी ज्यादा रहती है. ऐसे लोग अच्छे रोजगार के इंतजार में कुछ समय तक स्वेच्छा से बेरोजगार रह जाते हैं. ऐसे लोगों की बेरोजगारी में भी इस अवधि में काफी कमी आयी है. यह दर्शाता है की इस अवधि में इस राज्य में न केवल रोजगार बढ़ा है, बल्कि लोगों को अपने पसंद के अनुसार रोजगार मिल पा रहा है.

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