29.5 C
Ranchi
Wednesday, February 5, 2025 | 11:30 am
29.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

प्रभात खबर संवाद : क्राइसिस का समय है, सबको मिल कर लड़ना होगा – दीपांकर भट्टाचार्य

Advertisement

प्रभात खबर संवाद में माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने देश व राज्य के हालात पर बेबाकी से अपनी बात रखी. वर्तमान दौर में वह वाम एकता के बिखराव को भी कम देखते हैं, मानते हैं कि यह आनेवाले समय में मजबूत होगा.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Prabhat Khabar Samvad: माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने देश व राज्य के हालात पर बेबाकी से अपनी बात रखी. वह आनेवाले लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता को लेकर आशावान हैं. देश की वर्तमान परिस्थिति में व्यापक विपक्षी एकता के पैरोकार हैं. वर्तमान दौर में वह वाम एकता के बिखराव को भी कम देखते हैं, मानते हैं कि यह आनेवाले समय में मजबूत होगा. वह देश में आपातकाल जैसी स्थिति मान रहे हैं, उनका मानना है कि देश के सवाल, समस्या और मुद्दों से लोगों को भटकाया जा रहा है. देश की संवैधानिक एजेंसियों को कमजोर किया जा रहा है. पेश है माले के राष्ट्रीय महासचिव से बातचीत के अंश.

- Advertisement -

आप बंगाल स्टेट में बोर्ड के टॉपर रहे, देश के प्रतिष्ठित स्टेटिकल इंस्टीट्यूट से पढ़ाई की. अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर वामपंथ का झंडा थामा, इसके पीछे की पूरी कहानी क्या है?

मैंने कभी नौकरी नहीं की. हां 1979 तक इंडियन स्टेटिकल इंस्टीट्यूट में पढ़ाई की. इसी समय पार्टी से संपर्क हुआ. डिग्री के आखिरी साल में मात्र 10 फीसदी उपस्थिति होने के कारण रिजल्ट रोक दिया गया. इस पर एकेडेमिक काउंसिल ने आपत्ति जतायी थी. एक साल बाद मेरा रिजल्ट जारी किया गया. पिताजी रेलवे में थे. वह भी वामंपथी सोच के थे. जब शुरुआती शिक्षा चल रही थी. उस समय बंगाल में नक्सलबाड़ी आंदोलन चरम पर पहुंच गया था. लोग आजादी मांगते थे. उस वक्त समझ में नहीं आता था कि देश आजाद हुए 25 साल ही हुए हैं. फिर आजादी की लड़ाई हो रही है. मेरे मन में यह सवाल था. पिताजी इस बारे में कुछ बताते थे. उन्होंने कभी रोकने की कोशिश नहीं की. बाद में वह कहते थे कि अगर पता होता कि तुम फूल टाइम कार्यकर्ता बन जाओगे, तो तुमको कुछ बताता नहीं. इसी दौरान आपातकाल को लेकर आंदोलन चलने लगा. कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और जाधवपुर यूनिवर्सिटी आंदोलन के केंद्र में था. 1977 के चुनाव ने मेरे जीवन पर बड़ा असर डाला. इस दौरान कई तरह की पाबंदियां थीं. चुनाव परिणाम से लगने लगा था कि देश में एक बार फिर डेमोक्रेसी वापस आ रही है. वामपंथ भी बंगाल में इसी समय सत्ता में आया. इसी समय तय कर लिया था कि मेरा आगे का रास्ता भी यही है.

आप लंबे समय से वाम आंदोलन में जुड़े रहे. कामरेड विनोद मिश्र से लेकर दिग्गज वामपंथियों के साथ काम किया. भूमिगत आंदोलन में भी रहे. तब का कोई अनुभव, बड़े संघर्ष को साझा करें?

पर्सनली बहुत कुछ नहीं झेलना पड़ा. झारखंड में ही मुझे लाठी खाने का मौका मिला. झारखंड में बहुत बड़ी रैली आयोजित की गयी थी. इससे पहले नया झारखंड राज्य बना था. सत्ता ऐसे हाथों में चली गयी थी, जिन्होंने अलग राज्य के लिए कभी संघर्ष ही नहीं किया था. उनको झारखंड नाम से नफरत था. इसी समय तपकरा गोली कांड हुआ था. राजधानी में दो समुदाय में संघर्ष हुआ था. इसी को लेकर हम लोग शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा घेरने जा रहे थे. महेंद्र सिंह सदन के अंदर आवाज उठा रहे थे, लेकिन लगता है कि प्रशासन ने पहले से ही हमलोगों को पीटने का मन बना लिया था. उसी दिन लगा था कि ऐसी सत्ता लोकतंत्र के लिए खतरा है. यह आज महसूस हो रहा है. हम तो वैसे लोगों की ही आवाज उठाते हैं, जो बोल नहीं पाते हैं.

आईपीएफ से भाकपा माले तक के सफर के बारे में बतायें ?

जब हमलोग आइपीएफ में थे, तो चुनाव नहीं लड़ते थे. सामाजिक सरोकार के मुद्दों को लेकर इसका गठन हुआ था. जब चुनाव लड़ने लगे तो फ्रंट ने पार्टी का शेप लेना शुरू कर दिया. 1992 के दिसंबर में कोलकाता अधिवेशन में हम लोगों ने पार्टी बनायी. लगा कि राजनीतिक संघर्ष की जरूरत है. उस वक्त फासीवादी ताकतें बढ़ना शुरू हो गयी थी.

राजनीति में आपके आदर्श कौन हैं. किनसे प्रभावित होकर वाम आंदोलन के सिपाही बने?

आदर्श तो बहुत हैं. लेकिन, जिन्होंने मार्क्सवाद की पुस्तकें बढ़ी है. वही उनका आदर्श है. अलग-अलग समय में अलग-अलग आदर्श रहे हैं. आज देश को बहुत बड़ी लड़ाई लड़ने की जरूरत है.

आजादी के बाद भारतीय शासन व्यवस्था, सत्ता में वामदलों की अच्छी साख और पकड़ रही. आज स्थिति ऐसी नहीं है, इसके पीछे का क्या कारण रहा ?

आजादी के बाद जो हिंदुस्तान की यात्रा शुरू हुई. हमारी यात्रा संविधान का साथ शुरू हुई थी. इसमें हम भारत के लोग अपने भारत में धर्म निरपेक्ष के तौर पर रहेंगे. यह हुआ था. इस रिपब्लिक में एक नागरिक की बात होती थी. उनका अधिकार भी था. आज नागरिक को प्रजा बनाया जा रहा है. उनकी आजादी छिनी जा रही है. अंग्रेजों के राज में तब्दील किया जा रहा है. यह सवाल केवल वामपंथियों की नहीं है. सभी की है. नागरिक का अधिकार देश में खतरे में है. इस तरह फासीवाद देश नहीं था. तमाम धाराएं, क्षेत्रीय पार्टियां, सामाजिक पार्टियां इस दौर में कमजोर हुई है. इस कारण कोई एक पार्टी संकट में नहीं है. यह क्राइसिस का समय है. सबको मिलकर लड़ना होगा.

राजनीतिक चिंतक कहते हैं कि वामदलों ने समय के साथ अपने ऑडियोलॉजी को दिशा नहीं दी. एक स्टिरियोटाइप राजनीतिक चिंता व चिंतन के इर्द-गिर्द ही वाम दल घूमते रहे ?

ऐसा गलत है. समय के साथ सबसे अधिक मुद्दा हमलोग पकड़ते हैं. समय के साथ सबसे पहले हम अपने को बदलते हैं. कुछ बातें हमारे लिए शाश्वत है. जिसे हम बदल नहीं सकते हैं. उसे घिटी-पिटी कह भी नहीं सकते हैं. आजादी, भाईचारा जैसे मुद्दे कभी पुराने नहीं हो सकते हैं. हम इसके साथ ही जीते हैं.

जहां पहले वाम दल था, वहां भी लालगढ़ बच नहीं पाया. वजह क्या रही ?

वामपंथ का सफाया कहीं नहीं हुआ है. पंथ आज भी है. मजबूती से है. यह सही है कि विधानसभा में प्रतिनिधित्व नहीं है. राजनीति में ऐसा होता रहता है. पिछले चुनाव में हम बिहार में सदन में नहीं थे. इस बार 12 विधायकों के साथ हैं. बंगाल में 34 साल वामपंथ की सरकार चली. इस सरकार का अंतिम दौर ठीक नहीं था. सिंगुर की तरह की कई घटनाएं थी, जिससे जनता का विश्वास टूटा. मेरा मानना है कि बंगाल में हम फिर रिवाइव करेंगे.

बिहार में माले की जमीनी पकड़ व जनाधार दिखता है, लेकिन चुनाव में सीटों के रूप में परिवर्तित नहीं हो पाता. पिछले चुनाव में आपने 12 सीटों पर जीत हासिल की?

हम गरीबों की पार्टी हैं. हाशिये वाली पार्टी हैं. हम राजनीति तो करते हैं, लेकिन चुनावी राजनीति में कमजोर पड़ जाते हैं. हम संघर्ष के बल पर ही अपना स्थान बनाना चाहते हैं. चुनाव में अन-इक्वल (गैर बराबर) की लड़ाई होती है. मीडिया में भी चुनाव के समय हमें स्थान नहीं मिल पाता है. इससे पार्टी की जो असली ताकत है, धीरे-धीरे कम हो जाती है. इसके बावजूद बिहार में हमलोग महागठबंधन के साथ गये. 19 सीटों में लड़े, 12 जीते. सबसे अच्छा प्रतिशत हम लोगों का ही रहा. महागठबंधन में जाने का फायदा हमारे साथियों को भी मिला.

झारखंड में माले दो विधानसभा क्षेत्र तक ही सिमटी हुई है. बगोदर आपका गढ़ रहा है, वहीं राजधनवार में एक बार जीत हासिल हुई?

झारखंड में एक से अधिक सीट क्यों नहीं जीत पाते हैं, यह हमारी पार्टी के लिए भी मुद्दा है. झारखंड बना तो हम तेजी से आगे बढ़ रहे थे. महेंद्र सिंह एक राजनीतिक ताकत बन रहे थे. इसी बीच उनकी हत्या कर दी गयी. हम मानते हैं कि वह एक राजनीतिक हत्या थी. पांकी में जब हम दूसरे स्थान पर थे, तो वहां के मेरे प्रत्याशी को जेल में डाल दिया गया. मुकदमे थोप दिये जाते हैं.

वाम दलों में आपसी मतभेद है. आपने भाकपा और माकपा से दूरी बना कर क्यों रखी है. वाम एकता क्यों नहीं बन पा रही?

हम एक मंच पर आते हैं. लेकिन, जितनी एकता होनी चाहिए, उतनी नहीं हो पाती है. यह स्थिति सभी जगह है. आज के दौर में बिखराव के संकेत कम है. एकता ज्यादा दिख रही है.

झारखंड सरकार के कामकाज का क्या आकलन करते हैं. कई अवसर पर हेमंत सोरेन सरकार का आपने समर्थन भी किया है?

झारखंड में हमने सरकार का समर्थन किया. हम भाजपा को सत्ता से दूर रखना चाहते थे. भाजपा ने देश को बर्बाद किया है. झारखंड के लोगों की जो मुश्किलें थी, वह उम्मीद के अनुरूप नहीं कम हो पायी. कई जबरदस्त सवाल आज भी बने हुए हैं. सरकार जरूर बदल गयी, लेकिन मुद्दे आज भी जिंदा हैं. कई सवालों का हल केंद्र से सहयोग नहीं मिलने के कारण हो पा रहे हैं. बिल, कानून राजभवन से रोक दिये जा रहे हैं. इसके बावजूद राज्य सरकार को अपनी भूमिका में सुधार की जरूरत है. समर्थन दे रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि हम जनता के मुद्दों को छोड़ दे रहे हैं.

भाजपा नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी में और ताकतवर होकर उभरी है. यूपीए क्या राहुल गांधी के नेतृत्व में यह लड़ाई जीत पायेगी?

देश में मल्टीपल पार्टी की व्यवस्था बढ़ रही है. विपक्ष राहुल गांधी को जिस तरह पेश करने की कोशिश कर रहा है, वह ठीक नहीं है. उनका इमेज खराब किया जा रहा है. इसके पीछे एक उद्योग खुल गया है. बावजूद इसके राहुल जी ने हाल के दिनों में जो यात्रा की है, वह सराहनीय काम है. जिस तरह उनकी संसद से सदस्यता खत्म की गयी है, वह गलत है. जिस मामले में सजा दी गयी वह, उस धारा में सबसे अधिक सजा है. ऐसा पहले किसी के साथ नहीं हुआ था. विपक्षी एकता बनाने की कोशिश हो रही है. यह जल्द दिखेगी.

भाजपा के खिलाफ कैसी गोलबंदी कारगर हो सकती है. विपक्ष में बिजू जनता दल, जगन रेड्डी, अरविंद केजरीवाल जैसे दल व लोग दूरी बनाये हुए हैं?

पहले से जो चल रहा था, उस स्थिति में आज बदलाव हुआ है. नीतीश जी ने कई नेताओं से मुलाकात की है. कांग्रेस ने भी रुख बदला है. संवाद स्थापित हो रहा है. रास्ता निकलेगा. बीजद, जगन रेड्डी जैसे दल जिनकी सत्ता रहेगी, उनके साथ रहेंगे. इसके साथ कई क्षेत्रीय दल इसी भावना से काम करते हैं.

आप आर्थिक विकास के वर्तमान मॉडल को नहीं मानते हैं. ये भारत को सशक्त नहीं कर सकता, तो फिर बतायें कि विकास का क्या मॉडल क्या हो ?

अभी जिसे विकास का मॉडल कहा जा रहा है, वह असल में विनाश का मॉडल है. वंदे भारत और गंगा विलास जैसी सुविधाएं भारत जैसे देश के विकास का पैमाना नहीं हो सकती हैं. गरीबी आज बड़ा मुद्दा है. पहले गरीबों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की बात होती थी. आज इसके कई प्रकार की आधारभूत सुविधा है, जो लोगों को जरूरत है. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मुद्दे बेसिक हैं. विकास के जिस मॉडल पर हम काम कर रहे हैं, वह जोशी मठ जैसे शहर को देख कर लगता है. कैसे शहर बर्बाद हो गया. पर्यावरण आज बड़ा मुद्दा है. वामपंथी केवल मुद्दा नहीं उठाते, उसके समाधान पर भी बात करते हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव में क्या चुनौती देखते हैं. प्रगतिशील ताकतों की क्या भूमिका होगी ?

सही ढंग से चुनाव हो जाये, यहीं सबसे बड़ी चुनौती है. चुनाव आयोग ही कह रहा है कि 33 फीसदी इवीएम खराब थी. यह कैसे हुआ. चुनाव में लोगों को अपने मुद्दे पर वोट करना होगा. 1977 वाली स्थिति बन रही है. लोग घुटन महसूस कर रहे हैं. जितना चाहिए था, उतना नहीं मिला. व्यापक विपक्षी एकता का रास्ता भी बन रहा है.

राज्य में 1932 खतियान, सरना धर्म कोड जैसे मुद्दों पर माले का क्या स्टैंड है. क्या ये केवल भावनात्मक मुद्दे ही बन कर रह जायेंगे?

स्थानीयता बड़ा सवाल है. यह सुसंगत बनना चाहिए. यह भावनात्मक मुद्दा नहीं है. हम 1932 के पक्ष में हैं. इसी के आधार पर स्थानीयता बननी चाहिए. इससे स्थानीय नौजवानों को लाभ मिलेगा. यहां तो आरक्षण खत्म किया जा रहा है.

आप पिछले 25 वर्षों से लगातार पांच बार से माले के राष्ट्रीय महासचिव हैं. आप में ऊर्जा है, आगे भी रहेंगे, लेकिन पार्टी में आप अपने बाद सुप्रीम कामरेड के रूप में किसको दिखते हैं, किसके पास होगी माले की कमान ?

पार्टी में एक नयी पीढ़ी खड़ी हो रही है. सेंट्रल कमेटी और पोलित ब्यूरो में भी कई नये साथी आये हैं. छात्र आंदोलन से भी कई नेता उभर रहे हैं. हम लोगों का भी उम्र हो गया है. हम लोगों को भी ज्यादा ऊर्जावान नेता का इंतजार है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें