17.1 C
Ranchi
Friday, February 14, 2025 | 12:46 am
17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

श्री रामचरितमानस से बेहद प्रभावित थे फादर कामिल बुल्के, जानें रामकथा को झारखंड के किन किन लोगों ने बढ़ाया आगे

Advertisement

बेल्जियम से रांची पहुंचे डॉ फादर कामिल बुल्के ने हिंदी भाषा को अपनाया. समाज में अपनी पहचान भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी साहित्यिक साधना से पूरी की.

Audio Book

ऑडियो सुनें

राम का नाम भारत की मिट्टी से जुड़ा हुआ है. जन-जन की भावना में राम नाम का वास है. यही कारण है कि आरंभ से ही साहित्यिक रचनाओं में श्रीराम कवि, साहित्यकार, कथाकार और रचनाकारों के प्रिय विषय रहे हैं. राजधानी रांची में साहित्यिक शोध और हिंदी के गुरु डॉ फादर कामिल बुल्के भी ‘श्री रामचरितमानस’ से प्रभावित हुए थे. उन्होंने ग्रंथ को पाठकों और विद्यार्थियों के लिए सरल भाषा में रचा. वहींं आज के युवा भी राम की आभा को महसूस करते हैं. पेश है अभिषेक रॉय की रिपोर्ट…

डॉ बुल्के ने पहुंचाया राम कथा को दक्षिण व पूर्व एशियाई देशों में

बेल्जियम से रांची पहुंचे डॉ फादर कामिल बुल्के ने हिंदी भाषा को अपनाया. समाज में अपनी पहचान भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी साहित्यिक साधना से पूरी की. संत जेवियर्स कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष रहे डॉ कमल कुमार बोस ने बताया कि बाबा बुल्के प्रभु राम और संत तुलसीदास के अनन्य उपासक थे. हिंदी में अभ्यस्त होने के बाद उन्हें प्रभु राम की सत्यनिष्ठा, त्यागवृत्ति, मर्यादा पुरुषोत्तम रूप और प्रेम प्रवणता ने प्रभावित किया. यही कारण है कि अपने शोध कार्य में उन्होंने राम कथा का चयन कर ”राम कथा : उत्पत्ति और विकास” की रचना की. इसमें उन्होंने श्री रामचरितमानस को सरल बनाने का काम किया. इससे देशभर में उनकी कीर्ति की चर्चा हुई. इतना ही नहीं, बाबा बुल्के ने अपनी राम कथा रचना को दक्षिण व पूर्व एशियाई देशों तक पहुंचाया.

राम लला साहित्य काव्य दर्शन और भक्ति की त्रिवेणी

गोस्वामी तुलसीदास भारत के मंदिर को आलोकित करने वाले सर्वोत्तम प्रकाश स्तंभ माने गये हैं. उन्होंने अपनी काव्य-साधना से भारतीय जीवन, धर्मदर्शन और संस्कृति को नया नजरिया दिया है. उनका साहित्य, काव्य दर्शन और भक्ति की त्रिवेणी माना गया है. रांची यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ जंग बहादुर पांडेय ने कहा कि – बिना राम के आदर्शों का चरमोत्कर्ष नहीं हो सकता.जिस समय भारतीय समाज अत्याचार, सामाजिक वैमनस्य, राजनीतिक शोषण और धार्मिक आडंबरों से घिरा हुआ था, उस समय कवि तुलसीदास की पांडित्य प्रतिभा ने उसे जीवन का आधार देकर सशक्त बनाया था. उन्होंने राम के चरित्र का आधार लेकर मानव जीवन की व्यापक और संपूर्ण समीक्षा की है.

Also Read: रांची: किताब उत्सव में याद किए गए फादर कामिल बुल्के, कथाकार राधाकृष्ण को देते थे जर्मनी से लाई गई दमा की दवाएं
हिंदी साहित्य की यात्रा में रामकाव्य परंपरा हमेशा रही जीवंत

देश भर के विवि में अकादमिक दृष्टिकोण से प्रभु श्रीराम जरूरी हैं. हिंदी साहित्य की काव्य परंपरा में कवियों ने एक खास विषय – ‘रामकाव्य परंपरा’ को स्थापित किया है. यही कारण है कि राज्य के प्राय: सभी विवि के प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों को कवि मैथिलीशरण गुप्त की ‘पंचवटी’ पढ़ाई जाती है. गोस्सनर कॉलेज के हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ प्रशांत गौरव ने बताया कि पंचवटी से विद्यार्थियों को व्यक्ति के चरित्र निर्माण, पुरुषार्थ, धैर्य और अपने कथन पर अडिग रहने की सीख मिलती है. इस काव्य रचना के मुख्य पात्र प्रभु श्रीराम ही हैं. इसके अलावा रामकाव्य परंपरा में गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस, गीतावली, कवितावली, जानकी मंगल, बैरवे रामायण, रामलला नहछू समेत अन्य रचनाएं राम को जनमानस में प्रतिष्ठित कर रही हैं.

शोधार्थियों के प्रिय विषय हैं प्रभु श्री राम

रांची विवि के हिंदी विभाग के शोधार्थियों के लिए प्रभु श्रीराम शुरुआत से शोध का विषय रहे हैं. 1974 में पहली बार डॉ राम कृष्ण प्रसाद मिश्र ने विषय – रामचरितमानस का योगाध्यात्मिक विवेचन पर डॉक्टरेट इन लिटरेचर (डी-लिट्) की उपाधि हासिल की. इसके बाद से पीएचडी में भी प्रभु श्री राम छाये रहे. अब तक डी-लिट् में दो और पीएचडी में 31 से अधिक लोगों ने शोधकार्य संपन्न किया है. 1975 में सिया कुमारी सिंह ने रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से शोध कार्य पूरा किया. उनके शोष का विषय – ‘तुलसी की बिंब योजना, मानस के आधार पर’ रहा. उस समय डॉ सिया के शोध निर्देशक डॉ फादर कामिल बुल्के रहे थे. शोधकार्य संपन्न होने के बाद कई शोधार्थियों ने अपनी रचना को पुस्तक का रूप दिया. जिसकी मांग किताब दुकान से लेकर ऑनलाइन मार्केट में बनी हुई है.

राजधानी में आउट ऑफ स्टॉक हो गये राम ग्रंथ

पुस्तक पथ अपर बाजार स्थित गीता प्रेस ‘ज्ञानालय’ से ही राज्यभर में प्रभु श्री राम से जुड़े ग्रंथों को पहुंचाया जाता है. संचालक प्रमोद कुमार लोहिया ने बताया कि एक अप्रैल 1974 में ज्ञानालय का उद्घाटन हुआ. गीता प्रेस गोरखपुर के सहयोग से रांचीवासियों को धार्मिक पुस्तक उपलब्ध करा रहे हैं. प्रमोद ने बताया कि अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की घोषणा के बाद से ही प्रभु श्रीराम से जुड़े ग्रंथ आउट ऑफ स्टॉक हो गये हैं. दिसंबर माह के बाद से उन्हें भक्तों के बीच उपलब्ध कराना चुनौती बन गया है. मांग के अनुरूप ग्रंथ की प्रिंटिंग नहीं हो पा रही है. राम भक्तों के बीच तीन पुस्तक – श्री रामचरितमानस, सुंदर कांड और हनुमान चालीसा की मांग बनी हुई है. लोग श्री रामचरितमानस के अनुवादक हनुमान प्रसाद पोद्दार की 1056 पेज वाले ग्रंथ की मांग कर रहे हैं. विश्वासियों के लिए श्री रामचरितमानस की मूल गुटका (केवल श्लोक आधारित) और भाषा टीका ( श्लोक के साथ हिंदी अर्थ युक्त ग्रंथ) को उपलब्ध कराने की हर संभव कोशिश की जा रही है. श्री रामचरितमानस की प्रति की कीमत 70 रुपये से 850 रुपये तक है. वहीं, हनुमान चालीसा 10 रुपये से 40 रुपये तक और सुंदर कांड की प्रति 50 रुपये से 250 रुपये में उपलब्ध करायी जा रही है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें