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जमीनी पत्रकारिता, निडरता और विश्वसनीयता प्रभात खबर की पूंजी

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जब नक्सलियों ने बीडीओ का अपहरण कर लिया तो उसे प्रभात खबर ने छुड़वाया. पहाड़ों और नदियों को बचाने, प्लास्टिक पर बैन के लिए और अलबर्ट एक्का की पत्नी की सहायता के लिए अभियान चलाया. राज्यसभा चुनाव में विधायकों को प्रलोभन देकर जिस तरीके से वोट खरीदे जाते थे, उसे प्रभात खबर ने प्रमुखता से उठाया था.

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प्रभात खबर 14 अगस्त को अपनी स्थापना के 40वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है. किसी भी अखबार के लिए यह गर्व करने की बात है. प्रभात खबर के लिए भी यह यात्रा आसान नहीं रही लेकिन जनहित, तेवर, मुद्दों और जमीनी पत्रकारिता के कारण तमाम बाधाओं को पार करते हुए प्रभात खबर ने राष्ट्रीय पहचान बनायी. अलग किस्म की पत्रकारिता के कारण देश की पत्रकारिता में प्रभात खबर का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है.

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प्रभात खबर की यात्रा 14 अगस्त, 1984 से रांची से आरंभ हुई थी.कांग्रेस के विधायक ज्ञानरंजन ने इस अखबार को निकाला था जो झारखंड अलग राज्य के प्रबल समर्थक थे. तब अलग राज्य नहीं बना था और रांची एक पिछड़ा इलाका माना जाता था. झारखंड आंदोलन के दौरान बंद, नाकेबंदी, जुलूस-प्रदर्शन आम बात थी. कोई झारखंड आना नहीं चाहता था. आर्थिक गतिविधियां इस क्षेत्र में बहुत ही कमजोर थी जिसके कारण यहां से अखबार निकालना आसान नहीं था.

उस रांची से प्रभात खबर निकला था. लेकिन धीरे-धीरे बिगड़ते हालात के कारण अखबार लगभग बंद होने की स्थिति में आ गया था. 1989 में प्रबंधन बदला गया. नयी टीम (जिसमें हरिवंश जी, केके गोयनका और आर के दत्ता प्रमुख थे) ने प्रभात खबर को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया. परिणाम सामने है. अखबार का विस्तार होता गया. रांची के बाद जमशेदपुर, पटना, कोलकाता, धनबाद, देवघर, मुजफ्फरपुर और भागलपुर से प्रभात खबर का प्रकाशन होने लगा, यानी कभी सिर्फ रांची से निकलनेवाला प्रभात खबर का फैलाव तीन राज्यों (झारखंड, बिहार और बंगाल) में हुआ. आज स्थिति यह है कि यह देश का सातवां सबसे बड़ा अखबार बन चुका है.

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1989 में जब प्रभात खबर ने अपनी दूसरी यात्रा आरंभ की तो वह समय झारखंड आंदोलन का था. झारखंड आंदोलन के समर्थकों को एक ऐसे अखबार की जरूरत थी जो खुल कर अलग झारखंड राज्य आंदाेलन का साथ दे. यह काम प्रभात खबर ने किया. आदिवासियों-मूलवासियों और झारखंड आंदोलन के समर्थकों की आवाज बन कर प्रभात खबर उभरा. माटी का अखबार होने का दायित्व निभाया. सीधे कहा जाये तो अलग झारखंड राज्य बनाने में प्रभात खबर का बहुत बड़ा योगदान रहा.

खास तौर पर 1989 से लेकर 1993 तक प्रभात खबर ने झारखंड आंदोलन को जिस तरह से सहयोग दिया, उसकी कल्पना करना मुश्किल है. आंदाेलन की खबरों को तो प्रमुखता दी ही, झारखंड की भाषा-संस्कृति, इतिहास और जनता के मुद्दों को अखबार में जोरदार तरीके से उठाया. ओपिनियन मेकर की भूमिका में प्रभात खबर रहा. मुंडारी, नागपुरी, खोरठा, कुडुख आदि भाषाओं में कॉलम लिख कर प्रभात खबर ने आदिवासियों-मूलवासियों का दिल जीता. ऐसा प्रयोग आज तक देश के किसी हिंदी अखबार ने नहीं किया. अखबार को आगे बढ़ने में कई और घटनाओं का उल्लेख अनिवार्य है. इनमें एक है अयोध्या का मुद्दा. 1990-92 के बीच अयोध्या का मुद्दा गरमाया हुआ था. प्रभात खबर ने धैर्य का परिचय देते हुए सच लिखा. निष्पक्ष रिपोर्टिंग की और पाठकों में विश्वास जमाया.

प्रभात खबर पाठकों का अखबार रहा है और यही इसकी ताकत भी रही है. जब-जब झारखंड की जनता परेशानी में रहा, प्रभात खबर एक दोस्त-सहयोगी, मार्गदर्शक के तौर पर खड़ा मिला. इसकी शुरुआत तब हो गयी थी जब रांची में 1992 में कई दिनों बिजली नहीं थी, पानी नहीं था. प्रभात खबर ने इसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाया और आंदोलन खड़ा कर दिया. पानी-बिजली के लिए एक दिन संपादकीय खाली छोड़ दिया. लोग सड़कों पर उतर गये. प्रभात खबर ने इस आंदोलन का एक तरह से नेतृत्व किया. पटना से मंत्री को रांची आना पड़ा और जनता की मांग पूरी हुई. निडरता प्रभात खबर के डीएनए में है.

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भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरीके से प्रभात खबर ने रिपोर्टिंग की, उसकी देश भर में चर्चा हुई. चारा घोटाला का परदाफाश सबसे पहले प्रभात खबर ने किया. तमाम दबाव और धमकी के बावजूद प्रभात खबर की टीम झुकी नहीं. राष्ट्रीय अखबारों ने प्रभात खबर की पत्रकारिता की तारीफ की थी. प्रभात खबर ने एक से एक घोटाले का परदाफाश किया. राज्य बनने के पहले से लेकर राज्य बनने के बाद भी. दवा घोटाला, अलकतरा घोटाला, जेपीएससी घोटाला आदि तो कुछ उदाहरण हैं. जब भी किसी ने जनता का, राज्य का पैसा लूटना चाहा, गड़बड़ी की, कानून-व्यवस्था का मामला सामने आया, प्रभात खबर ने इसे मुद्दा बनाया.

इसका नतीजा यह हुआ कि कई पूर्व मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों को जेल जाना पड़ा. ऐसी बोल्ड पत्रकारिता के कारण प्रभात खबर को समय-समय पर नुकसान भी हुआ. कई बार राज्य सरकारों ने प्रभात खबर पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी विज्ञापन को या तो बंद किया या कटौती की. इतने दबाव के बावजूद आंदोलन से निकला यह अखबार पीछे नहीं हटा और अपना काम करता रहा.

झारखंड डेवलपमेंट रिपोर्ट और बिहार डेवलपमेंट रिपोर्ट का कई सालों तक प्रकाशन कर विकास का रास्ता बताया. प्रभात खबर ने पाठकों में यह विश्वास पैदा किया कि जहां भी कोई गड़बड़ी करेगा, प्रभात खबर उसे नहीं छोड़ेगा, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति क्यों न हो. पाठकों में यह जो धारणा बनी, उसने प्रभात खबर को अपने प्रतिद्वंद्वी अखबारों से बहुत ही आगे कर दिया.

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प्रभात खबर ने झारखंड की राजनीतिक गंदगी को दूर करने या कम करने का अपने स्तर से प्रयास किया. राज्यसभा चुनाव में विधायकों को प्रलोभन देकर जिस तरीके से वोट खरीदे जाते थे, उसे प्रभात खबर ने प्रमुखता से उठाया था. रांची के लोगों को आंदोलित किया था. जनप्रतिनिधियों ने जब भी गड़बड़ी का प्रयास किया, अखबार में अभियान चलाया गया और इसका नतीजा है कि अब हालात बदल गये हैं. पहले जैसी गड़बड़ियां राज्यसभा चुनाव में अब नहीं होती.

39 साल में प्रभात खबर ने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए अनेक बड़े काम किये. चाहे वह पलामू का अकाल हो, बिहार की बाढ़ हो, गुजरात का भूकंप हो या अन्य राष्ट्रीय आपदा, प्रभात खबर ने जनता से सहयोग लेकर राहत सामग्री भेजने का काम किया. जब नक्सलियों ने बीडीओ का अपहरण कर लिया तो उसे छुड़वाया. पहाड़ों और नदियों को बचाने, प्लास्टिक पर बैन के लिए, अलबर्ट एक्का की पत्नी की सहायता के लिए अभियान चलाया. ऐसे मुद्दों की भरमार है. चुनाव के दौरान प्रभात खबर ने मतदाता जागरूकता अभियान चलाया, स्थायी सरकार (चाहे किसी भी दल की क्यों न हो) बनाने पर जोर दिया. अधिकांश प्रयासों में प्रभात खबर को सफलता मिली.

झारखंड बनने के बाद भी प्रभात खबर ने यह प्रयास किया कि यहां के आदिवासी और अन्य नायकों को उचित सम्मान मिले, चाहे वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हों या झारखंड आंदोलन से. इसी क्रम में झारखंड के शहीदों के परिजनों को उनका हक दिलाने के लिए प्रभात खबर ने लगातार रिपोर्टिंग की. उसका नतीजा निकला. आंदोलनकारियाें की पहचान के लिए आयोग बना और आयोग को सही आंदोलनकारियों की पहचान करने में प्रभात खबर के पुराने अखबारों से काफी सहयोग मिला.

कुछ आंदाेलनकारियों को पेंशन मिल रही है, कुछ शहीदों के परिजनों को नौकरी मिली है. हालांकि आज से 15-20 साल पहले वाली पत्रकारिता अब नहीं रही. समय तेजी से बदल रहा है. परिस्थिति अलग है लेकिन प्रभात खबर आज भी मुद्दों की पत्रकारिता कर रहा है, जनहित की पत्रकारिता कर रहा है. भ्रष्टाचार के मामले जहां भी सामने आते हैं, प्रभात खबर चुप नहीं रहता. यही प्रभात खबर की ताकत है, यही पहचान है और जिम्मेवारी भी.

(लेखक प्रभात खबर के कार्यकारी संपादक हैं.)

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