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विश्व स्तनपान सप्ताह : 76 फीसदी बच्चों का जन्म अस्पताल में, 20 फीसदी को ही पहले घंटे मिल पाता है मां का दूध

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झारखंड में 76 फीसदी से अधिक प्रसव अब अस्पतालों में या प्रशिक्षित दाई की निगरानी में हो रहे हैं. बावजूद इसके सभी बच्चे जन्म के पहले घंटे में स्तनपान नहीं कर पा रहे. महज 20 फीसदी बच्चों को ही जन्म के तुरंत बाद मां का दूध मिल पाता है. आइए, जानते हैं स्तनपान के मां और शिशु के लिए क्या हैं फायदे.

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भारत समेत पूरी दुनिया में विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पहल पर हर साल एक सप्ताह तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. इस दौरान दुनिया को बताया जाता है कि स्तनपान के क्या फायदे होते हैं. खासकर उन महिलाओं को जिनके छोटे बच्चे हैं, छह माह तक के. झारखंड में स्तनपान की दर में काफी सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी यह राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. खासकर 3 साल तक की उम्र के बच्चों के मामले में. देश के आंकड़े बताते हैं कि तीन साल तक की उम्र के 41.8 फीसदी बच्चे 6 माह तक स्तनपान करते हैं, जबकि झारखंड में यह 21.5 प्रतिशत है. झारखंड ही नहीं, पूरे देश में इस क्षेत्र में कई तरह के सुधार की जरूरत है. सुधारों पर हम बाद में बात करेंगे, पहले बात करते हैं बच्चों के स्वास्थ्य और स्तनपान के महत्व के बारे में.

झारखंड में स्तनपान के बारे में बढ़ी है जागरूकता

पूर्वी भारत के झारखंड में विश्व स्तनपान के बारे में जागरूकता बढ़ी है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey – NFHS-5) के ताजा आंकड़े (वर्ष 2019-2021) बताते हैं कि स्तनपान करने वाले 6 माह की आयु तक के शिशु की संख्या 76 फीसदी हो गयी है. यह आंकड़ा एनएफएचएस-4 (वर्ष 2015-16) में 65 फीसदी था. इस तरह पांच साल में इसमें 11 फीसदी का सुधार हुआ है.

जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध पीने वाले नवजात में संक्रमण (इन्फेक्शन) का खतरा कम रहता है. जल्द स्तनपान से शिशु मृत्यु दर में कमी आती है. स्तनपान की वजह से मां और नवजात की बांडिंग मजबूत होती है और मां लंबे समय तक बच्चे को दूध पिला सकती है.

76 फीसदी प्रसव प्रशिक्षित दाई की निगरानी में

इतना ही नहीं, झारखंड में अब लगभग 76 प्रतिशत महिलाएं स्वास्थ्य केंद्रों में प्रशिक्षित दाई की निगरानी में बच्चों को जन्म दे रहीं हैं. वर्ष 2015-16 में यह दर 62 प्रतिशत थी. हालांकि, चार महिलाओं में तीन का प्रसव स्वास्थ्य सुविधाओं में हो रहा है, लेकिन पांच में से केवल एक शिशु ही जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कर पाया. विशेषज्ञ बताते हैं कि लगभग 6 महीने की आयु तक शिशु के लिए जरूरी ऊर्जा और पोषक तत्व मां के दूध से मिल जाते हैं.

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विश्व स्तनपान सप्ताह : 76 फीसदी बच्चों का जन्म अस्पताल में, 20 फीसदी को ही पहले घंटे मिल पाता है मां का दूध 2

शिशु के लिए मां का दूध है पूर्ण पोषण

आप अपने बच्चों को जो कुछ भी बाहर का खिलाते या पिलाते हैं, उसकी तुलना में मां का दूध कहीं ज्यादा पोषक तत्व प्रदान करता है. इसलिए मां के दूध को पूर्ण पोषण कहा जाता है. इसलिए अपने शिशु को जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान जरूर करवायें. इससे मां और शिशु दोनों को फायदा होता है. बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में दो दशक से भी ज्यादा समय तक काम कर चुकीं बाल रक्षा भारत (सेव द चिल्ड्रेन) की पूर्वी और दक्षिणी राज्यों के लिए स्वास्थ्य एवं पोषण पोर्टफोलियो की प्रबंधक देबाश्मिता भौमिक कहतीं हैं कि बच्चे के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सबसे प्रभावी तरीकों में एक है.

कब खिलायें बच्चों को पूरक आहार
शिशु को दिन में बार-बार स्तनपान कराना चाहिए. बोतलें, सिपी, या पेसिफायर का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए. 6 महीने की आयु के बाद ही बच्चों को सुरक्षित और पर्याप्त पूरक आहार खिलाना शुरू करना चाहिए. हालांकि, मां बच्चे की दो साल की आयु तक स्तनपान करवाये, तो बच्चे का समुचित विकास होगा.

मां के दूध में होतीं हैं कई खूबियां

स्तनपान नवजात शिशुओं के लिए एक आदर्श आहार है. यह सुरक्षित, स्वच्छ होता है. मां के दूध में कई खूबियां होती हैं, जो बच्चों को प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है. यह बच्चों को कई सामान्य बीमारियों से बचाता है. स्तनपान शिशु को पहले कुछ महीनों के लिए उनकी सभी ऊर्जा और पोषक तत्व प्रदान करता है, और पहले साल की दूसरी छमाही में मां के दूध से शिशु के पोषण के लिए जरूरी एक-तिहाई तक पोषक तत्व प्रदान करता है.

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जन्म के 6 माह तक शिशु को सिर्फ स्तनपान करवाएं

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनिसेफ (UNICEF) के मुताबिक, बच्चों को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान कराना चाहिए. उन्हें पहले 6 महीने तक केवल मां का दूध पिलाना चाहिए. इसका मतलब यह है कि अन्य भोजन या पानी समेत कोई अन्य खाद्य पदार्थ बच्चे को नहीं देना चाहिए. शिशु को दिन में बार-बार स्तनपान कराना चाहिए. बोतलें, सिपी, या पेसिफायर का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए. 6 महीने की आयु के बाद ही बच्चों को सुरक्षित और पर्याप्त पूरक आहार खिलाना शुरू करना चाहिए. हालांकि, मां बच्चे की दो साल की आयु तक स्तनपान करवाये, तो बच्चे का समुचित विकास होगा.

इन संक्रमणों से सुरक्षा देता है स्तनपान
बच्चों को कान के संक्रमण, दमा, निचले श्वसन तंत्र के संक्रमण, दस्त और उल्टी, बच्चों में मोटापा और अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम शामिल हैं. इतना ही नहीं, स्तनपान करने वाले बच्चों की बुद्धि 3 से 4 अंक तक अधिक होती है.

लंबे समय तक स्तनपान कराने वाली मां रहतीं हैं स्वस्थ

देबाश्मिता भौमिक बताती हैं कि स्तनपान की लंबी अवधि माताओं को भी स्वस्थ रखती है. स्तनपान से बच्चे का समुचित विकास होता है. मां के स्वास्थ्य पर इसका सकारात्मक असर पड़ता है. इसकी वजह से परिवार का शिशु और माता के इलाज पर होने वाले खर्च में कमी आती है. इससे उस परिवार के साथ-साथ राष्ट्र के खर्च में भी कमी आती है. इससे अर्थव्यवस्था में सुधार आता है.

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बच्चे के लिए पहला टीका है मां का दूध

मां के दूध में विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं. यह शिशु के स्वस्थ विकास में मदद करता है. प्रसव के बाद माता से मिलने वाला दूध पूर्ण पोषक तत्वों से भरा होता है. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है. यह बच्चे का पहला टीका भी है. मां के दूध में प्राकृतिक रूप से शिशुओं को कई रोगों से बचाने की क्षमता होती है. कई बीमारियों के जोखिम को भी कम कर दिया जाता है. इससे बच्चों को कान के संक्रमण, दमा, निचले श्वसन तंत्र के संक्रमण, दस्त और उल्टी, बच्चों में मोटापा और अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम शामिल हैं. इतना ही नहीं, स्तनपान करने वाले बच्चों की बुद्धि 3 से 4 अंक तक अधिक होती है.

विश्व स्तनपान सप्ताह 2023 का थीम

यहां बताना प्रासंगिक होगा कि वर्ष 2015-2021 के दौरान जन्म के एक घंटे के भीतर 47 फीसदी शिशुओं ने अपनी मां का स्तनपान किया. यह 70 फीसदी के लक्ष्य से काफी कम था. इसी अवधि में छह महीने से कम आयु के शिशुओं के स्तनपान का प्रतिशत 48 रहा. वर्ल्ड अलायंस फॉर ब्रेस्टफीडिंग एक्शन World Alliance for Breastfeeding Action – WABA) ने वर्ष 2023 के ‘विश्व स्तनपान सप्ताह 2023’ का थीम ‘स्तनपान को संभव बनाना : काम करने वाले माता-पिता में बदलाव लाना’ (Enabling breastfeeding: making a difference for working parents) रखा है. इस वैश्विक अभियान का उद्देश्य स्तनपान और इसके फायदों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है.

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केंद्र और राज्य सरकारों को नीतियों में करना होगा सुधार

इसलिए जरूरी है कि केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी स्वास्थ्य नीतियों को मजबूत बनाने के लिए लगातार काम करें. अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि के साथ-साथ सुरक्षित प्रसूति की भी व्यवस्था करे. इतना ही नहीं, डॉक्टरों के साथ-साथ नर्सों, दाइयों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना चाहिए, ताकि वे माताओं को स्तनपान कराने के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित कर सकें. अस्पताल के साथ-साथ घर जाने के बाद भी प्रसूताओं की मदद करेंगी.

नवजात में संक्रमण का खतरा होता है कम

यह सिद्ध हो चुका है कि जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध पीने वाले नवजात में संक्रमण (इन्फेक्शन) का खतरा कम रहता है. जल्द स्तनपान से शिशु मृत्यु दर में कमी आती है. स्तनपान की वजह से मां और नवजात की बांडिंग मजबूत होती है और मां लंबे समय तक बच्चे को दूध पिला सकती है. देबाश्मिता भौमिक कहती हैं कि यह मायने नहीं रखता कि शिशु का जन्म किसी गांव की झोपड़ी में हुआ है या शहर के किसी आलीशान हॉस्पिटल में, जन्म के एक घंटे के भीतर वह स्तनपान कर पाया या नहीं, यह महत्वपूर्ण है. जन्म के शुरुआती एक घंटे के भीतर मां का दूध पीने वाले बच्चों के जीवित रहने की दर बढ़ जाती है. उनका तेजी से विकास होता है. वे ज्यादा स्वस्थ रहते हैं.

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शुरुआती स्तनपान के फायदे

  • नवजात में संक्रमण (इन्फेक्शन) का खतरा कम होता है.

  • शिशु मृत्यु दर में कमी आती है.

  • मां और नवजात की बांडिंग मजबूत होती है.

  • मां लंबे समय तक बच्चे को दूध पिला सकती है.

  • शिशु के जीवित रहने की उम्मीद बढ़ जाती है.

  • नवजात का तेजी से विकास होता है.

  • स्तनपान करने वाले शिशु ज्यादा स्वस्थ रहते हैं.

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