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ranchi news : हालात कैसे भी हों, हौसला मजबूत रखें

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ranchi news : आज अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस है. यह दिन उन लोगों को समर्पित है, जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी अपनी सफलता का बाधा नहीं बनने दिया. समाज में एक पहचान बनायी है और दूसरों के लिए प्रेरणादायी हैं.

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अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर पढ़िए जोश भरनेवाली प्रेरणादायी कहानियांरांची. आज अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस है. यह दिन उन लोगों को समर्पित है, जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी अपनी सफलता का बाधा नहीं बनने दिया. समाज में एक पहचान बनायी है और दूसरों के लिए प्रेरणादायी हैं. कोकर निवासी बीना कुमारी शर्मा चल नहीं सकती, लेकिन उनके सपने आसमान छू रहे हैं. पहले खुद चेशायर होम से पढ़ाई की. अब दिव्यांगजनों के लिए सक्षम दिव्यांग सेवा केंद्र चला रही हैं. दिव्यांगजनों को सरकारी सुविधाओं से जोड़ रही हैं. बीना कहती हैं : दिव्यांगों के बीच उनके लिए बनाये गये कानून-नियमों व नीतियों को प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है, ताकि हर दिव्यांग को उनका अधिकार मिल सके. उन्होंने विशेष शिक्षा दृष्टिबाधित में डिप्लोमा की डिग्री हासिल कर दिव्यांगों के अधिकारों के लिए काम करना शुरू किया. 10 वर्षों से काम कर रही हूं. दिव्यांगता कभी मेरे आगे बढ़ने में रुकावट नहीं बनी. इसमें अजीत कुमार व श्रेया तिवारी का सहयोग मिलता रहा है.

बैडमिंटन में चार अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं

रामगढ़ के बिटटू कुमार एक पैर से दिव्यांग होकर भी बैडमिंटन के चैंपियन खिलाड़ी हैं. कई अंतरराष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप में मेडल जीत चुके हैं. वर्तमान में सीनियर साॅफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में पुणे में कार्यरत हैं. वे कहते हैं : स्कूली शिक्षा डीपीएस रांची से हुई. इसके बाद एनआइटी जमशेदपुर से बीटेक की डिग्री हासिल की. चेन्नई से काम की शुरुआत की. कॉलेज के दिनों में बैडमिंटन खेलना शुरू किया. अपने काम के साथ ही अंतरराष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन में चार मेडल जीत चुके हैं. वे कहते हैं : थोड़ी दिक्कत का सामना करना जरूर पड़ा, लेकिन कभी अपने मनोबल को गिरने नहीं दिया. मेरा मानना है कि सेल्फ रिस्पेक्ट को कभी डाउन न करें. कठिन मेहनत से ही सपनों को पूरा किया जा सकता है.

पांच साल की उम्र में पोलियो का शिकार हो गयीं, लेकिन हौसले उड़ान पर

गुमला की मुनु मुक्ता कुमारी दोनों पैरों से चल नहीं सकतीं, लेकिन पढ़ाई के प्रति उनके हौसले ने आगे बढ़ाया. वर्तमान में पालकोट के सरकारी स्कूल की शिक्षिका हैं. वह कहती हैं : सपनों को पूरा करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. पांच साल की उम्र में पोलियो का शिकार हो गयी. मेरे लिए पढ़ाई करना बहुत मुश्किल रहा. अधिकतर लोग पढ़ाई के पक्ष में नहीं थे. किसी तरह गांव के मिशन स्कूल में सातवीं तक पढ़ी. हाइस्कूल के लिए शहर जाना था. इधर-उधर से पैसा इकट्ठा कर इंटर की पढ़ाई पूरी की. ग्रेजुएशन करने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद एसटीडी बूथ चलाना शुरू किया और ट्यूशन पढ़ाकर एमए और बीएड की डिग्री हासिल की. यहां तक पहुंचना काफी कठिन रहा. मेरा कहना है कि पढ़ने की अपनी इच्छा को कभी रोके नहीं.

रेलवे में नौकरी के लिए शहर-शहर दौड़ा, आखिर बने स्टेनोग्राफर

हटिया के माधव चंद्र दास बचपन से ही नेत्रहीन हैं. तीन साल की उम्र में ही आंखों की रोशनी चली गयी. इसके बावजूद स्कूली शिक्षा पूरी की. आज रेलवे में कार्यरत हैं. संत मिखाइल बहुबाजार से प्रारंभिक पढ़ाई की. दिल्ली विवि से ग्रेजुएशन किया. एनजीओ में काम किया. इसके बाद 2013 में रेलवे में नौकरी लगी. वर्तमान में रांची रेल डिविजन के डीआरएम ऑफिस में स्टेनोग्राफर के पद पर कार्यरत हैं. माधवचंद्र कहते हैं : रांची में पढ़ाई की सुविधा न मिलने के कारण दिल्ली जाना पड़ा. नौकरी के लिए संघर्ष करना पड़ा. रेलवे की परीक्षा देने कई शहरों में जाना पड़ा. 08-10 परीक्षा के बाद रेलवे में नौकरी मिली. मेरा मानना है कि कभी भी हिम्मत नहीं हारना चाहिए. दिव्यांग डरे नहीं. घर से बाहर निकलें और सपने को पूरा करें.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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