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अपनी खिलाड़ी को नौकरी न दे सका झारखंड, छत्तीसगढ़ में नौकरी कर रही अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर रही नूपुर टोप्पो

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एशियन क्वालिफाइंग गेम्स में भारतीय टीम में थी शामिल. नौकरी के लिए अपने ही राज्य में निराशा लगी हाथ, फिलहाल वह छत्तीसगढ़ के सक्ति जिला के एक स्कूल में शिक्षिका है.

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झारखंड की कई बालिका फुटबॉलरों ने अपनी प्रतिभा से राज्य का नाम रोशन किया. पर अब वे गुमनाम हैं और खेल छोड़ कर दूसरे राज्य में नौकरी रही हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है गुमला शहर से तीन किमी दूर एक गांव की रहनेवाली नूपुर टोप्पो की. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी नुपूर ने जब झारखंड में रोजगार की तालाश शुरू की तो निराशा हाथ लगी. फिलहाल वह छत्तीसगढ़ के सक्ति जिला के एक स्कूल में शिक्षिका है.

नूपुर बताती है : 2015 मेें मैंने फुटबॉल खेलना छोड़ दिया था. इसके बाद झारखंड में कई जगह नौकरी का आवेदन दिया. हर जगह से आश्वासन मिला. मैंने दो साल इंतजार किया, पर नौकरी नहीं मिली. बाद में बोकारो के एक स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर की नौकरी की. झारखंड में 2021 में जब खिलाड़ियों की सीधी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई, तो उसमें भी आवेदन दिया, लेकिन यहां भी निराश हाथ लगी. झारखंड में किसी भी फुटबॉलर को इसका फायदा नहीं हुआ.

निराश होकर मैं छत्तीसगढ़ के सक्ति जिला के एक स्कूल में स्पोर्ट्स शिक्षक का काम शुरू किया. मेरे पिता का इलाज चल रहा है और बहनों की जिम्मेवारी भी मुझ पर है. इसलिए यहां काम करना पड़ रहा है.

10 साल खेला फुटबॉल, जॉब नहीं मिली

नूपुर टोप्पो ने 2006 में अपने पैतृक जिला गुमला से ही फुटबॉल खेलना शुरू किया. इसके बाद इनका चयन साई रांची में हुआ. यहां से छह से सात बार झारखंड टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए कई प्रतियोगिताओं में टीम को विजेता बनाया. 2010 में नूपुर का चयन एशियन क्वालिफाइंग गेम्स के लिए भारतीय टीम में हो गया. यहां खेलने के दौरान ये खिलाड़ी चोटिल हो गयी. इलाज होने के बाद ये ठीक हुई और इसके बाद 35वें नेशनल गेम्स केरला में झारखंड का प्रतिनिधित्व किया.

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