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राज्य में तिल की खेती को बढ़ावा देगा बीएयू

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बिरसा कृषि विवि में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के सौजन्य से अखिल भारतीय समन्वित तिल व रामतिल (सरगुजा) परियोजना के तहत राज्य में तिल की खेती को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया है. इस परियोजना के तहत खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड के रेडुम, डोरमा, कोनकारी, पुत्कलटोली, हेसल व चुरगी गांव तथा रांची जिले के कांके प्रखंड के सेमलबेरा गांव में (20 जनजातीय किसान) तथा लोहरदगा एवं हजारीबाग जिले में तिल की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.

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खरीफ मौसम की विषम परिस्थिति में तिल को सबसे उपयुक्त वैकल्पिक फसल कहा जाता है

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रांची : बिरसा कृषि विवि में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के सौजन्य से अखिल भारतीय समन्वित तिल व रामतिल (सरगुजा) परियोजना के तहत राज्य में तिल की खेती को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया है. इस परियोजना के तहत खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड के रेडुम, डोरमा, कोनकारी, पुत्कलटोली, हेसल व चुरगी गांव तथा रांची जिले के कांके प्रखंड के सेमलबेरा गांव में (20 जनजातीय किसान) तथा लोहरदगा एवं हजारीबाग जिले में तिल की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.

परियोजना अन्वेषक डॉ सोहन राम ने बताया कि खरीफ मौसम की विषम परिस्थिति में तिल को सबसे उपयुक्त वैकल्पिक फसल कहा जाता है. तेलहन में इस समय प्रदेश के किसान मूंगफली और तिल दोनों की खेती कर सकते हैं. तिल की खेती कम लागत व कम पानी में करीब 80-85 दिनों की कम अवधि में की जा सकती है.

बीएयू द्वारा विकसित किस्म कांके सफेद, पंजाब में विकसित किस्म टीसी-25 तथा पंतनगर में विकसित शेखर किस्म प्रदेश के लिए उपयुक्त है. तिल के तेल के पोषक गुण, औषधीय प्रसाधक एवं खाद्य गुणों की वजह से इसे तेलहनी फसलों की रानी कहा जाता है. यह विटामिन ई, एबी संयुक्त, कैल्शियम, स्फूर, लौह, तांबा, मैग्नीशियम एवं जिंक का उत्तम स्रोत है. पैरों की जलन, पीठ दर्द, दृष्टि दोष, सरदर्द, कब्ज, दस्त, मसूढ़ों में खून आना, कमजोर हड्डी और जोड़ों के दर्द में इसका उपयोग किया जाता है.

डॉ सोहन राम बताते हैं कि अधिक उपज पाने के लिए इसकी बुआई कतारों में करनी चाहिए. विश्व में तिल फसल का क्षेत्रफल एवं उत्पादन के आधार पर भारत का प्रथम स्थान है. यह भारत का सबसे प्राचीनतम फसल है. झारखंड में इसका क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता क्रमश: 14.65 हजार हेक्टेयर, 5.13 मीट्रिक टन तथा 350.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. पलामू, दुमका, पश्चिमी सिंहभूम तथा गढ़वा जिले में इसकी खेती प्रचलित है.

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