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रांची के रामदयाल मुंडा स्टेडियम में हुआ बांग्ला सांस्कृतिक मेला का आगाज, संगीत की धुन पर थिरके कलाकार

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राजधानी रांची के मोरहाबादी स्थित डॉ रामदयाल मुंडा स्टेडियम परिसर में शुक्रवार को संगीत की धुन पर कलाकारों की भाव मुद्राएं बदलती रहीं. कलाकारों ने नृत्य नाटिका में थांगटा, कलरीपायटू, मानभूम छऊ, श्रीलंका के लोक नृत्य डांस कैंसी के साथ भारतीय शास्त्रीय नृत्य की झलक पेश की.

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Bangla Cultural Fair: छह वर्ष बाद एक बार फिर रांची बांग्ला सांस्कृतिक मेला का गवाह बनी. मोरहाबादी स्थित डॉ रामदयाल मुंडा स्टेडियम परिसर में शुक्रवार को संगीत की धुन पर कलाकारों की भाव मुद्राएं बदलती रहीं. सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत डांसर्स गिल्ड कोलकाता के कलाकारों ने की. पार्वती गुप्ता की टीम ने रवींद्र गीत पर आधारित नृत्य नाटिका ‘बोर्षा आसे बोसोंतो…’ की प्रस्तुति दी. बादोल दिनेर प्रोथोम कौदोम… आमि दिते एसेछी श्राबोनेर गान… गाने पर कलाकारों ने शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति दी. 45 मिनट की नृत्य नाटिका ‘नबो नृत्य’ शैली पर आधारित थी. इसमें सावन के मौसम से पहले की मेघ गर्जना, वर्षा के आगमन, वर्षा की पहली बूंद के उत्साह, सावन में झूमती प्रकृति, पेड़-पौधों में आयी हरियाली से प्राकृतिक सौंदर्य और परिवेश में मिट्टी की सौंधी खुशबू के आनंद का बखान किया गया. कलाकारों ने नृत्य नाटिका में थांगटा, कलरीपायटू, मानभूम छऊ, श्रीलंका के लोक नृत्य डांस कैंसी के साथ भारतीय शास्त्रीय नृत्य की झलक पेश की.

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तीन कर्तव्य जरूरी

स्वामी भवेशानंद ने कहा कि एक वक्त था जब रांची में बंगाली परिवार बहुतायत में रहते थे, लेकिन समय के साथ लोगों ने पलायन कर लिया. कई लोग स्थानीय संस्कृति में ढल गये. जबकि, जीवन में मूल संस्कृति को विरासत के तौर पर बचाये रखना जरूरी है. उन्होंने संस्कृति को बचाये रखने के लिए मनुष्य जीवन के तीन कर्तव्यों का पालन करने की सीख दी. पहला भगवान का नाम लेते रहें, दूसरा जीव-जंतु की सेवा करते रहें और तीसरा अपने आदि पुरुषों से मिली परंपरा को साथ लेकर चलें.

बांग्ला मेला के जरिये समाज में शुभ संदेश फैलाया जायेगा

इससे पहले मोरहाबादी स्थित डॉ रामदयाल मुंडा स्टेडियम परिसर उल्लू ध्वनि से गूंज उठा. शुभो सूचोना घोटलो बांग्ला मैला जोरिये (बांग्ला मेला के जरिये समाज में शुभ संदेश फैलाया जायेगा) के साथ तीन दिवसीय बांग्ला सांस्कृतिक मेला की शुरुआत हुई. छह वर्ष बाद राजधानी रांची इस सांस्कृतिक महोत्सव की साक्षी बनी. मेला का आयोजन बंगाली युवा मंच चैरिटेबल ट्रस्ट कर रहा है. मुख्य अतिथि रामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी भवेशानंद महाराज थे. उन्होंने कहा कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन सांस्कृतिक महोत्सव की शुरुआत सामाजिक एकता का संदेश दे रही है. मनुष्य का जीवन काल कई उतार-चढ़ाव से भरा होता है. पैसा छिन जाये, तो वह दोबारा कमा सकता है. स्वास्थ्य बिगड़ जाये, तो दोबारा ठीक किया जा सकता है. लेकिन संस्कृति खत्म हो जाये तो मनुष्य जाति का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा.

फुड अड्डा में बंगाली डिश का उठा सकेंगे लुत्फ

स्टेडियम परिसर में पारंपरिक साज-सज्जा से लेकर खाने-पीने के स्टॉल लगाये गये हैं. इन स्टॉल का खास आकर्षण बांग्ला फूड कोर्ट है. जहां विश्व प्रसिद्ध बंगाली रेसिपी से लोगों को रूबरू कराया जा रहा है. मेला में पहुंचने वाले लोग राधाबल्लवी, एचोरेर सब्जी, फाउल कटलेट, प्रॉन कटलेट, फिस पातुरी, चिकेन पांथारस, मोगलई पराठा, मोच-मोचे मुर्गी आदि का स्वाद चख सकेंगे.

संघर्ष की गाथा बयां करती
है बांग्ला संस्कृति : सुप्रियो

बंगाली युवा मंच चैरिटेबल ट्रेस्ट के कन्वेनर सह झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि बांग्ला संस्कृति संघर्ष की गाथा बयां करती है. देश की लोक कला और संस्कृति को आज भी समाज ने अपने बीच जीवंत रखने का काम किया है. बांग्ला मेला का आयोजन राज्य एवं शहर के बंग समुदाय को एकजुट करने के उद्देश्य से किया गया है. इससे आने वाली पीढ़ी समाज की कला-संस्कृति से रूबरू हो सकेगी. उन्होंने बताया कि तीन दिवसीय महोत्सव में सभी वर्ग के लोग आनंद उत्सव मना सकेंगे. इस दौरान न केवल बांग्ला संस्कृति से परिचय कराया जायेगा, बल्कि देश व पूरे राज्य से लोक कलाकार अपनी प्रस्तुति देने पहुंचेंगे. कीर्तन यात्रा के साथ रंगमंच, शास्त्रीय नृत्य-संगीत और लोक गीत बाउल से लोगों को परिचय कराया जायेगा. कार्यक्रम का संचालन सब्यसाची चंद ने किया. इस अवसर पर ट्रस्ट के अध्यक्ष सिद्धार्थ घोष भी मौजूद थे. इससे पहले महिला दल ने प्रभात फेरी निकाली.

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