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डॉ करमा उरांव हमेशा कहा करते थे कि पढ़े लिखे हर आदमी को बुद्धिजीवी होना चाहिए

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डॉ करमा उरांव लोहरदगा से रांची कॉलेज में प्री-यूनिवर्सिटी कक्षा में दाखिला लेने आये थे. 1974 तक हमलोगों ने स्नातक पाठ्यक्रम के लिए साथ पढ़ाई की. डॉ उरांव ने 1979 में राम लखन सिंह यादव कॉलेज में मानवशास्त्र विषय में व्याख्याता बने.

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डॉ अविनाश चंद्र मिश्र,

पूर्व विभागाध्यक्ष, रांची विवि स्नातकोत्तर मानवशास्त्र विभाग

आज सुबह जब डॉ करमा उरांव के निधन की जानकारी मिली, तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि डॉ उरांव अब इस दुनिया में नहीं रहे. अभी तो वे 71-72 वर्ष के ही थे. इतनी जल्दी निधन की खबर मेरे लिए असहनीय है. वे मेरे अभिन्न मित्रों में से थे. 1970 में उनसे पहली मुलाकात हुई थी.

जब वे लोहरदगा से रांची कॉलेज में प्री-यूनिवर्सिटी कक्षा में दाखिला लेने आये थे. 1974 तक हमलोगों ने स्नातक पाठ्यक्रम के लिए साथ पढ़ाई की. डॉ उरांव ने 1979 में राम लखन सिंह यादव कॉलेज में मानवशास्त्र विषय में व्याख्याता बने. डॉ उरांव को जब भी किसी काम से रांची या बाहर जाना होता था, तो मुझे साथ लेकर जाते थे. स्वभाव से मिलनसार डॉ उरांव अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे. हां, अगर कहीं भ्रष्टाचार हो रहा है, तो वे उसके खिलाफ हो जाते थे. छात्र हो या फिर शिक्षक, सबों की समस्या को दूर करने के लिए वे किसी भी लड़ जाते थे.

मानवशास्त्र विभाग में किसी मुद्दे पर अक्सर बहस हो जाती थी. एक बार वे शिक्षकों की समस्याओं को दूर करने के लिए मोरहाबादी मैदान में अर्द्धनग्न अवस्था में ही प्रदर्शन करने लगे. विवि में शिक्षकों के वेतन भुगतान में देरी होने पर अक्सर कुलपति तक से भिड़ जाते थे. शिक्षकों का नियमित वेतन भुगतान नहीं होने पर एक बार कुलपति के चैंबर में ही डॉ उरांव टेबल आदि पटक दिया था.

डॉ उरांव जितनी जल्दी गुस्सा करते थे, उतनी ही जल्दी शांत भी हो जाते थे. कोरोना काल में उनके पुत्र सिद्धार्थ की मौत से वे काफी दुखी रहने लगे. उनका बेटा मुंबई में रिलायंस कंपनी में बहुत ही बड़े पद पर था. डॉ उरांव कहते थे कि वे आदिवासियों के हित के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. पढ़े-लिखे आदमी को बुद्धिजीवी होना चाहिए. झारखंड में कई सरकारें आयीं, जहां गलत व्यवस्था देखते थे, अपने को अलग कर लेते थे.

इसलिए कई बार पार्टी भी बदली. डॉ उरांव कहते थे कि वे कभी भी पैसे की राजनीति नहीं करनेवाले हैं. नैतिक दायित्व बड़ी चीज है. समाज में परिवर्तन लाने के लिए हमेशा चिंतित रहते थे. जब किसी बात पर गंभीर चर्चा करनी होती, तो डॉ उरांव बुलाते और अपनी पत्नी डॉ शांति उरांव के साथ घंटों बातें किया करते थे. डॉ उरांव का नहीं रहना शिक्षाजगत ही नहीं, बल्कि राजनीति के क्षेत्र के लिए भी अपूरणीय क्षति है.

बिशुनपुर प्रखंड के लोंगा महुआटोली में हुआ था जन्म

डॉ करमा उरांव का जन्म गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के लोंगा महुआटोली गांव में हुआ था. वे अपने पीछे पत्नी शांति उरांव, बेटी डॉ नेहा चाला उरांव और एक छोटा बेटा शनि उरांव को छोड़ गये हैं. कोरोना के समय अपने बड़े बेटे धर्मेश उरांव के असमय निधन से वे बुरी तरह टूट चुके थे. एक मानवशास्त्री के रूप में उन्होंंने दो दर्जनों से अधिक देशों की यात्रा की थी.

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