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झारखंड: रैयती बता कर 924 एकड़ वन भूमि की हुई खरीद-बिक्री, नहीं हुई कार्रवाई

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हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी ने जनवरी 2019 को उपायुक्त को पत्र लिख कर वन भूमि पर अवैध कब्जा किये जाने की सूचना देते हुए बंदोबस्ती रद्द करने की मांग की थी. उपायुक्त द्वारा बार-बार नोटिस जारी करने के बावजूद 95 लोग अपना पक्ष पेश करने के लिए हाजिर ही नहीं हुए.

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रांची, शकील अख्तर: हजारीबाग जिले में 924 एकड़ वन भूमि को रैयती बता कर की गयी खरीद-बिक्री को रद्द करने के आदेश पर कार्रवाई नहीं हुई. राज्य के तत्कालीन उपायुक्त रविशंकर शुक्ला ने हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी के पत्र के आलोक में मुकदमे की सुनवाई बाद डीड रद्द करने और वन भूमि को कब्जे से मुक्त कराने का आदेश दिया था. उपायुक्त द्वारा की जा रही सुनवाई के दौरान 95 लोगों ने अपना पक्ष ही पेश नहीं किया था. कुछ लोगों ने जमीनदार द्वारा सादा हुकुमनामा के सहारे जमीन देने की दलील पेश की थी.

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वन प्रमंडल पदाधिकारी ने की थी बंदोबस्ती रद्द करने की मांग

हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी ने जनवरी 2019 को उपायुक्त को पत्र लिख कर वन भूमि पर अवैध कब्जा किये जाने की सूचना देते हुए बंदोबस्ती रद्द करने की मांग की थी. उन्होंने मौजा हरहद, थाना नंबर-117, खाता नंबर-172 के प्लॉट नंबर-2366, 2367 और 2368 की 137 एकड़ वन भूमि पर अवैध कब्जा होने का उल्लेख किया. इस पत्र के आधार पर उपायुक्त ने पश्चिमी वन प्रमंडल बनाम अटॉर्नी होल्डर लतीफ मियां, दिलीप दास, मनोज कुमार, सुनीता कुमार के नाम से मुकदमे की सुनवाई शुरू की. इसमें 100 से अधिक जमीन बेचनेवालों और खरीदनेवालों के नाम नोटिस जारी किया. सुनवाई के दौरान बजाज आयरन एंड स्टील और राजेंद्र प्रसाद ने उपायुक्त की कार्यवाही को हाइकोर्ट में चुनौती दी. लेकिन, किसी को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली. उपायुक्त द्वारा बार-बार नोटिस जारी करने के बावजूद 95 लोग अपना पक्ष पेश करने के लिए हाजिर ही नहीं हुए.

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सीओ ने जमीन के खासमहल जंगल होने की दी थी रिपोर्ट

सुनवाई के दौरान उपायुक्त ने अंचल अधिकारी, अवर निबंधक और वन प्रमंडल पदाधिकारी से रिपोर्ट मांगी. अंचल अधिकारी ने खतियान में संबंधित जमीन के खासमहल जंगल दर्ज होने से संबंधित रिपोर्ट दी. अवर निबंधक ने अपनी रिपोर्ट में खरीद-बिक्री के दौरान सेल डीड में जमीन के रैयती लिखे जाने की जानकारी दी. उपायुक्त ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न मामलों में दिये गये फैसले, राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये आदेशों और वन संरक्षण अधिनियम में निहित प्रावधानों के आलोक में इस जमीन की खरीद-बिक्री को अवैध करार दिया. उन्होंने एक सप्ताह के अंदर सभी खरीद-बिक्री को रद्द करने का आदेश दिया. वन प्रमंडल पदाधिकारी को ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को चिह्नित कर उसके खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया, जिन्होंने समय पर वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण की सूचना नहीं दी.

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