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झारखंड : नशे के आदी मरीजों के लिए लग रही लंबी लाइन, संस्थानों में कम पड़ रहे बेड

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केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआइपी), रिनपास और डेविस मनोचिकित्सा संस्थान में मरीजों को भर्ती कराया जाता है. इसके साथ ही कई निजी प्रैक्टिसनर्स भी हैं, जो मरीजों का इलाज कर रहे हैं.

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मनोज सिंह, रांची: हाल के दिनों में नशे की कई खेप पकड़ी गयी है. कई ड्रग पैडलरों पर कार्रवाई हुई है. इससे नशे के आदी लोगों की परेशानी बढ़ गयी है. उनको समय पर नशे की खुराक नहीं मिल पा रही है. इससे वे घरवालों को परेशान करने लगे हैं. घरवाले उन्हें लेकर इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. ऐसे में नशे का इलाज करनेवाले संस्थानों में मरीजों की संख्या काफी बढ़ गयी है. संस्थान सभी मरीजों को भर्ती नहीं कर पा रहे हैं. परिजनों को कहा जा रहा है कि वे मरीजों को घर में ही रख कर दवा खिलाने की कोशिश करें.

केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआइपी), रिनपास और डेविस मनोचिकित्सा संस्थान में मरीजों को भर्ती कराया जाता है. इसके साथ ही कई निजी प्रैक्टिसनर्स भी हैं, जो मरीजों का इलाज कर रहे हैं. सीआइपी में पिछले एक माह में 600 से 800 मरीज नशे की लत का इलाज के लिए आये हैं. इसमें 175 से 200 नये मरीज हैं. इसमें हर दिन एक या दो मरीज ही भर्ती हो पा रहे हैं. कुछ इसी तरह की स्थिति कांके स्थित डेविस मनोचिकित्सा संस्थान की है. यहां भी हर दिन 30 से 40 मरीज नशे की लत वाले आ रहे हैं. इसमें आधे मरीज भर्ती लायक होते हैं.

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डेविस मनोचिकित्सा संस्थान की कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ सुप्रिया डेविस बताती है कि कई लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज नहीं कराना चाहते हैं. नशे की लत छुड़ाने के लिए क्यूडिट एक दवा है, जो सभी स्थानों पर उपलब्ध नहीं है. इस कारण भी कई लोग यहां इलाज के लिए आते हैं. हाल के दिनों में ब्राउन शुगर, गांजा, भांग और शराब की लत वाले मरीजों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है. रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) में नशे की आदी मरीजों को भर्ती कराया जाता है. यहां इसका विशेष केंद्र नहीं है, लेकिन यहां के मनोचिकित्सकों की देखरेख में ऐसे मरीजों का इलाज होता है.

70 मरीजों को ही भर्ती करने की क्षमता :

सीआइपी राज्य के एक मात्र ऐसा संस्थान है, जहां ड्रग डि-एडिक्शन का विशेष सेंटर है. इसमें 70 मरीजों को भर्ती करने की क्षमता है. हाल के दिनों में यह हमेशा भरा रहता है.

केंद्र के प्रभारी डॉ संजय कुमार

मुंडा बताते हैं कि मरीजों की संख्या बढ़ी है. फरवरी में ओपीडी में 600 से अधिक मरीज नशे की लत लेकर यहां इलाज के लिए आये. ज्यादातर परिजन चाहते हैं कि उनके मरीज को भर्ती किया जाये, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है.

बेड के लिए भटक रहे हैं अभिभावक :

नशे के गिरफ्त में आये युवाओं को डॉक्टरों के परामर्श पर भी अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहा है. शहर में करीब 20 मनोचिकित्सक हैं, जहां एक सप्ताह में करीब 40 से 45 मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने का परामर्श दिया जाता है. इन्हीं मरीजों के लिए अभिभावकों को भटकना पड़ रहा है. बेड के लिए अभिभावकों को पैरवी तक करनी पड़ रही है. मनोचिकित्सक डॉ सवेश ने बताया कि लाचार परिजनों को गिड़गिड़ना पड़ रहा है, क्योंकि नशे के गिरफ्त में आये बच्चों को घर में रखना मुश्किल हो गया है.

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