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निरंतर कुछ न कुछ रचते रहे डॉ रामदयाल मुंडा, रामधारी सिंह दिनकर और जयशंकर प्रसाद की रचनाओं का अनुवाद भी किया

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बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ रामदयाल मुंडा झारखंड की एक ऐसी शख्सीयत थे, जिन्होंने रचना धर्म कभी नहीं छोड़ा. जनजातीय भाषाओं में किताबें लिखीं, तो हिंदी, बांग्ला और संस्कृत की किताबों का अनुवाद भी किया. जानें उनकी रचनाओं के बारे में.

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डॉ रामदयाल मुंडा झारखंड आंदोलन के अगुवा और सूबे के लोगों में राजनीतिक एवं सांस्कृतिक चेतना जगाने वाले विशाल व्यक्तित्व थे. 23 अगस्त को उनका जन्मदिन है. इस दिन लोगों को उनके राजनीतिक और सांस्कृतिक योगदान के बारे में तो जानना ही चाहिए, यह भी जानना चाहिए कि उन्होंने किस तरह की रचनाएं कीं. बांसुरी बजाने में सिद्धहस्त डॉ रामदयाल मुंडा की लेखनी भी कमाल की थी. उन्होंने कम से कम 28 छोटी-बड़ी किताबें लिखीं हैं. इसमें अधिकतर आदिवासी भाषाओं में लिखे गये गीत हैं. आइए, आज हम आपको उनके इस रूप से भी परिचित कराते हैं. बताते हैं कि अमेरिका के विश्वविद्यालय में रिसर्च करने और पढ़ाने के बाद रांची विश्वविद्यालय के कुलपति बने डॉ रामदयाल मुंडा ने कितनी और किस तरह की किताबें लिखीं. उनका व्यक्तित्व तो विशाल था ही, उनकी रचनाओं ने भी उन्हें अमर बना दिया. ‘जे नाची से बांची’ का नारा देने वाले डॉ रामदयाल मुंडा निरंतर रचना करते रहे. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर और जयशंकर प्रसाद, महाश्वेता देवी जैसे कवि-लेखकों की रचना का अंग्रेजी और हिंदी में अनुवाद. संस्कृत के नाटक का भी बांग्ला से अंग्रेजी में अनुवाद किया. रामदयाल मुंडा की जो किताबें प्रकाशित हुईं, उसमें से कुछ चुनिंदा पुस्तकों की सूची इस प्रकार है :-

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रामदयाल मुंडा की चुनिंदा किताबों की लिस्ट

  • हिसिर

  • सेलेद

  • प्रोटो-खरवारियन साउंड सिस्टम

  • मुंडारी गीतकार, श्री बुदु बाबू और उनकी रचनाएं

  • ओशन ऑफ लाफ्टर (जगदीश्वर भट्टाचार्य के संस्कृत नाटक का अंग्रेजी में रूपांतरण किया)

  • कल्याणी (जैनेंद्र कुमार के हिंदी उपन्यास का अंग्रेजी में किया अनुवाद)

  • होली मैन ऑफ जमनिया (बाबा नागार्जुन के हिंदी उपन्यास जमनिया का बाबा का अंग्रेजी में अनुवाद)

  • कुछ नाई नागपुरी गीत

  • मुंडारी व्याकरण (मुंडारी ग्रामर)

  • ध्रुव स्वामिनी (जयशंकर प्रसाद के हिंदी नाटक का अंग्रेजी में किया अनुवाद)

  • इआ नावा कानिको (सात नई कहानियां)

  • तितली (जयशंकर प्रसाद के हिंदी उपन्यास का अंग्रेजी में अनुवाद)

  • नदी और उसके संबंध तथा अन्य नगीत

  • द सन चैरियटीयर (रामधारी सिंह दिनकर की लंबी कविता रश्मिरथी का अंग्रेजी में अनुवाद

  • लैंग्वेज ऑफ पोएट्री

  • बिरसा मुंडा (महाश्वेता देवी के बांग्ला उपन्या का हिंदी में अनुवाद)

  • वापसी, पुनर्मिलन और अन्य नगीत

  • ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन का संविधान

  • इंट्रोडक्शन टू इंडीजिनस एंड ट्राइबल सॉलिडेरिटी

  • आदिवासी अस्तित्व और झारखंडी अस्मिता के सवाल

  • अदांदी बोंगा (विवाह मंत्र)

  • जी-तोनोल (मन बंधन)

  • जी-रानारा (मन बिछुड़न)

  • एनिओन (जागरण)

  • बीए (एसच) बोंगा (सरहुल मंत्र) मुंडारी-हिंदी संस्करण

  • गोनो? पारोमेन बोंगा (श्रद्धा मंत्र), मुंडारी-हिंदी संस्करण

  • आदि धरम, भारतीय आदिवासियों की धार्मिक आस्थाएं

  • सोसोबोंगा (भेलवा पूजन) पुनर्नवीकृत

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लगातार कुछ न कुछ रचते रहे डॉ रामदयाल मुंडा

अब इन किताबों के बारे में भी जान लीजिए. वह निरंतर कुछ न कुछ रचना करते ही रहे. अपने व्यस्त समय में भी वह अखड़ा जाना नहीं भूलते थे. बांसुरी बजाते थे. जब भी पर्व-त्योहार आता, वो मांदर भी बजाते थे. साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ने वाले झारखंड के आरडी ने हर विषय पर अपनी कलम चलायी. चाहे वो किताब के रूप में हो या पत्र-पत्रिकाओं में लेख के रूप में. उन्होंने झारखंड के आंदोनकारियों को अपनी कलम से दिशा दिखायी थी. उनकी रचना की लंबी लिस्ट है. इस शख्स ने सिर्फ आदिवासी भाषाओं में ही रचना नहीं की. हिंदी, अंग्रेजी और कई जनजातीय भाषाओं में किताबें लिखीं. अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला का हिंदी में अनुवाद किया, तो कई किताबों का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया. अब देखें कि उन्होंने अपने जीवनकाल में किन-किन विषयों पर कलम चलाये.

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निरंतर कुछ न कुछ रचते रहे डॉ रामदयाल मुंडा, रामधारी सिंह दिनकर और जयशंकर प्रसाद की रचनाओं का अनुवाद भी किया 2

रामदयाल मुंडा लिखित कुछ किताबों के बारे में जानें

  • ‘हिसिर’ आधुनिक मुंडारी गीतों की किताब है. हिसिर का अर्थ होता है गले का हार. इस किताब को वर्ष 1967 में रांच स्थित सहकारी प्रकाशन ने प्रकाशित किया था.

  • दूसरी किताब है ‘सेलेद’. इसमें हिंदी, नागपुरी और मुंडारी की कविताएं हैं. 1967 में ही सहकारी प्रकाशन रांची ने इसे प्रकाशित किया.

  • ‘प्रोटो-खरवारियन साउंड सिस्टम’ डॉ रामदयाल मुंडा की एक और कृति है. इे 1967 में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के डिपार्टमेंट ऑफ साउथ एशियन लैंग्वेजेज एंड सिविलाइजेशन ने प्रकाशित किया था.

  • ‘मुंडारी गीतकार, श्री बुदु बाबू और उनकी रचनाएं’ वर्ष 1974 में प्रकाशित हुई. इसका प्रकाशन आदिवासी साहित्य परिषद रांची ने किया था.

  • ‘ओशन ऑफ लाफ्टर’ एक अनूदित पुस्तक है. डॉ रामदयाल मुंडा ने डेविड नेल्सन के साथ मिलकर जगदीश्वर भट्टाचार्य के संस्कृत नाटक ‘हास्येरनवा’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया. राइटर्स वर्कशॉप, कलकत्ता ने 1975 में इसको प्रकाशित किया.

  • ‘कल्याणी’ भी अनूदित पुस्तक है. जैनेंद्र कुमार के उपन्यास कल्याणी का उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया था. वर्ष 1976 मं मिनिपोलिस स्थित मिनिसोटा यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज ने इसका प्रकाशन किया. अनुवाद में पॉल स्टेनस्लो और मार्क जॉनसन ने भी डॉ मुंडा की मदद की.

  • ‘होली मैन फ्रॉम जमनिया’ भी एक अनूदित पुस्तक है. हिंदी के जाने-माने कवि बाबा नागार्जुन के हिंदी उपन्यास ‘जमनिया का बाबा’ का डॉ रामदयाल मुंडा ने अंग्रेजी में अनुवाद किया. इसमें पॉलल स्टेनस्लो की भी उन्हें मदद मिली. इस पुस्तक का प्रकाशन 1977 में राइटर्स वर्कशॉप, कलकत्ता ने किया.

  • ‘कुछ नाई नागपुरी गीत’ (नागपुरी में गीत) वर्ष 1978 में प्रकाशित हुई. इसको नागपुरी साहित्य परिषद रांची ने प्रकाशित किया था.

  • वर्ष 1979 में डॉ मुंडा की एक और पुस्तक बाजार में आयी. इसका नाम था- ‘मुंडारी व्याकरण’. इसका प्रकाशन मुंडारी साहित्य परिषद, रांची ने किया.

  • हिंदी के प्रख्यात कवि और लेखक जयशंकर प्रसाद की एक और रचना ‘ध्रुव स्वामिनी’ का डॉ मुंडा ने अंग्रेजी में अनुवाद किया. इसको मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ साउथ एशिया स्टडीज ने प्रकाशित किया.

  • ‘इआ नावा कानिको’ (सात नई कहानियां) को वर्ष 1980 में मुंडारी साहित्य परिषद, रांची ने प्रकाशित किया.

  • हिंदी के प्रख्यात लेखक जयशंकर प्रसाद के उपन्यास ‘तितली’ का भी डॉ मुंडा ने अनुवाद किया. इसमें पॉल स्टेनस्लो ने भी उनका सहयोग किया. इस पुस्तक को मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ साउथ एशिया स्टडीज ने वर्ष 1980 में प्रकाशित किया.

  • डॉ रामदयाल मुंडा की एक और पुस्तक वर्ष 1980 में प्रकाशित हुई. इसका नाम था – ‘नदी और उसके संबंध तथा अन्य नगीत’. इसका प्रकाशन झारखंड साहित्य परिषद, रांची ने किया था.

  • ‘द सन चैरियटियर’ अंग्रेजी अनुवाद है. राष्ट्रपकवि रामधारी सिंह दिनकर की लंबी कविता ‘रश्मिरथी’ का उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया. वर्ष 1981 में यह पुस्तक प्रकाशित हुई. इसका प्रकाशन मिनेसोटा विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ साउथ एशिया स्टडीज ने किया. इसके अनुवाद में पॉल स्टेनस्लो और डेविड नेल्सन ने भी उनका सहयोग किया.

  • ‘लैंग्वेज ऑफ पोएट्री’ वर्ष 1981 में प्रकाशित हुई. इसका प्रकाशन क्लासिकल पब्लिकेशन दिल्ली ने किया था.

  • डॉ रामदयाल मुंडा ने बिरसा मुंडा के जीवन पर आधारित पुस्तक का भी अनुवाद किया. इस पुस्तक का नाम ‘बिरसा मुंडा’ था. बांग्ला की प्रख्यात लेखिका और समाजसेवी महाश्वेता देवी ने बांग्ला में बिरस मुंडा पर पुस्तक लिखी थी. इसका डॉ मुंडा ने हिंदी में अनुवाद किया. पहली बार वर्ष 1981 में चाईबासा के एकता प्रकाशन ने इसको प्रकाशित किया. इसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन वर्ष 2000 में हुआ. इस बार कलकत्ता स्थित सेल रकाब पोथी सेंटर ने ‘बिरसा मुंडा’ का प्रकाशन किया.

  • वर्ष 1985 में डॉ मुंडा की एक और किताब आयी – ‘वापसी, पुनर्मिलन और अन्य नगीत’. झारखंड साहित्य परिषद ने इसको प्रकाशित किया.

  • कम ही लोगों को पता होगा कि झारखंड के छात्र संगठन ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन का संविधान डॉ रामदयाल मुंडा ने लिखा था. वर्ष 1986 में उन्होंने आजसू के संविधान की रचना की. इसमें एस बसु मलिक, सूरज सिंह बेसरा और देवशरण भगत ने उनकी मदद की. आजसू ने ही इसको प्रकाशित करवाया.

  • वर्ष 1997 में उन्होंने ‘इंट्रोडक्शन टू इंडीजिनस एंड ट्राइबर सॉलिडेरिटी’ लिखी. इसका प्रकाशन आईसीआईटीपी दिल्ली ने किया.

  • ‘आदिवासी अस्तित्व और झारखंडी अस्मिता के सवाल’ भी डॉ रामदयाल मुंडा की रचना है. वर्ष 2001 में प्रकाशन संस्था, दिल्ली ने इसको प्रकाशित किया.

  • डॉ मुंडा ने रतन सिंह मानकी के साथ मिलकर ‘अदांदी बोंगा’ (विवाह मंत्र) नामक किताब लिखी. इसका प्रकाशन झारखंड प्रकाशन, रांची ने वर्ष 2001 में किया.

  • ‘जी रानारा’ (मन बिछुड़न) नामक किताब वर्ष 2001 में आयी. इसे झारखंड प्रकाशन रांची ने छापा.

  • ‘जी-तोनोल’ (मन बंधन) नामक पुस्तक वर्ष 2002 में आयी. इसका प्रकाशन झारखंड प्रकाशन, रांची ने किया.

  • ‘एनिओन’ (जागरण) नामक कृति वर्ष 2002 में आयी. झारखंड प्रकाशन, रांची ने इसको प्रकाशित किया.

  • ‘बीए (एच) बोंगा’ (सरहुल मंत्र) डॉ रामदयाल मुंडा ने मुंडारी और हिंदी दोनों भाषा में लिखी. इसका प्रकाशन भी वर्ष 2002 में ही हुआ. झारखंड प्रकाशन, रांची ने इसको प्रकाशित किया.

  • ‘गोनो? पारोमेन बोंगा’ (श्रद्धा मंत्र) की रचना डॉ रामदयाल मुंडा ने रतन सिंह मानकी के साथ मिलकर की. यह पुस्तक हिंदी और मुंडारी दोनों भाषा में है. कलकत्ता स्थित सेल रकाब पोथी सेंटर ने वर्ष 2003 में इस पुस्तक को प्रकाशित किया.

  • ‘आदि धरम, भारतीय आदिवासियों की धार्मिक आस्थाएं’ का प्रकाशन वर्ष 2009 में हुआ. राजकमल प्रकाशन नयी दिल्ली ने इसको प्रकाशित किया.

  • ‘सोसोबोंगा’ (भेलवा पूजन) पुनर्नवीकृत का प्रकाशन राजकमल प्रकाशन नयी दिल्ली ने किया.

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अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद थे डॉ मुंडा

ये तो थीं डॉ रामदयाल मुंडा की पुस्तकें. इसके अलावा उन्होंने झारखंड की सभ्यता, संस्कृति पर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेख लिखते रहते थे. झारखंड आंदोलन के दौरान उन्होंने आंदोलनकारियों और केंद्र सरकार के बीच सेतु का काम किया था. उनकी ये रचनाएं बतातीं हैं कि रामदयाल मुंडा यूं ही अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद, आदिवासी बुद्धिजीवी, साहित्यकार और समाजशास्त्री नहीं कहे जाते. कई आदिवासी भाषाओं के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी में भी उन्होंने रचनाएं कीं. कला से उनका प्रेम पहले से ही जगजाहिर है.

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