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‘देसी फ्रीज’ से सजा रांची का बाजार, मिट्टी के घड़े और सुराही की बढ़ी डिमांड

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गर्मी बढ़ने के साथ घरों में मिट्टी के घड़े दिखने लगे हैं. इसकी तैयारी बीते तीन महीने से की जा रही थी. लोकल घड़ा तैयार करने के लिए कुम्हार रांची शहर के आस-पास के ग्रामीण इलाके पिठोरिया, लालगंज, मेसरा और आनंदी ओरमांझी से नागड़ा मिट्टी का उठाव करते हैं.

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देसी जुगाड़ से गर्मी में राहत पाने की कवायद शुरू हो गयी है. कोरोना काल के बाद लोग रेफ्रिजेरेटर के ठंडे पानी से कन्नी काटने लगे हैं. इसके बदले में पारंपरिक देसी नुस्खा अपना रहे हैं. शहर के प्रमुख चौक-चौराहों पर देसी फ्रीज मिट्टी के घड़े, सुराही, प्याले, जग और डिजाइनर पानी के जार आदि नजर आने लगे हैं. कुम्हारों ने भी इसकी तैयारी कर रखी है. लोगों की मांग को देखते हुए रांची के आस-पास के ग्रामीण इलाकों से मिट्टी के बर्तन की सप्लाई पूरी की जा रही है. ओरमांझी और पिठोरिया से डिजाइनर देसी फ्रीज शहर के बाजार तक पहुंच रहे हैं. इसके अलावा मिट्टी के डिजाइनर थरमस, घड़ा और सुराही पश्चिम बंगाल के पुरुलिया और सिलीगुड़ी से भी मंगाये जा रहे हैं.

पश्चिम बंगाल की सुराही की मांग बढ़ी

बाजार में आकर्षक व डिजाइनर मिट्टी के बर्तन पश्चिम बंगाल से मंगाये जा रहे हैं. खासकर डिजाइनर सुराही व नल वाला घड़ा के अलावा मिट्टी के थरमस (एक लीटर) मंगाये गये हैं. एदलातू के कुम्हारों ने बताया कि मिट्टी का थरमस पश्चिम बंगाल के रास्ते रांची पहुंच रहा है. लोग इसके आकर्षक डिजाइन देख खरीदारी कर रहे हैं. लागत के बाद इन थरमस व बोतल की होलसेल कीमत 110 से 120 रुपये तय की गयी है. वहीं, बाजार में 150 से 180 रुपये में बेचा जा रहा है.

नागड़ा मिट्टी से तैयार हो रहा लोकल घड़ा

गर्मी बढ़ने के साथ घरों में मिट्टी के घड़े दिखने लगे हैं. इसकी तैयारी बीते तीन महीने से की जा रही थी. लोकल घड़ा तैयार करने के लिए कुम्हार रांची शहर के आस-पास के ग्रामीण इलाके पिठोरिया, लालगंज, मेसरा और आनंदी ओरमांझी से नागड़ा मिट्टी का उठाव करते हैं. इस मिट्टी से ही पांच से 20 लीटर तक का घड़ा तैयार किया जाता है. कांके प्रखंड के मायापुर, शांति, पांचा, बोड़ेया, अनगड़ा प्रखंड के इमासु बस्ती, नरायण सोसो, नवागढ़, कांके के केदल, मांडर और रातू प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में कुम्हार तीन साइज में इन्हें तैयार करते हैं. बाजार में इनकी कीमत साइज अनुरूप 150 से 300 रुपये तक है. वहीं, सुराही की कीमत 70 से 150 रुपये तक है.

राज्य में पांच करोड़ रुपये का कारोबार

झारखंड कुम्हार महासभा के महामंत्री संजीत प्रजापति ने बताया कि लोकल घड़ा सबसे ज्यादा ओरमांझी के मायापुर और कांके के केदल में तैयार किया जाता है. मायापुर के 100 घरों में से 60 घरों में मिट्टी के घड़े व अन्य बर्तन तैयार किये जाते हैं. प्रत्येक घर में प्रतिदिन 20 से 30 घड़ा बनकर तैयार होता है, जिसे पांच से सात दिनों में सुखा कर सप्लाई किया जाता है. गर्मी के दिनों में राज्य में मिट्टी के घड़े व अन्य बड़े बर्तन का चार से पांच करोड़ रुपये का कारोबार होता है.

सतुआन से घड़ा में पानी रखने की परंपरा

झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में सतुआन पर्व के दिन से मिट्टी के घड़े में रखे पानी को पीने की परंपरा है. पर्व के दिन नये फल और फसलों का उत्सव मनाया जाता है. कई घरों में इस दिन घड़े में आम का पल्लव स्थापित कर पूजा की जाती है. इसके बाद घड़े का पानी पीया जाता है.

बैंबू बोतल है खास

मिट्टी के बर्तन के साथ-साथ गर्मी के दिनों में बैंबू यानी बांस से बने थर्मस की खास मांग देखी जा रही है. बैंबू बॉटल की खासियत है कि इनमें पानी का तापमान सामान्य बना रहता है. यानी ठंडा पानी रखने पर ठंडा और नॉर्मल रखने पर गर्म नहीं होता. गर्मी में लंच बॉक्स का खाना खराब न हो, इसके लिए इसे बैंबू स्टोर बॉक्स के आकार में भी उपलब्ध कराया जा रहा है. बैंबू बॉटल और स्टोर बॉक्स बुंडू, चौपारण और दुमका के ग्रामीण इलाके में तैयार कर शहर में मंगवाये जा रहे हैं. साइज अनुरूप इनकी कीमत 150 से 400 रुपये है.

कुम्हारों ने कहा : छठ के बाद से शुरू हो जाता है काम

गर्मी में घड़ा व सुराही की मांग बढ़ जाती है. रांची शहरी क्षेत्र में इसकी खपत ज्यादा है. इसलिए प्रतिदिन 20 से 30 घड़ा तैयार किया जाता है. लेकिन, कारीगर के अभाव में लोगों की मांगें पूरी नहीं कर पाते हैं.

– विनोद प्रजापति, मायापुर

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गर्मी के लिए घड़ा व सुराही बनाने का काम छठ के बाद से ही शुरू हो जाता है. इन्हें तीन साइज में तैयार किया जाता है. 10 और 20 लीटर के घड़े और जार की मांग सबसे ज्यादा है.

– रुद्र देव प्रजापति, पुरुलिया रोड

कोरोना काल से कई लोग फ्रीज के ठंडे पानी से दूरी बना चुके हैं. इससे मिट्टी के बर्तन की मांग बढ़ी है. डिमांड पूरा करने के लिए बंगाल से भी माल मंगाया जा रहा है. मिट्टी के थरमस की मांग ज्यादा है.

– राजू प्रजापति, प्रदेश अध्यक्ष, झारखंड कुम्हार महासभा

माटी कला बोर्ड के पद खाली, पर प्रशिक्षण जारी

झारखंड में उद्योग विभाग के तहत 2016 में माटी कला बोर्ड का गठन किया गया था. इसका उद्देश्य कुम्हारों को नयी तकनीक से जोड़ कर प्रशिक्षित करना और मिट्टी की व्यवस्था कर उनके लिए रोजगार सृजित करना है. मिट्टी के सामान तैयार होने से कुम्हारों को बाजार भी देने की घोषणा हुई थी. जबकि, 28 मई 2020 से माटी कला बोर्ड के सभी पद खाली हैं. सदस्यों के अभाव में बोर्ड का संचालन सरकारी पदाधिकारी कर रहे हैं. बोर्ड की ओर से जारी योजनाओं का लाभ दे रहे हैं. इच्छुक कुम्हार तीन सेंटर- झारखंड गवर्नमेंट टूलरूम गोला, झारखंड गवर्नमेंट टूलरूम जरडीहा दुमका और आधार महिला सहयोग स्वावलंबी समिति बुंडू से तकनीकी प्रशिक्षण ले सकते हैं. वित्तीय वर्ष 2022-23 में इन सभी सेंटर पर 30-30 दिनों के आठ प्रशिक्षण शिविर पूरे किये गये हैं. प्रशिक्षण के साथ प्रतिभागी शिल्पकारों को 150 रुपये प्रतिदिन की छात्रवृत्ति भी दी गयी.

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