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भारतीय संघवाद की तुलना में राज्यपाल की भूमिका व कार्य के बारे में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रो उदय शंकर ने विस्तार से अपना मंतव्य रखा. उन्होंने कहा कि राज्यपाल संविधान व जनकल्याण की शपथ लेते हैं.

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विधानसभा द्वारा केंद्र व राज्य संबंधों पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया़ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, रांची और पीआरएस लेजिस्लेटिव के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में देश भर के विधि व संविधान विशेषज्ञ शामिल हुए़ सम्मेलन में राज्य व केंद्र संबंधों के 11 पहलुओं पर विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी. दो अलग-अलग सत्रों में संघवाद पर न्यायापालिका, केंद्र व राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा, सुशासन, भारत में राजकोषीय संघवाद के साथ संघवाद में राज्यपाल की भूमिका व केंद्रीय एजेंसी की राज्यों में भूमिका विषय पर विशेषज्ञों ने अपनी राय दी.

भारतीय संघवाद की तुलना में राज्यपाल की भूमिका व कार्य के बारे में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रो उदय शंकर ने विस्तार से अपना मंतव्य रखा. उन्होंने कहा कि राज्यपाल संविधान व जनकल्याण की शपथ लेते है़ं राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते है़ं वह केंद्र व राज्य के बीच कड़ी है़ गवर्नर की नियुक्ति राष्ट्रपति करते है़ं केंद्र की भूमिका होती है़ कई बार सत्ता बदलती है, तो राज्यपाल को बदल दिया जाता है. राज्यपाल के पद में स्थायित्व होना चाहिए. इसके साथ ही इनकी जवाबदेही भी तय होनी चाहिए.

राज्यपाल स्वविवेक से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है़ं श्री शंकर ने कहा कि विधेयक में उनके निर्णय लेने का कोई टाइम फ्रेम नहीं है. संविधान में अब ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि कई बार गवर्नर की नियुक्ति में राज्य सरकारें अधिकार मांगती हैं, लेकिन यह सही नहीं है. ऐसे में राज्य सरकार अपने लोगों को इस भूमिका में सामने लायेंगी. राज्य में दो पावर सेंटर नहीं होने चाहिए.

प्रो शंकर ने कहा कि गवर्नर को राज्य में रहते हुए राष्ट्रीय एकता और संघवाद की कड़ी बनना है़ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, रांची के डॉ केशवराव वुरकुला ने सम्मेलन का संचालन किया और वक्ताओं का परिचय कराया़ उन्होंने कहा कि इस तरह के विचार विमर्श से नीति के विकास का आधार बनता है़ यह आयोजन शिक्षाविदों व विधायकों को एक-दूसरे के करीब ला रहा है.

सम्मेलन में प्रख्यात विधि विशेषज्ञ डॉ ए लक्ष्मीनाथ ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने भारत में राजकोषीय संघवाद पर अपनी बातें रखीं. राजकोष में केंद्र व राज्य की हिस्सेदारी की बारीकियां बतायी़ सम्मेलन के दूसरे सत्र में स्थानीय स्वशासन और भारतीय संघवाद विषय पर प्रोफेसर डॉ कृष्ण महाजन ने कहा कि पंचायत व गांव के विकास को लेकर नीति बनायी गयी. संविधान में 73 वां व 74 वां संशोधन किया गया. इसमें सामुदायिक विकास, लोगों की सहभागिता व लैंड रिफॉर्म की बात कही गयी है, लेकिन इस बात की कही भी उल्लेख नहीं है कि पैसा व डाटा कहां से आयेगा.

ऐसे में कहा जा सकता है कि यह दोनों संशोधन संविधान के साथ धोखा है. अखिल भारतीय सेवा और केंद्र राज्य संबंध विषय पर डॉ के श्यामला ने कहा कि अखिल भारतीय सेवा में केंद्र सरकार नियुक्ति करती है, लेकिन इन्हें राज्यों में काम करना पड़ता है. इनका मुख्य दायित्व शासन व्यवस्था को नियंत्रित रखना है. कभी-कभी इनके कार्यों में परोक्ष रूप से राजनीतिक हस्तक्षेप भी होता है. इससे हट कर इन्हें सामाजिक न्याय दिलाने की दिशा में कार्य करने की जरूरत है.

केंद्र-राज्य संबंध और कोविड-19 महामारी विषय पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर योगेश प्रताप सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, लेकिन कोविड महामारी में केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा की. इस पर फैसला लेने से पहले राज्यों से सहमति नहीं ली गयी. इस वजह से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा. हालांकि बाद के दिनों में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से समन्वय स्थापित कर एहतियात के तौर पर कोई ठोस कदम उठाये. महामारी व आपात स्थिति में केंद्र व राज्य के समन्वय से ही सुधार संभव है.

प्रो शिवा कुमार ने संघीय ढांचे में केंद्रीय जांच एजेंसियों की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि संविधान में सभी जांच एजेंसियों की भूमिका तय की गयी है. हालांकि कई बार इन पर राजनीतिक हस्तक्षेप के भी आरोप लगते रहे हैं. जांच एजेंसियां क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के तहत कार्य करती हैं. अगर किसी एजेंसी की जांच में राज्य सरकार बाधक बनती है, तो उसके लिए कोर्ट का दरवाजा खुला है. डॉ रवींद्र कुमार पाठक ने भारत में संघीय व्यवस्था पर विस्तार से प्रकाश डाला. सम्मेलन में चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ मनोज सिन्हा, प्रो दिलीप उके, डॉ कृष्णा महाजन, डॉ शिवकुमार, डॉ बोगेश प्रताप सिंह सहित अन्य शामिल हुए.

केंद्र और राज्य के संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आये

सम्मेलन में विधानसभा अध्यक्ष रबींद्रनाथ ने इसके उद्देश्यों के बारे में बताते हुए कहा कि पिछले 73वर्षों में केंद्र व राज्य के संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आये है़ं हमें अपने देश के संघीय ढांचे को बचाये रखना है़ केंद्र व राज्य के बीच स्वस्थ संबंध देश के विकास के लिए जरूरी है़ संविधान में पिछले सात दशक में संविधान में 105 संशोधन हुए़ केंद्र व राज्य के संबंध को लेकर कइ्र आयोग भी बने़ केंद्र के सहयोग से स्थानीय स्वशासन को समृद्ध करने की जरूरत है.

सम्मेलन में मंत्री आलमगीर आलम, विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी, डॉ लंबोदर महतो, अमित मंडल, इरफान अंसारी, नमन विक्सल कोंगाड़ी और राजेश कच्छप पहुंचे थे़ सम्मेलन में पीआरएस के चक्षु राय सहित लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर व विधानसभा के अधिकारी-कर्मी शामिल हुए.

केंद्र व राज्य में समन्वय जरूरी : आलमगीर

संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि संविधान में केंद्र व राज्य सरकार के कार्यों के विस्तार से उल्लेख किया गया है. केंद्र व राज्य में टकराव की बातें भी सामने आ रही है. यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है. लोकतंत्र की मजबूती के लिए केंद्र व राज्य में समन्वय जरूरी है.

संविधान केंद्र व राज्य को निरंकुश होने से रोकता है

विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा कि संविधान केंद्र व राज्य को निरंकुश होने से रोकता है. कोविड महामारी के दौरान केंद्र व राज्य सरकार का समन्वय हमें देखने को भी मिला. दोनों की सहभागिता से हम करोड़ों लोगों की जान बचाने में सफल हो सके.

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